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This Article is From Mar 20, 2014

अभिज्ञान का प्वाइंट : आडवाणी की सीट पहले तय क्यों नहीं की...

फाइल फोटो

नई दिल्ली:

2014 के इन चुनावों में हर पार्टी का लक्ष्य नज़र आता है युवा वोटरों को अपनी ओर खींचना। बीजेपी बार बार ये भी कहती है कि नरेंद्र मोदी का असर सबसे ज़्यादा देश के युवाओं में है। नेताओं की रिटायरमेंट की उम्र क्या होनी चाहिए, इस पर भी बहुत बहस हो चुकी है।

कांग्रेस ने अपनी सारी कमान राहुल गांधी को ये सोचकर थमाई कि राहुल युवाओं को अपनी तरफ़ खीचेंगे, लेकिन बीजेपी के बड़े और पुराने नेताओं पर ये बात लागू ही नहीं हो पा रही है। लालकृष्ण आडवाणी की उम्र 86 साल 4 महीने और 12 दिन की है, लेकिन लालकृष्ण आडवाणी के मुद्दों से कैसे निपटा जाए ये बीजेपी को पता ही नहीं है।

जब भारतीय जनता पार्टी को ये बात पता थी कि मोदी की पीएम उम्मीदवारी की घोषणा के समय लालकृष्ण आडवाणी ने कितना ड्रामा किया था तो बीजेपी आख़िरी समय तक आडवाणी के ड्रामे का इंतज़ार क्यों कर रही थी। क्या सबसे पहले आडवाणी की सीट तय नहीं हो सकती थी। चूंकि बीजेपी में रिटायरमेंट की उम्र पर बहस नहीं हो पाती, आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे नेताओं पर पहले फ़ैसला क्यों नहीं लिया गया और इन नेताओं ने भी ड्रामेबाज़ी में कोई कसर नहीं छोड़ी।

आख़िरकार पार्टी के फ़ैसले को मानने की औपचारिक घोषणा तो ज़रूर की लेकिन पूरी राजनीतिक नौटंकी के बाद। नुकसान किसका बीजेपी का जिसकी छवि अभी भी ये नहीं बन पा रही है कि चुनाव से चंद दिन पहले ये पार्टी पूरी तरह से एकजुट है और ख़ासकर मुरली मनोहर जोशी− लालकृष्ण आडवाणी जैसे पुराने और बड़े नेता नरेंद्र मोदी और राजनाथ सिंह के साथ हैं।

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