
नई दिल्ली की गोल मार्केट में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) यानी सीपीएम का दफ्तर वैसे तो इन दिनों सूना ही पड़ा रहता है, लेकिन मंगलवार को यहां काफी हलचल थी। इसकी वजह दिल्ली में बनाए गए मतगणना केंद्रों में से एक सीपीएम के दफ्तर से सटा था। वोटों की गिनती के नतीजे आते रहे और यहां आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता दिन भर जश्न मनाते रहे। सीपीएम के दफ्तर के सामने आम आदमी पार्टी के झंडे उठाए और सफेद टोपी लगाए युवा, महिलाएं और पुरुष नाचते गाते रहे और हवा में केजरीवाल के पोस्टर लहराते रहे।
सीपीएम ने इस बार आम आदमी पार्टी के लिए समर्थन का ऐलान किया था। इस समर्थन का चुनावी नतीजे पर असर तो क्या पड़ता लेकिन सीपीएम के महासचिव प्रकाश करात बोले तो उनके बाद ममता बनर्जी, नीतीश कुमार, देवगौड़ा, शरद यादव और तीसरे मोर्चे के सारे नेता झाड़ू पर बटन दबाने की अपील करने लगे।
सीपीएम हेडक्वार्टर के सामने जब आप कार्यकर्ताओं का जश्न हो रहा था तो कम्युनिस्ट नेता और कार्यकर्ता उसे देखने बाहर आते और प्रसन्न भाव से भीतर जाते। कुछ आप कार्यकर्ताओं की पीठ थपथपा कर बधाई देते भी दिखे।
पार्टी हेडक्वार्टर के भीतर टीवी लगा था, जहां वह संतुष्ट भाव से नतीजों को निहारते रहे जिसमें 'मोदी की हार' हो रही थी। लेकिन लाल झंडे वाली पार्टी के सामने आप कार्यकर्ताओं का जश्न सीपीएम काडर के लिए एक कड़ा पैगाम भी है। सीपीएम की दिल्ली इकाई पिछले सालों में जो कुछ हासिल नहीं कर सकी, वह दो साल पुरानी आप ने कर दिखाया।
क्या अरविंद केजरीवाल के प्रयोग ने लाल झंडे के पीछे चलने वाले बुद्धीजीवी नेताओं और काडर के लिए ये सवाल खड़ा नहीं कर दिया कि जिस वोट बैंक को वह बीएसपी या कांग्रेस की गिरफ्त में फंसा मानते थे उसे असल में वहां से निकाल कर अपने पास लाया जा सकता था।
आप की यह जीत कोई तुक्का नहीं है। अरविंद केजरीवाल और उनके समर्थकों ने संगठित रूप से स्वयंसेवकों का एक नेटवर्क खड़ा किया है। सोशल मीडिया में सक्रिय हुए, पार्टी ने एक प्लानिंग की और लोगों के बीच एक अपील की, जिसका असर हुआ है। बूथ स्तर तक उनके कार्यकर्ताओं ने पैठ बनाई है। इसी बात का असर है कि आप के पास आज मध्य वर्ग के साथ उस गरीब तबके का वोट है जिसके लिये लड़ने का दम कॉमरेड भरते रहे हैं।
यह दिलचस्प है कि साल भर पहले तक सीपीएम दफ्तर में सारे कार्यकर्ता केजरीवाल को लेकर नाक-भौं सिकोड़ते और मीडिया पर ताना मारा करते। वह केजरीवाल की पैठ को जानबूझ कर अनदेखा करते, लेकिन आज वही लेफ्ट फ्रंट केजरीवाल की जीत पर खुश है।
कभी सीपीएम और बाकी वामपंथी दलों का उत्तर भारत के राज्यों और खासतौर से बिहार, पंजाब और उत्तराखंड के हिस्सों में खासा प्रभाव था, लेकिन धीरे-धीरे यह प्रभाव ध्वस्त होता गया और कॉमरेड ये विलाप करते रहे कि हिंदी पट्टी में उनकी राजनीति को जात-पात की राजनीति ने निगल लिया है।
मुलायम-कांशीराम का ज़िक्र वह अक्सर करते, लेकिन सीपीएम के सुरजीत जैसे नेता गरीब औऱ कमज़ोर लोगों के पास जाने के बजाय सीपीएम दफ्तर से जोड़-तोड़ की उधेड़बुन करते रहे या फिर अलग-अलग पार्टियों को सेक्युलरिज्म का सर्टिफिकेट देते रहे।
सीपीएम के एक वरिष्ठ नेता ने एक बार मज़ाक में कहा भी था कि 'धर्मनिरपेक्षता का सर्टिफिकेट' तो गोपालन भवन से ही लेना पड़ता है। इसलिए 2004 के लोकसभा चुनावों में करीब 40 सीटें लाने वाली समाजवादी पार्टी के नेता सरकार में शामिल होने के लालच में सीधे हरिकिशन सिंह सुरजीत के दरवाज़े पर पहुंचे और कहा कि, 'मैं धर्मनिरपेक्षता के मसीहा की दहलीज़ पर आया हूं'। लेकिन आज आम आदमी पार्टी ने दिखाया है कि जनाधार बनाने के लिए ना तो सेक्युलरवाद का मसीहा बनने की ज़रूरत है और ना बीजेपी की तरह धार्मिक ध्रुवीकरण करने की।
यह सच है कि आर्थिक और सामाजिक न्याय के मामलों में लाल झंडे के नेता ज़रूरतमंदों के लिए खड़े हुए लेकिन मीडिया में उसे उतनी जगह नहीं मिली। पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों और महंगाई के मामले पर उनके कई धरने प्रदर्शन अनदेखे किए गए। लेकिन यह भी सच है कि आम आदमी पार्टी की तरह वामपंथियों ने कभी जनता से जुड़ने और मीडिया के ज़रिए संवाद स्थापित करने के अभिनव प्रयोग नहीं किए। यही वजह है कि आज समाज के दूसरे वर्गों के साथ वामपंथी सोच के लोग और उनके हमदर्द आम आदमी पार्टी की जीत में खुश हैं।
इस चुनावी नतीजे के बाद सीपीएम के कुछ नेता इस सच को समझ भी रहे हैं। इस हकीकत को स्वीकार करते हुए वरिष्ठ नेता सीताराम येचुरी ने कहा, 'पार्टी जानती है कि हम गरीब और कमज़ोर लोगों के साथ मध्य वर्ग के गुस्से को लामबंद नहीं कर पाए। अप्रैल में हो रहे पार्टी के महासम्मेलन में इस पर ज़रूर चर्चा होगी।'
केरल के वरिष्ठ नेता और पोलित ब्यूरो सदस्य एमए बेबी ने तो दफ्तर से बाहर आकर नाच गा रहे आप कार्यकर्ताओं को बधाई भी दी। बेबी ने कहा, 'सच है कि जो आप ने किया है वह हम नहीं कर पाए, जिस पर विचार करना होगा। पार्टी इस पर ज़रूर मंथन करेगी कि झुग्गी-झोपड़ी और रेहड़ी वालों से हम क्यों नहीं जुड़ पा रहे।'
आप की जीत में सीपीएम के लिए सबक है कि जातिवाद और संकीर्ण राजनीति की बेड़ियां तोड़ी जा सकती हैं। लेकिन उसके लिए वामपंथी नेताओं के एक धड़े को अपना अहंकार भी खत्म करना होगा। सीपीएम के ही एक नेता ने कहा, 'हमें सोशल मीडिया और मुख्य धारा की मीडिया में अपनी सोच और पार्टी प्रोग्राम को आगे बढ़ाने की अधिक प्रभावी नीति बनाने होगी। कुछ कामरेड मीडिया को ही वर्ग-शत्रु (क्लास एनिमी) की तरह देखते हैं, जिससे कभी भी संवाद कायम नहीं हो पाता। ये सोच बदलनी होगी।'
माना जा रहा है कि अप्रैल में सीपीएम नेता कामरेड सीताराम येचुरी पार्टी के नये महासचिव होंगे। क्या उनके एजेंडा में पार्टी को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए कोई ब्लू प्रिंट है? आम आदमी पार्टी ने वामपंथियों को एक रास्ता ज़रूर दिखाया है।
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