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JPSC Success Story: तीन बार मेन्स तक पहुंचने के बाद मिली असफलता, लेकिन नहीं मानी हार, जिद्द ने दिलाई सफलता

Success Story: सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता, मेहनत करने वाले एक न एक दिन सफल जरूर होते हैं, इसका साफ उदाहरण है सूरज कुमार, जो बोकारो जिला का गोमिया प्रखंड के हैं. 

JPSC Success Story: तीन बार मेन्स तक पहुंचने के बाद मिली असफलता, लेकिन नहीं मानी हार, जिद्द ने दिलाई सफलता
नई दिल्ली:

JPSC Success Story Suraj Kumar Rajak: हाल ही में झारखंड लोक सेवा आयोग ने सिविल सर्विस परीक्षा के फाइनल नतीजे घोषित किए. रिजल्ट जारी होने के बाद उन हजारों छात्र के सपने पूरे हुए जो उन्होंने लंबे समय से देखा था. इस परीक्षा में पास होने वाले उम्मीदवारों की अपनी-अपनी कहानी है, जो आपको एक प्रेरणा देकर जाएंगे. क्योंकि इस परीक्षा को पास करने के पहले जो मेहनत और लगन होती है उसे कोई नहीं जानता, लेकिन सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता, मेहनत करने वाले एक न एक दिन सफल जरूर होते हैं, इसका साफ उदाहरण है सूरज कुमार, जो बोकारो जिला का गोमिया प्रखंड के हैं. 

 256वां रैंक हासिल कर मां-बाप का सपना किया पूरा

ये जगह नक्सलियों के पनाह के लिए काफी चर्चा में रहता है, लेकिन इसी जगह से सूरज अफसर बनकर निकले हैं. झारखंड जेपीएससी के परीक्षा को गोमिया के 5 बच्चे बच्चियां ने अच्छे रैंकों से पास हो कर यह साबित भी कर रहे है कि यहां के लोग जंगल का ही रास्ता अख्तियार नहीं करते यह के युवक युवतियां झारखंड प्रशासनिक सेवा परीक्षा को पास कर अधिकारी बन कर राज्य के विकास में भी अपना सहभागिता निभाएंगे. गोमिया प्रखंड के थाना चौक निवासी सूरज कुमार रजक झारखंड प्रशासनिक सेवा परीक्षा में सफलता हासिल कर 256वां रैंक हासिल किया. 

तीन बार मेन्स तक पहुंचने के बाद मिली असफलता

सूरज के पिता एक प्राइवेट कंपनी में जॉब करते थे, और मां हाउस वाइफ हैं. सूरज पहले यूपीएससी की परीक्षा दे चुके हैं, लेकिन उन्हें 0.25 प्रतिशत कम नंबर की वजह से हार का सामना करना पड़ा, इस मुश्किल दौर में सूरज का परिवार उनके साथ खड़ा रहा. उन्होंने जेपीएससी की परीक्षा पास तो कर ली लेकिन यूपीएससी की ललक अबतक बनी हुई है, वे एक आखिरी बार यूपीएससी की परीक्षा में शामिल होना चाहते हैं.

सूरज बताते हैं कि जेपीएससी का सिलेबस का बड़ा  है, यहां तक यूपीएससी से भी बड़ा है. बिना कोचिंग के ही सूरज ने तैयारी की है, हालांकि उन्होंने नोट्स की मदद ली. सूरज बताते हैं कि तीन बार मेन्स तक पहुंचने के बाद इंटरव्यू क्लियर नहीं हो पाता था. घर में निराशा छा जाती थी, लेकिन चाचा आकर मोटिवेट करते थे. अंत में आपकी मेहनत रंग लेकर आती है. 

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