Jagatguru Rambhadracharya Education: हाल ही में जगद्गुरु रामभद्राचार्य और संत प्रेमानंद महाराज के बीच छिड़े विवाद चर्चा का विषय बना हुआ था.यह विवाद तब शुरू हुआ जब रामभद्राचार्य ने प्रेमानंद महाराज के संस्कृत के ज्ञान को लेकर एक बयान दिया था. कई लोगों ने इस बयान को प्रेमानंद महाराज के प्रति असम्मानजनक माना है. रामभद्राचार्य स्वयं संस्कृत और दर्शन के प्रकांड विद्वान हैं, और उनकी शिक्षा-दीक्षा उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित प्रतिष्ठित संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से हुई है.जगद्गुरु रामभद्राचार्य संस्कृत, हिंदी, उर्दू, गुजराती, अंग्रेज़ी सहित 22 भाषाओं के जानकार हैं.
इसी विश्वविद्यालय में उन्होंने वेद, दर्शन और संस्कृत व्याकरण में गहन अध्ययन किया, जिसने उनकी विद्वत्ता की नींव रखी और उन्हें जगद्गुरु की उपाधि तक पहुंचाया. वाराणसी में स्थित यह संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय देश के प्रमुख उच्च शिक्षा संस्थानों में से एक है और इसे दुनिया के सबसे बड़े संस्कृत विश्वविद्यालयों में गिना जाता है.यह संस्थान संस्कृत के अलग-अलग विषयों में ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन जैसे कोर्स करवाता है.
रामभद्राचार्य दो महीने के थे तभी चली गई थी आंखों की रौशनी
आंखों की रोशनी खोने के बावजूद, उन्होंने हायर एजुकेशन की पूरी की. इसके बाद उन्होंने धर्म और अध्यात्म का प्रचार करने के लिए रामकथाएं कहना शुरू किया और उससे प्राप्त दक्षिणा को दिव्यांगों की सेवा में समर्पित कर दिया. उन्होंने पहले मिडिल स्तर तक की पढ़ाई के लिए एक विद्यालय खोला, और बाद में उच्च शिक्षा प्रदान करने के लिए एक विश्वविद्यालय की स्थापना की, जिससे समाजहित में बड़ा योगदान दिया. इसी विश्वविद्यालय के वह आजीवन कुलाधिपति बने रहे. उन्हें दुनिया का पहला दृष्टिबाधित कुलाधिपति होने का गौरव प्राप्त है.
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