भारत के युवा पेशेवर अब अपने करियर के फैसले सिर्फ सैलरी के आधार पर नहीं, बल्कि फ्लेक्सिबिलिटी, कामकाज और पर्सनल लाइफ में बैलेंस जैसे पहलुओं को ध्यान में रखकर ले रहे हैं. एक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है. रैंडस्टैड इंडिया की रिपोर्ट ‘द जेन-Z वर्कप्लेस ब्लूप्रिंट' कहती है कि 1997 से 2012 के बीच जन्मे युवा यानी ‘जेन-जेड' लंबी शिफ्ट वाली पारंपरिक नौकरियों में कम रुचि दिखा रहे हैं और व्यक्तिगत मूल्यों से मेल खाने वाले अवसरों को प्राथमिकता दे रहे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, बेहतर वेतन, कामकाज के लचीले घंटे और निजी जिंदगी एवं काम के बीच संतुलन इस युवा पीढ़ी के लिए प्राथमिकता हैं. वहीं, अतिरिक्त छुट्टी या पारंपरिक सुविधाओं की तुलना में विदेश में दूरस्थ रूप से काम करने और यात्रा के अवसर उन्हें अधिक लुभाते हैं.
कंपनियों के लिए भी साफ मैसेज
रैंडस्टैड इंडिया के सीईओ विश्वनाथ पीएस ने कहा, वो कंपनियां जो आजीवन सीखने, समावेशी संस्कृति और लचीली नीतियों को अपनाएंगीं, वे न केवल जेन-जेड युवाओं को आकर्षित करेंगीं बल्कि भविष्य के लिए मजबूत व्यवसाय भी तैयार करने का काम किया जाएगा. रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में जेन-जेड पीढ़ी का बड़ा हिस्सा ‘परमानेंट नौकरी के साथ में कुछ और काम' करने को प्राथमिकता देता है. रैंडस्टैड डिजिटल इंडिया के मैनेजिंग डायरेक्टर मिलिंद शाह ने कहा कि इस प्रवृत्ति को लेकर अनुकूल रवैया रखने वाली टेक कंपनियां ही नई पीढ़ी की प्रतिभाओं को आकर्षित कर पाएंगी.
एआई को लेकर क्या सोचते हैं युवा?
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के संदर्भ में यह रिपोर्ट कहती है कि 82 प्रतिशत जेन-जेड पेशेवर इसे लेकर उत्साहित हैं और 83 प्रतिशत इसका इस्तेमाल समस्या समाधान के लिए कर रहे हैं. हालांकि, 44 प्रतिशत युवा इस बात को लेकर चिंता में हैं कि आगे चलकर एआई उनकी नौकरियों को प्रभावित कर सकता है. Gen-Z के लिए एआई टूल्स काफी सहज हैं और वो इनका सबसे ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, जेन-जेड के लिए नौकरी के साल नहीं, बल्कि उसमें मिलने वाला इनक्रिमेंट और रिस्पेक्ट ज्यादा जरूरी है. यह बदलाव कंपनियों के लिए एक मौके की तरह है कि वे अपने वर्क प्लेस का कल्चर और बाकी चीजों को को समय के अनुरूप ढालें.
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