
Dushyant Kumar ki Kavityane: दुष्यंत कुमार हिंदी साहित्य के उन प्रमुख कवि और गजलकारों में से एक थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं में सामाजिक, राजनीतिक और अपने विचारों को बहुत ही बखूबी रूप से लिखा. दुष्यंत कुमार की रचनाएं सही मायनों में आम आदमी की आवाज को उठाती है. व्यवस्था की खामियों पर करारा प्रहार करती हैं. दुष्यंत कुमार एक ऐसे कवि हैं जिन्होंने युवाओं को हिंदी साहित्य से जुड़ने के लिए प्रेरित किया. अगर आप साहित्य में रुचि रखते हैं तो दुष्यंत की कविताएं आपको बेहद पसंद आएगी.
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए.
बाढ़ की संभावनाएँ सामने हैं
बाढ़ की संभावनाएँ सामने हैं,
और नदियों के किनारे घर बने हैं ।
चीड़-वन में आँधियों की बात मत कर,
इन दरख्तों के बहुत नाजुक तने हैं ।
इस तरह टूटे हुए चेहरे नहीं हैं,
जिस तरह टूटे हुए ये आइने हैं ।
आपके कालीन देखेंगे किसी दिन,
इस समय तो पाँव कीचड़ में सने हैं ।
जिस तरह चाहो बजाओ इस सभा में,
हम नहीं हैं आदमी, हम झुनझुने हैं ।
अब तड़पती-सी गजल कोई सुनाए,
हमसफर ऊँघे हुए हैं, अनमने हैं ।
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