यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (UGC) मौजूदा और अगले अकादमिक सत्र के लिए गाइडलाइन्स अगले सप्ताह जारी करेगा. यूजीसी की गाइडलाइन्स दो समितियों द्वारा दिए गए सुझावों पर आधारित होंगी, जो कुछ दिन पहले बनाई गई थीं. अगर UGC इन दो समितियों की सिफारिश स्वीकार करता है तो यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में क्लासेस जुलाई के बजाए सितंबर के महीने से संचालित की जाएंगी. UGC द्वारा बनाई गईं दो समितियों ने अकादमिक कैलेंडर और परीक्षाओं के लिए अलग-अलग सुझाव दिए हैं.
इनमें से एक पैनल जिसे परीक्षा और शैक्षणिक कैलेंडर से संबंधित मुद्दों को देखने की जिम्मेदारी दी गई थी. उस पैनल ने ये सुझाव दिया है कि अकादमिक कैलेंडर जुलाई के बजाए सितंबर के महीने में शुरू किया जाना चाहिए.
वहीं, दूसरा पैनल जिसे ऑनलाइन शिक्षा से संबंधित मुद्दों पर गौर करने के लिए कहा गया था. उस पैनल ने कहा है कि यूनिवर्सिटी और कॉलेजों के लिए संभव है तो वे ऑनलाइन एग्जाम आयोजित करा सकते हैं या फिर लॉकडाउन खत्म होने के बाद संस्थान में एग्जामिनेशन आयोजित कराने की तारीखों के बारे में निर्णय ले सकते हैं.
बता दें कि अगर अकादमिक सत्र इस बार सितंबर के महीने में शुरू किया जाता है तो अकादमिक कैलेंडर कुछ महीने छोटा हो जाएगा. ये तब तक संभव नहीं है जब तक यूजीसी केवल सेलेक्टेड एग्जाम के लिए परीक्षा आयोजित करने का फैसला नहीं लेता है.
इसके लिए एक नए अकादमिक कैलेंडर और ऑनलाइन शिक्षा में सुधार की जरूरत है. इसका मतलब यही है कि यूनिवर्सिटी और कॉलेजों को डिजिटल क्लासेस और ऑनलाइन वीडियो लेक्चर्स का सहारा लेना होगा. लेकिन इसका दूसरा पहलू देखा जाए तो ऑनलाइन क्लासेस लेने में स्टूडेंट्स को काफी समस्याएं हो रही हैं. ऑनलाइन कक्षाओं में शामिल होने की मुश्किलों के बारे में स्टूडेंट्स लगातार शिकायत कर रहे हैं. हाल ही में जब दिल्ली यूनिवर्सिटी ने ऑनलाइन परीक्षा आयोजित करने की घोषणा की, तो कई छात्रों ने इसके खिलाफ शिकायत की.
वहीं, राजस्थान में जिन स्टूडेंट्स के पास ऑनलाइन क्लासेस अटेंड करने का साधन नहीं है, उनकी पढ़ाई के नुकसान की भरपाई करने के लिए राज्य के शिक्षा मंत्री ने सरकार से क्लासेस संचालित करने के लिए दूरदर्शन पर मुफ्त स्लॉट प्रदान करने का अनुरोध किया था.
वहीं, कई कोर्सेस ऐसे होते हैं, जिसमें स्टूडेंट्स को यूनिवर्सिटी के बाहर जाकर अपने प्रोजेक्ट्स पूरे करने होते हैं. अगले सत्र के लिए सिलेबस को समायोजित करने के लिए अकादमिक कैलेंडर में बदलाव किए जा सकते हैं. हो सकता है कि यूनिवर्सिटी प्रोजेक्ट के लिए दी गई अवधि को कम कर सकती है. इससे स्टूडेंट्स की प्रोफेशनल ग्रोथ पर बुरा असर पढ़ सकता है.
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