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This Article is From Jan 28, 2020

Oxford Hindi Word of the Year 2019: 'संविधान' बना वर्ष 2019 का हिंदी शब्द, जानिए क्या रही वजह

बीते साल संविधान के सिद्धांतों के प्रभाव को एक बड़े पैमाने पर महसूस किया गया और यही कारण है कि 'संविधान' (Constitution) को साल 2019 का हिन्दी शब्द चुना गया है.

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Oxford Hindi Word of the Year 2019: 'संविधान' बना वर्ष 2019 का हिंदी शब्द, जानिए क्या रही वजह
भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था.
नई दिल्ली:

ऑक्सफ़ोर्ड (Oxford) द्वारा 'संविधान' (Constitution) को साल 2019 का हिन्दी शब्द चुना गया है. 'संविधान' शब्द को साल के हिन्दी शब्द का (Oxford Hindi Word of the Year 2019) स्थान देने के पीछे खास वजह है. यह शब्द बीत साल की प्रकृति, मिजाज़, माहौल और मानसिकता को व्यक्त कर सकता है, और इसे इसके स्थायी सांस्कृतिक महत्त्व के कारण चुना गया है. Oxford Languages की वेबसाइट पर दी गए जानकारी के मुताबिक साल के हिन्दी शब्द के चुनाव के लिए ऑक्सफ़ोर्ड ने हिन्दी बोलने वालों से अपने फ़ेसबुक पृष्ठ के माध्यम से सुझाव मांगे थे. ऑक्सफ़ोर्ड ने जनवरी 2020 में हिन्दी बोलने वालों से ‘वर्ष के हिन्दी शब्द' के बारे में सुझाव मांगे, तो इसकी उत्साहजनक प्रतिक्रया हुई. जनता ने सैकड़ों विविध एवं विचारशील प्रविष्टियां भेजीं. ऑक्सफ़ोर्ड ने वर्ष के हिन्दी शब्द के चुनाव के लिए हिंदी भाषा के विशेषज्ञों के अपने परामर्शी मंडल के साथ जनता द्वारा भेजी गयी प्रविष्टियों की समीक्षा की, उनका विश्लेषण कर उन पर विचार-विमर्श किया और फिर एकमत निर्णय लिया.

‘संविधान' किसी राष्ट्र या संस्था द्वारा निर्धारित किए गए वह लिखित नियम होते हैं जिसके आधार पर उस राष्ट्र या संस्था का सुचारू रूप से संचालन किया जा सके. भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था. संविधान सभा ने 2 साल, 11 महीने और 18 दिन में हमारे संविधान को तैयार किया था.  संविधान सभा के सदस्य भारत के राज्यों की सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा चुने गए थे. जवाहरलाल नेहरू, डॉ भीमराव अंबेडकर, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे. ऑक्सफ़ोर्ड के मुताबिक वर्ष 2019 में भारत के संविधान ने भारत के आम आदमी के लिए नए सिरे से महत्व प्राप्त किया. बीते साल संविधान के सिद्धांतों के प्रभाव को एक बड़े पैमाने पर महसूस किया गया. सबसे पहले मई के महीने में संविधान के एक सिद्धांत - ‘लोकतंत्र' का प्रदर्शन आम चुनावों के दौरान लोकतांत्रिक रूप से मतदान द्वारा सरकार के चुनाव में हुआ.

कुछ समय बाद, कर्नाटक में सांसदों की अयोग्यता के मुद्दे पर असंहिताबद्ध संवैधानिक परम्पराओं की चर्चा हुई. महाराष्ट्र में संवैधानिक मूल्यों को बचाने के लिए एवं एक स्थिर सरकार सुनिश्चित करके लोकतंत्र को सुचारू रूप से चलाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने फ़्लोर टेस्ट का आदेश दिया. अयोध्या मंदिर–बाबरी मस्जिद विवाद जैसे अंतर्निहित संवैधानिक आधार के मुद्दों पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के माध्यम से संविधान के प्रभाव को महसूस किया गया.  सबरीमाला मुद्दे में एक न्यायाधीश ने टिप्पणी की थी कि प्रत्येक व्यक्ति को यह याद रखना चाहिए कि “पवित्र पुस्तक” कोई धार्मिक पुस्तक नहीं अपितु भारत का संविधान है. इसके अलावा कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का सरकार का निर्णय एक और ऐसा मुद्दा  था जिसके कारण संविधान चर्चा में रहा.

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