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This Article is From Aug 16, 2018

Atal Bihari Vajpayee: 'पहरा कोई काम न आया, रसघट रीत चला, जीवन बीत चला', पढ़ें अटल बिहारी वाजपेयी की बेहद सुंदर कविताएं

अटल बिहारी की कविता (Atal Bihari Vajpayee Poems) देश भर के लोगों को प्रेरणा देती हैं. उनकी कविताओं ने जीवन को देखने का उनका नजरिया दुनिया के सामने रखा. 

Atal Bihari Vajpayee: 'पहरा कोई काम न आया, रसघट रीत चला, जीवन बीत चला', पढ़ें अटल बिहारी वाजपेयी की बेहद सुंदर कविताएं
Atal Bihari Vajpayee Death: एम्स अस्पताल में अटल बिहारी वाजपेयी का निधन हो गया है.
नई दिल्ली:

दिल्ली के एम्स अस्पताल (Delhi AIIMS Hospital) में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का निधन (Atal Bihari Vajpayee Death) हो गया. अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) ने दिल्ली के एम्स अस्पताल में गुरुवार की शाम 5 बजकर 5 मिनट पर आखिरी सांस ली. अटल बिहारी वाजपेयी 11 जून से एम्स में भर्ती थे. वाजपेयी जी (Vajpayee) ने कई कविताएं लिखी. अटल बिहारी वाजपेयी की कविता (Atal Bihari Vajpayee Poems) देश भर के लोगों को प्रेरणा देती हैं. उनकी कविताओं ने जीवन को देखने का उनका नजरिया दुनिया के सामने रखा. यहां पर जानिए अटल बिहारी वाजपेयी की कुछ मशहूर और बेहद सुंदर कविताएं.

अटल बिहारी वाजपेयी की 5 बेहद सुंदर कविताएं (Atal Bihari Vajpayee Poems/Atal Bihari Vajpayee Hindi Poems)

1. गीत नहीं गाता हूँ


बेनकाब चेहरे हैं दाग बड़े गहरे है,
टूटता तिलस्म आज सच से भय खाता हूं,
गीत नहीं गाता हूं.

लगी कुछ ऐसी नज़र,
बिखरा शीशे सा शहर,
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं.
गीत नहीं गाता हूं.

पीठ में छुरी सा चांद,
राहु गया रेख फांद,
मुक्ति के क्षणों में बार बार बंध जाता हूं.
गीत नहीं गाता हूं.

2. क्या खोया, क्या पाया जग में

क्या खोया, क्या पाया जग में,
मिलते और बिछड़ते मग में,
मुझे किसी से नहीं शिकायत,
यद्यपि छला गया पग-पग में,
एक दृष्टि बीती पर डालें, यादों की पोटली टटोलें.

पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी,
जीवन एक अनन्त कहानी
पर तन की अपनी सीमाएं,
यद्यपि सौ शरदों की वाणी,
इतना काफी है अंतिम दस्तक पर खुद दरवाजा खोलें.

जन्म-मरण का अविरत फेरा,
जीवन बंजारों का डेरा,
आज यहां, कल कहां कूच है,
कौन जानता, किधर सवेरा,
अंधियारा आकाश असीमित, प्राणों के पंखों को तौलें.
अपने ही मन से कुछ बोलें.

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3. एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया,
झुलासाता जेठ मास.
शरद चांदनी उदास.
सिसकी भरते सावन का.
अंतर्घट रीत गया.
एक बरस बीत गया.

सीकचों मे सिमटा जग.
किंतु विकल प्राण विहग.
धरती से अम्बर तक.
गूंज मुक्ति गीत गया.
एक बरस बीत गया.

पथ निहारते नयन,
गिनते दिन पल छिन,
लौट कभी आएगा,
मन का जो मीत गया,
एक बरस बीत गया.

4. जीवन बीत चला

कल कल करते आज,
हाथ से निकले सारे,
भूत भविष्यत की चिंता में,
वर्तमान की बाजी हारे.

पहरा कोई काम न आया,
रसघट रीत चला,
जीवन बीत चला.

हानि लाभ के पलड़ों में,
तुलता जीवन व्यापार हो गया,
मोल लगा बिकने वाले का,
बिना बिका बेकार हो गया.

मुझे हाट में छोड़ अकेला,
एक एक कर मीत चला,
जीवन बीत चला,

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5. सच्चाई यह है कि

सच्चाई यह है कि
केवल ऊँचाई ही काफ़ी नहीं होती,
सबसे अलग-थलग,
परिवेश से पृथक,
अपनों से कटा-बँटा,
शून्य में अकेला खड़ा होना,
पहाड़ की महानता नहीं, ,मजबूरी है.

ऊँचाई और गहराई में
आकाश-पाताल की दूरी है.
जो जितना ऊँचा,
उतना एकाकी होता है,
हर भार को स्वयं ढोता है,
चेहरे पर मुस्कानें चिपका,
मन ही मन रोता है.

VIDEO: 'पहरा कोई काम न आया, रसघट रीत चला, जीवन बीत चला...'


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