भारत की सबसे कामयाब फिल्मों में से एक ‘शोले' ना सिर्फ देश की सफलतम फिल्मों में गिनी जाती है, बल्कि टाइम्स मैगजीन ने इसे उन 100 फिल्मों में शामिल किया है जिन्हें जरूर देखना चाहिए. भारतीय सिनेमा के इतिहास में जो मक़ाम ‘शोले' ने पाया, वह शायद ही किसी और फिल्म को मिल पाया हो. इसके पीछे निर्देशन, कहानी और पटकथा के साथ-साथ इसके कलाकार और उनके निभाए किरदार एक बड़ी वजह रहे. लेकिन अफसोस, इस साल ‘शोले' के दो अहम कलाकार दुनिया को अलविदा कह गए और वह भी सिर्फ 34 दिनों के भीतर.
इस साल सबसे पहले, 20 अक्टूबर को ‘शोले' के अंग्रेजों के जमाने के जेलर असरानी को फिल्म जगत और दर्शकों ने खोया. उसके बाद 24 नवंबर को ‘शोले' के वीरू यानी धर्मेंद्र इस दुनिया को अलविदा कह गए. दोनों के अंतिम सफर की एक समानता दुखद रही इनके चाहने वाले उनके अंतिम दर्शन नहीं कर पाए. असरानी का निधन दिवाली के दिन 20 अक्टूबर को हुआ. पटाखों के शोर में उनकी मौत की खबर दब गई. इसकी एक वजह यह भी रही कि उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनका अंतिम संस्कार शांतिपूर्वक और बिना किसी शोर-शराबे के किया जाए. यही कारण रहा कि परिवार की ओर से कोई बयान सामने नहीं आया और ना ही उनकी अंतिम यात्रा की कोई तस्वीर. दिवाली के अगले दिन दुनिया को पता चला कि बॉलीवुड का एक महान कलाकार चुपचाप चला गया.
दूसरी ओर, धर्मेंद्र की बीमारी की जानकारी सभी को थी. मीडिया लगातार हर हलचल पर नजर रखे हुए था. इसके बावजूद उनका अंतिम संस्कार जल्दबाज़ी में कर दिया गया. कैमरों के सामने सब कुछ होते हुए भी, फैन्स और मीडिया परिवार की ओर से किसी आधिकारिक बयान का इंतजार करते रहे. श्मशान में जमा फैन्स ने भी यह दुख जताया कि उन्हें अपने चहेते कलाकार के अंतिम दर्शन का मौक़ा नहीं मिला. आंखें नम थीं, चेहरों पर निराशा साफ दिख रही थी. फिर भी उम्मीद है कि शायद चौथे या प्रेयर मीट की सूचना मिले और वे उस आख़िरी याद में शामिल हो सकें.
करोड़ों लोग धर्मेंद्र के प्रशंसक रहे हैं. सब कुछ उनके सामने होते हुए भी, उनका अंतिम संस्कार उस सम्मान के साथ नहीं हो पाया जिसकी एक सुपरस्टार को विदाई देते समय अपेक्षा की जाती है. फैन्स को उम्मीद थी कि उन्हें राजकीय सम्मान मिलेगा, पर सब कयास ही लगाते रह गए. ‘शोले' भले ही 1975 में रिलीज़ हुई थी, पर पचास साल बाद भी इसकी चमक जरा भी फीकी नहीं पड़ी. ‘शोले' के बाद इन कलाकारों ने सैकड़ों फिल्में कीं, पर दर्शक आज भी उन्हें ‘अंग्रेजों के ज़माने के जेलर' और वीरू के नाम से ही याद करते हैं. हिंदी सिनेमा के इतिहास और दर्शकों के दिलों पर ‘शोले' की छाप अमिट है. इसके कलाकारों का असर आज भी वैसा ही है एक ऐसा नशा जो दर्शकों के दिलों से कभी उतरने वाला नहीं.
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