15 अगस्त 1988 का दिन था. पूरा देश आजादी की वर्षगांठ हर्षोल्लास के साथ मना रहा था. ये वो दौर था जब मनोरंजन के साधन सीमित थे. दूरदर्शन ही वो जरिया था जहां से मनोरंजन की डोज हमें मिलती थी. उस पर आने वाली फिल्में, समाचार, गीत और यहां तक कि विज्ञापन भी कुछ खास मायने रखते थे. इस दिन प्रधानमंत्री का संबोधन खत्म होने के बाद दूरदर्शन पर राष्ट्रीय एकता के एक गीत ने दस्तक दी. इसके बोल, इसमें नजर आने वाली हस्तियां और पूरा माहौल बेमिसाल था. संगीत, खेल और सिनेमा जगत समेत कई क्षेत्रों की नामचीन हस्तियों को इस अंदाज में देखना नया अनुभव था. यह गीत कुछ इस तरह से जेहन में उतरा कि देश की धड़कन बन गया. इसके शब्द हर किसी की जुबां पर चढ़ गए. इस गीत के मायने इतने गहरे थे कि आज भी प्रासंगिक हैं. हम बात कर रहे हैं विविधता में एकता की मिसाल समेटे 'मिले सुर मेरा तुम्हारा' गीत की. इस मशहूर गीत को लिखा था पीयूष पांडे ने और इसका म्यूजिक कंपोज किया था पंडित भीमसेन जोशी और अशोक पटकी ने.
'मिले सुर मेरा तुम्हारा' के बोल...
मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा
सुर की नदियाँ हर दिशा से बहते सागर में मिलें
बादलों का रूप ले कर बरसे हल्के हल्के
मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा
मिले सुर मेरा तुम्हारा …
मिले सुर मेरा तुम्हारा …
इस गाने को 14 भारतीय भाषाओं हिंदी, असमी, तमिल, तेलुगू, कश्मीरी, पंजाबी, सिन्धी, उर्दू, कन्नड़, मलयालम, बांग्ला, ओडिया, गुजराती और मराठी में गाया था. इसमें अमिताभ बच्चन, जितेंद्र, मिथुन चक्रवर्ती, हेमा मालिनी, तनूजा समेत कई सिनेमा जगत की कई हस्तियां इस गीत में नजर आईं. उनके अलावा खिलाड़ियों में सुनील गावस्कर, पीटी उषा, कपिल देव, प्रकाश पादुकोण और मिल्खा सिंह जैसे कई दिग्गज दिखे. पहली बार राष्ट्रीय एकता के संदेश को इस खूबसूरती के साथ पिरोया गया था.
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दूरदर्शन पर किसी भी प्रोग्राम और खासकर समाचार से पहले ये राष्ट्रीय एकता का संदेश आया करता था. इसके पीछे की सोच और उस सोच को शब्दों में उतारने का हुनर दिखाया था पीयूष पांडे ने. पीयूष पांडे ने इस तरह का जादू चलाकर इशारा कर दिया था कि अंग्रेजी से चलने वाली विज्ञापनों की दुनिया में हिंदी के जरिये वो भविष्य में बड़े-बड़े जादू करने वाले हैं.
इस विज्ञापन को पीयूष पांडे ने अपने जीवन का सबसे यादगार काम बताया था. उन्होंने कहा था कि इसमें देश भर के बहुत सारे लोग शामिल थे और अभियान ने मूल रूप से यह संदेश दिया कि अगर हम सब एक साथ आएं, तो राष्ट्र के तौर पर हम और बेहतर बनेंगे. दिलचस्प यह है कि उनके इस गीत के 17 ड्राफ्ट रिजेक्ट हुए थे और 18वां जाकर ओके हो पाया था. बेशक ये शब्द आज भी सुने जाते हैं. लेकिन 24 अक्तूबर, 2025 वो दिन है जिस दिन राष्ट्रीय एकता को सादगी के साथ राष्ट्रीय चेतना में उतारने वाले पीयूष पांडे ने दुनिया को अलविदा कह दिया. लेकिन उनका काम हमेशा गूंजता रहेगा.
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