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कश्मीर में आतंकियों से मुठभेड़ में पिता हुए शहीद, अब बेटी है देश की टॉप एक्ट्रेस, 3 दिन में फिल्म ने कमाए 235 करोड़

रुक्मिणी वसंत के पिता, कर्नल वसंत वेणुगोपाल, कर्नाटक के पहले ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें भारत के सर्वोच्च शांतिकालीन सैन्य सम्मान, अशोक चक्र से सम्मानित किया गया था.

कश्मीर में आतंकियों से मुठभेड़ में पिता हुए शहीद, अब बेटी है देश की टॉप एक्ट्रेस, 3 दिन में फिल्म ने कमाए 235 करोड़
रुक्मिणी वसंत, कंतारा चैप्टर-1 से धूम मचा रही हैं
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नई दिल्ली:

कर्नाटक और बेंगलुरु में पली-बढ़ी रुक्मिणी वसंत इस वक्त अपनी फिल्म कंतारा चैप्टर-1 की सक्सेस को लेकर सुर्खियों में हैं. अब जिस तरह उनकी फिल्म दर्शकों को इम्प्रेस कर रही है उसी तरह उनकी पर्सनल लाइफ भी किसी इंस्पिरेशन से कम नहीं. एक फौजी परिवार में जन्मी रुक्मिणी के पिता, कर्नल वसंत, देशभक्ति की मिसाल थे. उनकी कहानियों ने रुक्मिणी के दिल में साहस और सपनों का बीज बोया. 

2007 में शहीद हुए पिता

रुक्मिणी वसंत के पिता, कर्नल वसंत वेणुगोपाल, कर्नाटक के पहले ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें भारत के सर्वोच्च शांतिकालीन सैन्य सम्मान, अशोक चक्र से सम्मानित किया गया था. वे 2007 में जम्मू और कश्मीर के उरी में भारत-पाकिस्तान सीमा पार करने वाले भारी हथियारों से लैस घुसपैठियों को रोकते हुए शहीद हो गए थे. उनकी मां सुभाषिनी वसंत, एक कुशल भरतनाट्यम डांसर हैं, जिन्होंने कर्नाटक में युद्ध विधवाओं की सहायता के लिए एक संस्था की स्थापना की है.

बचपन में वह स्कूल के नाटकों में चमकती थी लेकिन उनका असली सफर तब शुरू हुआ जब वह लंदन के रॉयल अकादमी ऑफ ड्रामेटिक आर्ट में एक्टिंग सीखने पहुंचीं. वहां की स्टेज आर्ट ने उन्हें निखारा लेकिन उनका दिल ने उन्हें हमेशा भारतीय सिनेमा की तरफ खींचा.

भारत लौटकर रुक्मिणी ने कन्नड़ फिल्म बीरबल से शुरुआत की लेकिन स्टारडम उन्हें ‘सप्त सागरदा आलेदगु' से मिला. उनकी सादगी और गहरी भावनाओं ने दर्शकों को बांध लिया. लेकिन ‘कांतारा: चैप्टर 1' में उनके किरदार ने उन्हें रातोंरात स्टार बना दिया. इस फिल्म में उन्होंने कंकावती का किरदार निभाया. एक ऐसी योद्धा राजकुमारी, जिसने जंगल और संस्कृति की रक्षा के लिए तलवार उठाई. रुक्मिणी ने किरदार की गहराई को समझने के लिए यक्षगान नृत्य सीखा और घुड़सवारी में महारत हासिल की. डायरेक्टर ऋषभ शेट्टी ने उनकी मेहनत को “जंगल की आत्मा” कहा.

शूटिंग के दौरान रुक्मिणी ने स्थानीय लोककथाओं के बारे में पढा और जाना ताकि कंकावती का दर्द और साहस जीवंत हो सके. एक सीन में बारिश में घायल कंकावती का गुस्सा और आंसुओं का एक साथ दिखना दर्शकों के रोंगटे खड़े कर गया. ऑफ-स्क्रीन रुक्मिणी बेहद सादगी भरी हैं. वह किताबें पढ़ना और अपने कुत्ते टॉफी के साथ समय बिताना पसंद करती हैं.

रुक्मिणी की यह फिल्म जर्नी सिखाती है कि सपने तभी सच होते हैं, जब मेहनत और जुनून साथ हों. कांतारा की सफलता के बाद हो सकता है कि अब वह बॉलीवुड की तरफ भी कदम बढ़ाएं.

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