बॉलीवुड के जाने माने और दिग्गज कलाकार अनुपम खेर एक फिलॉसफी पर यकीन करते हैं. ये फिलोस्फी है ‘कुछ भी हो सकता है'. ये तजुर्बा भी उन्हें शायद अपनी जिंदगी का सफर देखकर ही हुआ हो, जिसके बाद उन्होंने इस फिलोस्फी पर किताब भी लिखी और एक बेहतरीन टॉक शो भी किया. अनुपम खेर का पहाड़ी वादियों से निकलकर ऊंची ऊंची इमारतों वाली माया नगरी में आने और कामयाब होने का सफर भी वाकई इसी फिलॉसफी पर बेस्ड नजर आता है.
अनुपम खेर खुद अपने स्ट्रगल के दिनों के बारे में खुलकर बातचीत कर चुके है. एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि वो जब घर से मुंबई के लिए निकले तब जेब में केवल 37 रुपये थे. वो कहते हैं एक जंगल विभाग में काम करने वाले कर्मचारी का बच्चे के पास इससे ज्यादा रु. कैसे होते. मुंबई आए तो काम की शुरुआत भी सारांश जैसी फिल्मों से ही हुई, जिसमें तकरीबन 25 साल की उम्र में उन्होंने बुजुर्ग का किरदार अदा किया. लेकिन यही लाइफ का टर्निंग प्वाइंट बना. आज अनुपम खेर 500 से ज्यादा फिल्में कर चुके हैं. हॉलीवुड में भी उनकी गाड़ी तेजी से आगे बढ़ रही है.
अपने दोस्त सतीश कौशिक के गुजर जाने के बाद अनुपम खेर फिर इस फलसफे पर यकीन करने को मजबूर हुए कि जिंदगी में कुछ भी हो सकता है. अनुपम खेर कहते हैं कि वो काम में कितना भी मशरूफ रहें अब अपने दोस्तों के साथ वक्त बिताना नहीं भूलते. कुछ ही दिन पहले उन्होंने अपने पुराने दोस्त के फॉर्म हाउस पर लंबा वक्त बिताया. ताकि बाद में ये मलाल न रहे कि किसी जिगरी दोस्त को समय नहीं दे सके.
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