
भारतीय सिनेमा में ऐसी कुछ ही हस्तियां हैं, जिनकी जिन्दगी खुद एक फिल्म की तरह लगती है- उतार-चढ़ाव, विद्रोह, प्रेम, संघर्ष और जीत से भरपूर. जोहरा सहगल उन्हीं में से एक थीं. एक रूढ़िवादी मुस्लिम परिवार में 27 अप्रैल 1912 को उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में जन्मी जोहरा, बचपन से ही सामाजिक बंदिशों को तोड़ने वाली शख्सियत रहीं. एक साल की उम्र में आंखों की रोशनी खो दी, लेकिन इलाज से रोशनी लौटी. मां को खोने के बाद पिता ने उन्हें पाला और कम उम्र से ही उनमें कुछ अलग करने का जुनून दिखने लगा.
पढ़ाई में होशियार जोहरा पर परिवार ने कम उम्र में शादी का दबाव डाला, तो स्कूल के प्रिंसिपल ने भी उन्हें 10वीं में तीन बार फेल कर दिया. शायद ये उनके सपनों को कुचलने की साजिश थी. लेकिन जोहरा ने हार नहीं मानी. मामा के सहयोग से यूरोप पहुंचीं, जहां उन्होंने बैले डांस की ट्रेनिंग ली और विश्वविख्यात डांसर उदय शंकर के साथ दुनियाभर में परफॉर्म किया.
भारत लौटने पर उनकी मुलाकात कामेश्वर सहगल से हुई- एक युवा हिंदू डांसर, जो उनसे 8 साल छोटे थे. दोनों में प्रेम हुआ और 1942 में शादी कर ली. यह शादी अपने समय के लिहाज से क्रांतिकारी थी. एक मुस्लिम महिला और हिंदू पुरुष का मिलन, वो भी उस दौर में जब सांप्रदायिकता अपने चरम पर थी. उनकी शादी में जवाहरलाल नेहरू शामिल होने वाले थे, लेकिन 'भारत छोड़ो आंदोलन' के चलते 9 अगस्त को गिरफ्तार हो गए. दंगे और फसाद के बीच जोहरा की शादी हुई और उनकी शादी में केवल एक ही मेहमान शामिल हुआ.
शादी के बाद जोहरा लाहौर गईं, पर बंटवारे के बाद हालात बिगड़े तो मुंबई आना पड़ा. अपने छोटे बच्चे को लेकर उन्होंने फिर से करियर शुरू किया. उन्होंने थिएटर, टीवी और सिनेमा में दशकों तक काम किया. 'दिल से', 'हम दिल दे चुके सनम', 'चीनी कम' जैसी फिल्मों में जोहरा की मौजूदगी हमेशा याद की जाती रहेगी.
अमिताभ बच्चन उन्हें प्यार से '100 साल की बच्ची' कहते थे और शायद इस नाम के पीछे उनकी वही जिंदादिली थी, जो 15 अगस्त 1947 की रात उन्हें सड़कों पर आजादी का जश्न मनाते हुए नाचने पर मजबूर कर गई. 102 साल की उम्र तक जीवंत और सक्रिय रहीं जोहरा सहगल, सिर्फ एक एक्ट्रेस नहीं थीं, वो एक विचार थीं- आजाद सोच, कला और इंसानियत का जीवंत उदाहरण.
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