तीन दिसंबर को International Day of Persons with Disabilities के तौर पर मनाया जाता है. 1992 में संयुक्त राष्ट्र ने यह दिन इसलिए तय किया था ताकि इसके बहाने आम लोगों और सरकारों के बीच अलग से शारीरिक और मानसिक तौर पर सक्षमता को लेकर समझ बने और उनके हिसाब से अधिकारों की समझ समाज में बने. ताकि अगर जब हम देखें कि कोई इमारत, कोई सड़क या बाज़ार या दफ्तर इस लिहाज़ से न हो तो पहला सवाल ये दिमाग में आए कि इसका न होना, संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन है. कुछ दिन पहले मैं कैलिफोर्निया गया था. वहां के मांटेरे में एक पब्लिक बस देखी. मैं हैरान हो गया पूरी प्रक्रिया को देखकर. बस का ड्राईवर पूरी ज़िम्मेदारी से शारीरिक रूप से बेहद कमज़ोर हो चुके एक बुज़ुर्ग को हाइड्रोलिक लिफ्ट के ज़रिए उन्हें बस में चढ़ा रहा था. बस में ऐसी लिफ्ट को होना ही मेरे लिए सुखद आश्चर्य था. गर्व हुआ कि ये हासिल किया जा सकता है. एक बात और समझ आई. जब सिस्टम पर भरोसा हो तो कोई उम्र के इस पड़ाव पर अकेले बाजार जा सकता है. आप वीडियो देखेंगे तो पता चलेगा कि इस उम्र के बुज़ुर्ग को हम लोग शायद ही अकेले बाहर जाने दें क्योंकि बाहर सिस्टम नदारद है. आप ये वीडियो देखिए. फिर मांग कीजिए कि भारत में ये क्यों नहीं हो सकता है.