'मुंशी प्रेमचंद'

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  • India | NDTVKhabar.com टीम |गुरुवार अगस्त 4, 2016 12:08 AM IST
    ऐसा समारोह मैंने अपने जीवन में कभी नहीं देखा था. महात्माजी के दर्शनों का यह प्रताप था, कि मुझ जैसा मरा आदमी भी चेत उठा. उसके दो ही चार दिन बाद मैंने अपनी बीस साल की नौकरी से इस्तीफा दे दिया.
  • Social | NDTVKhabar.com टीम |रविवार जुलाई 31, 2016 11:17 AM IST
    कथाकार मुंशी प्रेमचंद की 136वीं सालगिरह पर गूगल इंडिया ने उन्हें अनोखे तरीके से याद किया है. सबसे बड़े सर्च इंजन ने अपने होम पेज पर प्रेमचंद के प्रसिद्ध उपन्यास 'गोदान' का डूडल लगाया है.
  • India | Reported by: भाषा |रविवार जुलाई 31, 2016 06:39 AM IST
    साहित्य के साथ गुलजार के रिश्ते में मुंशी प्रेमचंद का सबसे अधिक प्रभाव रहा है और प्रख्यात कवि-गीतकार का मानना है कि एक सदी बीत जाने के बाद भी प्रेमचंद की कृतियों ने अपनी प्रासंगिकता नहीं गंवाई है.
  • India | रविवार अगस्त 2, 2015 12:04 AM IST
    एक सदी पहले जब मुंशी प्रेमचंद का नन्हा किरदार हामिद ‘ईदगाह’ जा रहा था, तो उसके जीवन की सबसे बड़ी विडंबना गरीबी और यतीम होना थी, लेकिन उसके बालसुलभ हौसले के दीये को मुंशी जी ने गुरबत की आंधी में बुझने नहीं दिया।
  • Blogs | शुक्रवार जुलाई 31, 2015 09:05 PM IST
    देश का मीडिया मुंबई बम काण्ड के दोषी याकूब मेमन की फांसी पर बहस मुबाहिसों में फंसा हुआ है। उसके पास उस सामाजिक सरोकार के लिए उतना समय नहीं है, जिसे मुंशी प्रेमचंद ने अपनी कथावस्तु बनाया था।
  • India | शुक्रवार जुलाई 31, 2015 01:13 PM IST
    'लिव इन रिलेशन' जैसे संबंध आज के दौर में सामने आए हैं, लेकिन प्रेमचंद ने तो उस जमाने में जब 'गौना' के बगैर पति-पत्नी आपस मे मिल भी नहीं सकते थे, 'मिस पद्मा' जैसी कहानी लिखी जिसका विषय 'लिव इन रिलेशन' है।
  • India | शुक्रवार जुलाई 31, 2015 01:14 PM IST
    मुंबई की 'आइडियल ड्रामा एंड इंटरटेनमेंट एकेडमी' (आइडिया) मुंशी प्रेमचंद की कहानियों का नाट्य रूपांतरण और प्रदर्शन इसलिए भी करती है क्योंकि इससे न सिर्फ नए कलाकारों की हिन्दी की समझ बेहतर होती है बल्कि उनके उच्चारण भी सुधर जाते हैं।
  • India | शुक्रवार जुलाई 31, 2015 12:24 AM IST
    भारतीय मनोरंजन उद्योग के केंद्र मुंबई में फिल्म के विषय, निर्माण की तकनीक के बेहद विकसित हो जाने के बावजूद रंगमंच पर प्रेमचंद आज भी अपने खासे असर के साथ मौजूद हैं। मुंबई में प्रेमचंद की कहानियों की रंगमंचीय प्रस्तुतियों का सिलसिला कई दशकों से अनवरत चल रहा है।
  • India | शनिवार अप्रैल 25, 2015 11:49 PM IST
    एक प्रचलित कहावत है कि 'किसी के पेट पर लात मत मारो भले ही उसकी पीठ पर लात मार दो।' मगर इस देश में आज से नहीं, सदियों से, गुलामी से लेकर आजादी तक, पाषाण युग से लेकर आज वैज्ञानिक युग तक, बस एक ही काम हो रहा है और वह काम यह है कि हम अपने अन्नदाता, अपने पालनहार, किसान के पेट पर लात मारते ही चले जा रहे हैं।
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