लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार अभियान को मानो अनाप-शनाप की बहसों और हजारों करोड़ रुपये के विज्ञापन के अलावा किसी और चीज की जरूरत नहीं महसूस नहीं होती, लेकिन ऐसे में इसमें साहित्य का एक छौंक लगाने की कोशिश करती मुंशी प्रेमचंद के गांव लमही से रवीश की यह रिपोर्ट...