कंजंक्टिवाइटिस: 'पिंक आई' के कारण, ट्रीटमेंट और रोकथाम पर एक नज़र
एनडीटीवी-डेटॉल बनेगा स्वस्थ इंडिया ने शार्प साइट आई हॉस्पिटल्स के आई स्पेशलिस्ट, डायरेक्टर और को-फाउंडर डॉ. कमल बी कपूर से बात की. और जाना कि किसी को कंजंक्टिवाइटिस कैसे होता है, जिसे आमतौर पर "पिंक आई" के नाम से भी जाना जाता है, इस इंफेक्शन के फैलने में मौसम की क्या भूमिका होती है. और इसका ट्रीटमेंट क्या होता है.
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दूषित पानी के आंखों के संपर्क में आने का एक अन्य तरीका यह है कि जब सड़कें पानी से भर जाती हैं और इसपर से गुजरने वाले वाहनों के टायर पानी की पतली बूंदों को सोख लेते हैं, जिसे एरोसोलिंग कहा जाता है. डॉ. कपूर ने बताया कि ये गंदे पानी की बूंदें आंखों को भी संक्रमित कर सकती हैं.
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कंजंक्टिवाइटिस के ट्रीटमेंट में आई स्पेशलिस्ट या नेत्र रोग विशेषज्ञ द्वारा निर्धारित आई ड्रॉप का उपयोग शामिल है. आवश्यक मात्रा में आई ड्रॉप डालना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह रिकवरी प्रोसेस को प्रभावित करता है. संक्रमित व्यक्ति को दिन में चार से पांच बार साफ उबले ठंडे पानी या फिल्टर पानी से आंखों को धोना चाहिए.
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मॉनसून के मौसम में लोगों को आंखों को छूने से बचना चाहिए और दिन में बार-बार हाथों को साफ करना चाहिए. आंखों पर छींटे मारने के लिए नल के पानी के बजाय फ़िल्टर किए गए पानी का उपयोग करने से भी संभावित संक्रमण को रोका जा सकता है. संक्रमित व्यक्ति के साथ तौलिए, रूमाल या अन्य पर्सनल सामान शेयर करने से बचना चाहिए.