'ग्रीन द रेड' प्रोजेक्ट: कमर्शियल सेनेटरी नैपकिन छोड़ें लड़कियां, इको फ्रेंडली नैपकिन अपनाएं

सेनेटरी पैड को डिसपोज करना हमेशा से ही एक बड़ा मुद्दा रहा है. कोई जहां इसे इधर-उधर फेंककर इससे पीछा छूटाना चाहता है तो कई इसे फ्लश में बहाकर अपनी जिम्‍मेदारी से मुक्त हो जाता है. लेकिन क्‍या वाकई आपको लगता है कि इन तरीकों से आप अपनी जिम्‍मेदारी से मुक्‍त हो सकते हैं और क्‍या कारण है कि यह पैड्स अब डिकम्‍पोज नहीं हो पा रहे हैं.

'ग्रीन द रेड' प्रोजेक्ट: कमर्शियल सेनेटरी नैपकिन छोड़ें लड़कियां, इको फ्रेंडली नैपकिन अपनाएं

नई दिल्‍ली:

सेनेटरी पैड को डिसपोज करना हमेशा से ही एक बड़ा मुद्दा रहा है. कोई जहां इसे इधर-उधर फेंककर इससे पीछा छूटाना चाहता है तो कई इसे फ्लश में बहाकर अपनी जिम्‍मेदारी से मुक्त हो जाता है. लेकिन क्‍या वाकई आपको लगता है कि इन तरीकों से आप अपनी जिम्‍मेदारी से मुक्‍त हो सकते हैं और क्‍या कारण है कि यह पैड्स अब डिकम्‍पोज नहीं हो पा रहे हैं.
 
इनडीटीवी.कॉम पर थॉमसन रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक दरअसल कुछ साल पहले तिरुवनंतपुरम में सेंटर फॉर डेवेलपमेंट स्टडीज के मैनेंटस स्टाफ ने सैनिटरी पैड में बदलाव देखा. स्‍टाफ ने पाया कि इस इन पैड्स को डिकम्‍पोज करने का कोई भी तरीका काम नहीं कर पा रहा है. 1970 में पर्यावरण के अनुकूल वास्तुकार लॉरी बेकर द्वारा डिजाइन किए गए कैम्‍पस के परिसर में यह पैड्स गड्डों में भरे पड़े थे.
 
थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन की प्रोफेसर जे देविका कहती हैं कि हमें यह समझने में कुछ देर लग गई कि निर्माता पैड में गैर-बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक की मात्रा बढ़ा रहे थे. शायद यही कारण था कि इनसे निपटने के सभी प्रयास अचानक विफल हो रहे थे. जिसके बाद परिसर समिति ने समस्या से छुटकारा पाने के लिए छात्रों से बात की.

आज छात्र और छात्राएं दोनों ही तिरुवनंतपुरम के सामूहिक प्रयास ‘ग्रीन द रेड’ का हिस्सा हैं, जो शहर के नागरिक प्राधिकरण द्वारा प्रोत्साहित एक स्थायी माहवारी परियोजना है. जिसके तहत शहर में जगह-जगह वेंडिंग मशीनें लगाई गई हैं. जिसके जरिए महिलाओं में इको-फ्रेंडली नेपेकिन के प्रति जागरूकता फैलाई जा रही है.
 
केरल में तिरुवनंतपुरम की उप महापौर राखी रविकुमार कहती हैं, अगले एक महीने में हम स्‍कूलों, कॉलेजों और सार्वजनिक स्थानों में वेंडिंग मशीनों को रखने की कोशिश कर रहे हैं जो महिलाओं को 10 रुपये के तीन पैड उपलब्ध कराएगी.
 
आमतौर पर महिलाए महावारी के दौरान पुरानी साड़ी, टॉवल को पैड के रूप में इस्‍तेमाल करती थीं. इन कपड़ों को महिलाएं लम्‍बे समय तक धोकर प्रयोग कर लिया करती थीं. पर अब जागरूकता बढ़ने के चलते महिलाएं सेनेटरी पैड का प्रयोग करने लगती हैं. मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.
 
केरल कलेक्टिव के सस्टेनेबल मेनस्ट्रायन के श्रद्धा श्रीजय ने कहा, हमने धीरे-धीरे इस बारे में जनता से बात करनी शुरू की. जिसके बाद हमें अहसास हुआ कि ज्‍यादातर महिलाएं कॉटन से बने पैड प्रयोग कर रही हैं. इनमें 90 फीसदी प्‍लास्टिक का इस्‍तेमाल किया गया था, जिसके कारण इनका निपटान करना लगभग असंभव था.
 
देविका कहती हैं कि हम कैम्‍पस में कुछ महीनों से व्यावसायिक सेनेटरी पैड का इस्तेमाल करने के मुद्दे पर काम कर रहे हैं. ये इको फ्रेंडली प्रोड्क्‍टस कैम्‍पस में असानी से उपल्‍बध कराए जा रहे हैं.


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