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This Article is From Dec 29, 2019

नवाबों के शहर लखनऊ में बढ़ रहा ड्रम का क्रेज, इसकी ताल के दीवाने हो रहे लोग

तन्मय के साथ ड्रम बजाने वाले अवनीश मिश्रा के अनुसार भारत में तबला, ढोलक, पखावज, बांगो, कांगो को लेकर तो उत्साह है, लेकिन अन्य ताल वाद्य यंत्र उतना लोकप्रिय नहीं हो सके. 

नवाबों के शहर लखनऊ में बढ़ रहा ड्रम का क्रेज, इसकी ताल के दीवाने हो रहे लोग
ताल संगीत की देन है ड्रम.
लखनऊ:

ताल संगीत की देन है ड्रम और उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की राजधानी लखनऊ (Lucknow) में इन दिनों ड्रम का क्रेज तेजी से बढ़ रहा है. विशेषकर स्कूली बच्चे हिन्दुस्तानी या अफ्रीकी ड्रम लेकर किसी पार्क या सार्वजनिक स्थल पर इसकी ताल से कदम मिलाकर नाचते दिखाई देते हैं. नवाबों के शहर में ड्रम की पहचान बनाने वाले या यूं कहें कि ड्रम को स्थापित करने वाले अंतरराष्ट्रीय ड्रमर तन्मय मुखर्जी ने 'भाषा' को दिए इंटरव्यू में कहा, ''शरीर बीट्स पर आधारित है. दिल धड़कता है तो रिदम है. सांसें चलती हैं तो रिदम है और हम पैदल चलते हैं तो भी रिदम है. भगवान ने मनुष्य शरीर की रचना ही रिदम के आधार पर की है.'' 

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उन्होंने कहा कि राजधानी में वह स्कूली बच्चों को ड्रम का प्रशिक्षण देते हैं. इस समय वह करीब 50 हजार बच्चों को प्रशिक्षित कर रहे हैं. सुनिधि चौहान और शाहरूख खान जैसे कलाकारों के साथ मंच पर अपनी कला प्रस्तुत कर चुके तन्मय राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ड्रम की बदौलत अपनी पहचान बना चुके हैं. उन्होंने सिंगापुर, मलेशिया, दुबई, हांगकांग और अमेरिका में कई शो किए हैं. वायलिन बजाने में पारंगत और संगीत विशारद तन्मय ने ड्रम बजाने का कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं लिया. वह इसे ईश्वर की देन मानते हैं. तन्मय के साथ ड्रम बजाने वाले अवनीश मिश्रा के अनुसार भारत में तबला, ढोलक, पखावज, बांगो, कांगो को लेकर तो उत्साह है, लेकिन अन्य ताल वाद्य यंत्र उतना लोकप्रिय नहीं हो सके. 

उनके अनुसार, तालियों की जुगलबंदी एक ऐसी कला है जो संगीत सुख के साथ ही कई बीमारियों का इलाज भी है क्योंकि इससे एक्यूप्रेशर होता है. मिश्रा ने कहा कि ड्रम हमारी संस्कृति का हिस्सा हमेशा से रहा है. आदिवासियों को देखें तो तमाम किस्म के ड्रम और नगाडे़ उनके लोक संगीत का हिस्सा होते हैं. तन्मय ने एक तरह से आदिवासी संगीत को आधुनिकता से जोड़कर एक अदभुत प्रयास किया है, जिसे खूब पसंद किया जा रहा है. 

दिल्ली ड्रमर्स का उल्लेख करने पर तन्मय ने बताया कि दिल्ली ड्रम सर्किल ने जो परंपरा शुरू की, उसी को वह आगे बढा रहे हैं. दिल्ली ड्रम सर्किल ने पार्कों में हर रविवार छुट्टी के दिन ड्रम बजाने वालों का मजमा लगाया और धीरे धीरे यही ड्रम कारपोरेट कल्चर में जाकर ढल गया. यानी बड़ी-बड़ी कंपनियों में खाली वक्त मिला तो सभी अधिकारी और कर्मचारी मन हल्का करने के लिए ड्रम लेकर बैठ जाते हैं और खूब आनंद लेते हैं. 

लखनऊ ड्रम सर्किल में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने वाली चौदह वर्षीय काजल दुबे ने कहा कि ड्रम शरीर को चुस्त और सही आकार में रखता है और मस्ती में ड्रम बजाते हुए पैर अपने आप ताल पर थिरकने लगते हैं. काजल इसे अपना करियर बनाएंगी या नहीं यह फैसला लेने के लिए वह अभी काफी छोटी हैं, लेकिन खाली वक्त में किसी पार्क या निर्जन स्थान पर बैठकर वह पूरी मस्ती से ड्रम बजाती हैं और जैसे सीधे प्रकृति से जुड़ जाती हैं. काजल के साथ ड्रम बजाने वाली महविश कुरेशी कहती हैं कि सबके शरीर में रिदम होती है और हर किसी को थिरकना आता है लेकिन वह उसे 'एक्सप्लोर' नहीं करता. 

थिरकन का मतलब रिदम से होता है और रिदम ताल है. ऐसे में ड्रम अपने आप में संपूर्ण संगीत है, जिसे बजाकर आप आह्लादित होते हैं. तन्मय ने बताया कि वह लखनऊ में एक ड्रम अकादमी की स्थापना करना चाहते हैं ताकि हर यह शहर के गोशे गोशे को ताल से भर दें. इस सपने को पूरा करने के लिए तन्मय विभिन्न स्कूलों में या फिर सामुदायिक संपर्क के जरिए किसी पार्क में बच्चों के साथ ड्रम बजाते हैं और अपनी कला की धमक को दूर तक जाते महसूस करते हैं.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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