सभी नागरिकों को इंसाफ पाने का हक, काम आसान नहीं... कोशिश जारी रखेंगे : जस्टिस बीआर गवई

जस्टिस गवई कहते हैं, "अंडर ट्रायल कैदियों के भी कुछ अधिकार होते हैं. उनके बेसिक राइट्स को आप इग्नोर नहीं कर सकते. नालसा ऐसे ही कैदियों की मदद के लिए है. यहां तक कि ट्रायल के बाद भी जो कैदी जेल में पड़े हुए हैं, नालसा उन्हें जमानत दिलाने की कोशिश करता है."

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जस्टिस बीआर गवई 2019 से सुप्रीम कोर्ट के जज हैं.

नई दिल्ली:

मानवाधिकार दिवस हर साल 10 दिसंबर को दुनियाभर में मनाया जाता है. जब मानवाधिकारों की बात होगी, तो देश की एक बड़ी संस्था नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी यानी नालसा की बात भी होनी चाहिए. जब नालसा की बात हो, तो इसके चेयरमैन जस्टिस बीआर गवई का जिक्र होना जरूरी हो जाता है. जस्टिस गवई सुप्रीम कोर्ट के सीनियर जज हैं. वो 6 महीने बाद देश के प्रधान जस्टिस (CJI) बनने वाले हैं. जस्टिस गवई मौजूदा CJI संजीव खन्ना की जगह लेंगे. मानवाधिकार दिवस के मौके पर NDTV ने जस्टिस बीआर गवई से एक्सक्लूसिव बात की है. मानवाधिकारों को लेकर मुखर जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि देश में सभी नागरिकों को इंसाफ पाने का हक है. चाहे सजायाफ्ता क्यों ना हो, उसके भी अधिकार हैं. ये काम आसान नहीं है, लेकिन कोशिश जारी रहनी चाहिए. 

नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी के चेयरमैन और सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई ने कहा, "नालसा एक ऐसी संस्था है, जिसका मकसद हर शख्स को इंसाफ दिलाने में मदद करना है. इस देश का हर नागरिक वो चाहे गरीब हो, आदिवासी हो या पिछड़ा हो... अगर वो आर्थिक स्थिति की वजह से वकील नहीं हायर कर सकता, तो नालसा उसकी मदद करता है."

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जस्टिस गवई ने बताया, "अभी देशभर में नालसा डिफेंस काउंसिल भी मुहैया करती है. लंबे समय से पेंडिंग पड़े केस पर नालसा काम करती है, ताकि इन्हें लॉजिकल एंड तक पहुंचाया जा सके. ह्यूमन राइट्स डे के मौके पर हमने 70 साल से ऊपर के टर्मिनल बीमारी से जूझ रहे कैदियों को जेल से आजाद करने के लिए स्पेशल कैंपेन शुरू किया है. टर्मिनल बीमारी का मतलब ऐसी बीमीरी से है, जिसमें मरीज की मौत होने की आशंका होती है."

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जस्टिस गवई कहते हैं, "अंडर ट्रायल कैदियों के भी कुछ अधिकार होते हैं. उनके बेसिक राइट्स को आप इग्नोर नहीं कर सकते. नालसा ऐसे ही कैदियों की मदद के लिए है. यहां तक कि ट्रायल के बाद भी जो कैदी जेल में पड़े हुए हैं, नालसा उन्हें जमानत दिलाने की कोशिश करता है."

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टर्मिनल इलनेस मामलों को समझाते हुए जस्टिस गवई कहते हैं, "हमारे सामने कई ऐसे केस आते हैं... कोई कैंसर से पीड़ित है, किसी का लास्ट स्टेज चल रहा है. कोई दिल की बीमारी से जूझ रहा है. ऐसे लोगों के लिए कुछ न कुछ स्पेशल मूवमेंट करना चाहिए. नालसा ने इसी विचार से कैंपेन शुरू किया है."

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ऐसे मामलों में सरकार की कितनी जिम्मेदारी?
जस्टिस गवई कहते हैं, "ऐसे मामलों में जाहिर तौर पर सरकार की जिम्मेदारी है. नालसा भी आर्टिकल 39 A यानी राइट टू जस्टिस के तहत काम करती है. संसद में लीगल एड सोल्युशंस एक्ट पारित हुआ है, नालसा उसके तहत ही काम करती है."

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आम लोगों को पुलिस या एजेंसी किस प्रक्रिया से गिरफ्तार करती है?
इस सवाल के जवाब में जस्टिस गवई कहते हैं, "इसे लेकर काफी लिट्रेचर तैयार किया गया है. हमने एक प्रोजेक्ट के जरिए इसे समझाने की कोशिश की है. इसमें हमने आसान भाषा में समझाने की कोशिश की है कि अरेस्ट के समय उनके क्या अधिकार हैं? ग्राउंड ऑफ अरेस्ट क्या है?"

जस्टिस गवई ने बताया, "इसे लेकर हमारे ज्यूडिशियल ऑफिसर ने एक सुंदर कविता लिखी है. इसका हर भाषा में ट्रांसलेशन है. इसका डिस्ट्रिब्यूशन भी बड़े पैमाने पर होगा. इससे आम लोगों को गिरफ्तार होने से पहले और गिरफ्तार होने बाद के अपने मूल अधिकारों का पता चलेगा." 

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