Pegasus Scandal में सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है. कोर्ट में मंगलवार को सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमना ने कहा कि बहस सिर्फ कोर्ट में होनी चाहिए, सोशल मीडिया पर नहीं. पेगासस जासूसी केस में आरोपों की एसआईटी से जांच कराने की याचिकाओं पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई. दस याचिकाओं पर CJI की बेंच ने सुनवाई की. CJI एनवी रमना ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि जो आपको कहना है वो हलफनामे के जरिए कहें. हम आपका सम्मान करते हैं, लेकिन जो बहस हो वो अदालत में हो. सोशल मीडिया पर समानांतर बहस ना हो.
सीजेआई ने कहा, याचिकाकर्ता मीडिया में बयान दे रहे हैं.हम चाहते है कि सारी बहस कोर्ट में हो. अगर याचिकाकर्ता सोशल मीडिया पर बहस करना चाहते है तो ये उन पर है. लेकिन अगर वो कोर्ट में आए हैं तो उन्हें कोर्ट में बहस करनी चाहिए.उन्हें कोर्ट पर भरोसा रखना चाहिए. जो बात है वो कोर्ट में कहें, एक समानांतर कार्यवाही सोशल मीडिया के जरिये न करें. कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से सहमति जताई. CJI ने कहा कि सिस्टम में भरोसा रखना चाहिए. 16 अगस्त को कोर्ट मामले की सुनवाई होगी.
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केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सुनवाई के दौरान पेश हुए. उन्होंने अदालत को बताया कि यशवंत सिन्हा को छोड़कर बाकी याचिकाएं मिल गई हैं. हमें सरकार से निर्देश के लिए समय चाहिए. शुक्रवार से पहले सुनवाई ना रखी जाए.इन याचिकाओं में एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और वरिष्ठ पत्रकारों एन. राम तथा शशि कुमार और पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा द्वारा दी गई अर्जियां भी शामिल हैं. पिछली सुनवाई में कोर्ट ने कहा था कि अगर मीडिया रिपोर्ट्स सही हैं तो ये आरोप काफी गंभीर हैं. मामले में जनहित याचिका दाखिल करने वाले वकील एम एल शर्मा ने सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल को रोका तो CJI ने इस पर आपत्ति जताई.
मुख्य न्यायाधीश रमना ने शर्मा से कहा, "आपकी याचिका में अखबारों की कटिंग के अलावा क्या डिटेल है? आप चाहते हैं कि सारी जांच हम करें और तथ्य जुटाएं. ये जनहित याचिका दाखिल करने का कोई तरीका नहीं है." सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में विदेशी कंपनियां भी शामिल हैं. यह एक जटिल मसला है. नोटिस लेने के लिए केंद्र की ओर से किसी को पेश होना चाहिए था. चीफ जस्टिस ने कहा कि यह आश्चर्य की बात है कि 2019 में पेगासस का मुद्दा सामने आया था और किसी ने भी जासूसी के बारे में सत्यापन योग्य सामग्री एकत्र करने का कोई गंभीर प्रयास नहीं किया.
उन्होंने कहा कि अधिकांश जनहित याचिकाएं राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के समाचार पत्रों की कटिंग पर आधारित हैं. उन्होंने कहा, हम ये नहीं कह सकते कि इस मामले में बिल्कुल कोई सामग्री नहीं है. हम सबको समाचार पत्रों की रिपोर्ट और प्रतिष्ठित पत्रकारों की सामग्री नहीं कहना चाहते. जिन लोगों ने याचिका दायर की उनमें से कुछ ने दावा किया कि उनके फोन हैक हो गए हैं. आप आईटी और टेलीग्राफ कानून के प्रावधानों को अच्छी तरह जानते हैं. ऐसा लगता है कि उन्होंने शिकायत दर्ज करने का कोई प्रयास नहीं किया. ये चीजें हमें परेशान कर रही हैं.
सीजेआई की दलील पर वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा, सूचना तक हमारी सीधी पहुंच नहीं है. एडिटर्स गिल्ड की याचिका में जासूसी के 37 सत्यापित मामले हैं. CJI ने कहा, "मैं यह भी नहीं कहना चाहता कि दलीलों में कुछ भी नहीं है. याचिका दायर करने वाली कुछ याचिकाएं प्रभावित नहीं होती हैं और कुछ का दावा है कि उनके फोन हैक हो गए हैं, लेकिन उन्होंने शिकायत दर्ज करने का प्रयास नहीं किया है." सीजेआई ने कहा कि जिन लोगों को याचिका करनी चाहिए थी वे अधिक जानकार और साधन संपन्न हैं. उन्हें अधिक सामग्री डालने के लिए अधिक मेहनत करनी चाहिए थी.
उन्होंने कहा कि हलफनामे के मुताबिक कुछ भारतीय पत्रकारों की भी जासूसी की गई है. ये कैलिफोर्निया कोर्ट ने भी कहा है लेकिन ये बयान गलत हैं. कैलिफोर्निया कोर्ट ने ऐसा कुछ नहीं कहा है. इसके बाद CJI ने पूछा कि अभी वहां कोर्ट का क्या स्टेटस है? इस पर सिब्बल ने कहा कि अभी केस चल रहा है. सिब्बल ने कहा, हम भी यही कह रहे हैं कि सरकार सारी बातों का खुलासा करे. मसलन, किसने कांट्रैक्ट लिया, किसने पैसा दिया? सिब्बल ने कहा कि व्हाट्सऐप के मुताबिक इजरायली एजेंसी एनएसओ ने इसे 1400 लोगों के लिए बनाया, जिसमें 100 भारतीय हैं.उन्होंने कहा कि मंत्री ने भी बयान दिए हैं. उन्होंने पूछा कि लोकसभा के जवाब में नाम कैसे आए?
एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया संघ ने एक खबर में दावा किया गया है कि 300 सत्यापित भारतीय मोबाइल फोन नंबर पेगासस स्पाईवेयर के जरिये जासूसी के संभावित निशाने वाली सूची में शामिल थे. एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने अर्जी में अनुरोध किया है कि पत्रकारों और अन्य के सर्विलांस की जांच कराने के लिए विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया जाए.
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