गोधरा अग्निकांड के दोषियों की जमानत अर्जी का गुजरात सरकार ने किया विरोध

सुनवाई के सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उन्हें समय से पहले रिहाई की पॉलिसी का लाभ नहीं मिल सकता क्योंकि मामले में TADA लगा है. 59 लोगों को ज़िंदा बोगी में जला दिया गया, उनमें बच्चे, महिलाएं शामिल थे. कोच को बाहर से बंद कर बाहर से पत्थर बरसाए गए ताकि लोग बाहर नहीं निकल पाएं.

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CJI की बेंच ने पूछा था कि क्या दोषियों पर समय से पूर्व रिहाई की पॉलिसी लागू होगी? 
नई दिल्ली:

गोधरा कांड मामले में गुजरात सरकार ने उम्रकैद के दोषियों की ज़मानत अर्जी का विरोध किया. गुजरात सरकार ने कहा कि ये दोषी किसी तरह की राहत के हकदार नहीं. इन दोषियों पर समय से पहले रिहाई की पॉलिसी भी लागू नहीं 
ये दुर्लभतम से भी दुर्लभ अपराध. उनके साथ कोई रियायत नहीं बरती जानी चाहिए. दरअसल सुनवाई के दौरान CJI डी वाई चंद्रचूड़ की बेंच ने पूछा था कि क्या दोषियों पर समय से पूर्व रिहाई की पॉलिसी लागू होगी? 

सुनवाई के सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उन्हें समय से पहले रिहाई की पॉलिसी का लाभ नहीं मिल सकता क्योंकि मामले में TADA लगा है. 59 लोगों को ज़िंदा बोगी में जला दिया गया, उनमें बच्चे, महिलाएं शामिल थे. कोच को बाहर से बंद कर बाहर से पत्थर बरसाए गए ताकि लोग बाहर नहीं निकल पाएं. कोर्ट ने दोषियों और गुजरात सरकार के वकीलों से कहा कि वो आपस में बात कर सभी दोषियों का चार्ट तैयार करें. उस चार्ट में बताए कि दोषियों की उम्र  कितनी है, उनके खिलाफ आरोप क्या है और कितना वक़्त जेल की सलाखों के पीछे गुजार चुके हैं.

इस मामले में तीन हफ्ते बाद सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा. सुप्रीम कोर्ट 2002 के गोधरा कांड मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे अब्दुल रहमान धंतिया, अब्दुल सत्तार, इब्राहिम गद्दी समेत अन्य  दोषियों की ओर से दायर जमानत याचिका पर सुनवाई कर रहा है. पिछली सुनवाई में गुजरात सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता कोर्ट को बताया था कि कुछ लोग कह रहे हैं कि दोषियों की भूमिका सिर्फ पथराव थी.

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लेकिन जब आप किसी बोगी को बाहर से बंद करते हैं, उसमें आग लगाते हैं और फिर पथराव करते हैं, तो यह सिर्फ पथराव का मामला नहीं है. इस घटना में 59 यात्रियों की जलकर मौत हो गई थी और इसी घटना के बाद गुजरात में दंगे भड़क उठे थे. गुजरात हाईकोर्ट ने अक्तूबर 2017 के अपने फैसले में गोधरा ट्रेन कोच जलाने के मामले में 11 दोषियों की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था.

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