
दिल्ली-एनसीआर का इलाका एक बार फिर भूकंप से हिल गया. भूकंप के झटकों का अहसास होते ही लोग अपने घरों से बाहर आ गए. भूकंप की तीव्रता 4.4 मापी गई, जो ठीक ठाक कही जाएगी. खास बात ये है कि भूकंप का केंद्र दिल्ली से दूर नहीं था, ठीक दिल्ली-एनसीआर इलाके में था. इस भूकंप का केंद्र दिल्ली से 51 किमी. दूर हरियाणा के झज्जर में जमीन से 10 किलोमीटर नीचे बताया गया. अब सवाल ये है कि दिल्ली भूकंप के लिहाज से कितनी संवेदनशील है और दिल्ली में ये भूकंप आते क्यों हैं.
जब हम भारत के भूकंप संवेदनशील इलाकों का मैप देखते हैं तो ये पता चलता है कि दिल्ली भूकंप के लिहाज से बहुत जोखिम वाले जोन 4 में है. जोन 2 कम जोखिम वाले इलाके हैं, जोन 3 मध्यम जोखिम वाले और जोन 5 सबसे अधिक जोखिम वाले इलाके हैं. तो दिल्ली ऐसे इलाके में है जहां बहुत जोखिम वाले भूकंप आ सकते हैं. दिल्ली के साथ दूसरी चिंता की बात ये है कि हिमालयी इलाके जहां बहुत बड़े भूकंप आते हैं वो भी दिल्ली से बहुत दूर नहीं हैं. ख़ासतौर पर सेंट्रल हिमालय जहां 8 या उससे अधिक की तीव्रता का भूकंप कभी भी आ सकता है. दिल्ली और पूरे उत्तर भारत को इसके लिए तैयार रहना चाहिए.

जमीन के नीचे कितनी हलचल
अब आते हैं दिल्ली पर कि दिल्ली-एनसीआर की जमीन के नीचे कितनी हलचल है. दरअसल, दिल्ली के नीचे से कई भ्रंश यानी फॉल्ट्स गुजरते हैं जो भारतीय प्लेट के यूरेशियन प्लेट के टकराने की वजह से बने हैं. इनमें हिमालयन फॉल्ट लाइन दिल्ली से दूर है जहां सबसे बड़े भूकंप आ सकते हैं. लेकिन दिल्ली के नीचे दिल्ली-सरगोधा फॉल्ट लाइन है. दिल्ली हरिद्वार रिज है. इस रिज को ऐसे समझिए कि जो अरावली की पहाड़ियां आप देखते हैं वो दिल्ली में जब खत्म होती हैं तो यहां के बाद जमीन के नीचे चली जाती हैं और हरिद्वार तक जाती हैं. ये भी भूकंप का एक कारण हो सकती हैं. इसके अलावा महेंद्रगढ़-देहरादून फॉल्ट, मथुरा फॉल्ट और मुरादाबाद फॉल्ट भी दिल्ली की जमीन के नीचे से गुजरते हैं.

अब ये देखते हैं कि दिल्ली में कौन से इलाके भूकंप के लिहाज से सबसे ज़्यादा संवेदनशील हैं. इसमें आप देखेंगे कि बैंगनी रंग से दिख रहा इलाका सबसे ज़्यादा संवेदनशील इलाका है और ये यमुना नदी के दोनों ओर है. ये यमुना का बाढ़ का मैदान है, जहां ज़मीन के नीचे बलुई मिट्टी है यानी जलोढ़ मिट्टी. इस मिट्टी में बनी इमारतों पर भूकंप का असर ज़्यादा पड़ता है और हम और आप जानते ही हैं कि दिल्ली-एनसीआर की कितनी बड़ी आबादी यहां रहती है. ग्रे रंग से जो इलाका है वहां जोखिम कम है और हल्के भूरे रंग का इलाका वो है जहां भूकंप से मध्यम जोख़िम है. इसी को ध्यान में रखते हुए यहां इमारतों का निर्माण होना चाहिए.

इतिहास गवाह है कि दिल्ली-एनसीआर में मध्यम से लेकर बड़ी तीव्रता के भूकंप आते रहे हैं. जैसे बीते 400 साल के कुछ भूकंपों का ज़िक्र करते हैं
- 1720 में दिल्ली में 6.5 की तीव्रता का भूकंप आया
- 1803 में मथुरा में 6.8 की तीव्रता का भूकंप आया
- 1842 में मथुरा के क़रीब 5.5 की तीव्रता का भूकंप आया
- 1956 में बुलंदशहर के क़रीब 6.7 की तीव्रता का भूकंप आया
- 1960 में दिल्ली कैंट-गुरुग्राम में 4.8 की तीव्रता का भूकंप आया
- 1996 में मुरादाबाद के क़रीब 5.8 की तीव्रता का भूकंप दर्ज किया गया.
इमारतों को बनाने में नियमों का उल्लंघन
दिल्ली में तीव्र भूकंप आने की आशंका बनी रहती है. लेकिन क्या दिल्ली-एनसीआर इसके लिए तैयार है. इसका जवाब ये है कि इस ओर हमारी नीतियों में इतना ध्यान दिया ही नहीं गया. अगर सिर्फ़ दिल्ली की ही बात करें तो यहां कम से कम 32 लाख इमारतें हैं. हालांकि, हाल की कई ताज़ा रिपोर्ट इस संख्या को और भी ज़्यादा बताती हैं. 2006 में आई तेजेंद्र खन्ना रिपोर्ट के मुताबिक 70% से 80% इमारतों को बनाने में नियमों का उल्लंघन हुआ है. इमारतें भूकंप रोधी बनें इसके लिए बाक़ायदा नियम हैं. लेकिन ये चिंता की बात है कि लाखों इमारतों में इस बात का ध्यान ही नहीं रखा गया.
ऐसे में हिमालयी इलाके में आया कोई बड़ा भूकंप यहां भयानक साबित हो सकता है. दिल्ली के नीचे भी अगर कभी 6 की तीव्रता का भूकंप आया तो वो ख़तरनाक हो सकता है.
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