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UPSC Success Story: इसे कहते हैं हौसलों की उड़ान! रिक्शे वाले के बेटे ने पहले अटेंप्ट में निकाला UPSC

UPSC Success Story: गोविंद जायसवाल आज सीनियर आईएएस अधिकारी हैं, लेकिन जब वो यूपीएससी की तैयारी कर रहे थे, तब उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी.

UPSC Success Story: इसे कहते हैं हौसलों की उड़ान! रिक्शे वाले के बेटे ने पहले अटेंप्ट में निकाला UPSC
UPSC Success Story: पहले ही अटेंप्ट में बने आईएएस

Success Story: UPSC का नाम सुनते ही कई लोगों के चेहरे पर खुशी झलकने लगती है, हर साल लाखों लोग इस मुश्किल एग्जाम को देते हैं और चाहते हैं कि वो भी अधिकारी बनकर अपना सपना पूरा करें. हालांकि महज कुछ लोगों का ही ये सपना पूरा हो पाता है. इनमें से कुछ ऐसे होते हैं, जो बेहद गरीब परिवार से आते हैं और अपनी कड़ी मेहनत और लगन से ये मुकाम हासिल कर लेते हैं. गोविंद जायसवाल का नाम भी ऐसे ही गिने चुने लोगों में आता है, जिन्होंने सिर्फ 22 साल की उम्र में पहले ही अटेंप्ट में UPSC क्रैक कर लिया और देशभर में 48वीं रैंक हासिल की. उनके पिता रिक्शा चलाते थे और परिवार काफी गरीबी में दिन बिता रहा था. उनकी ये कहानी आपकी भी जिंदगी बदल सकती है. 

फिल्म से मिली प्रेरणा

जो लोग अपनी आर्थिक स्थिति और हालात को कोसते रहते हैं, उनके लिए गोविंद की कहानी जानना जरूरी है. उन्होंने संघर्ष भरे जीवन में भी उम्मीद नहीं छोड़ी और आखिरकार वो मुकाम हासिल कर लिया, जो शायद उनके आसपास रहने वाले लोगों ने कभी सोचा भी नहीं होगा. जब गोविंद ने फिल्म 'अब दिल्ली दूर नहीं' फिल्म देखी तो उन्होंने तय कर लिया कि वो एक आईएएस अधिकारी बनेंगे. 

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पिता का भी बड़ा हाथ

कहते हैं कि एक सफल इंसान के पीछे किसी न किसी का हाथ जरूर होता है. गोविंद जायसवाल के मामले में ये इंसान उनके पिता थे. उनके पिता नारायण जायसवाल ने अपने बेटे के सपने को साकार करने के लिए खुद को खपा दिया. आर्थिक कमजोरी के बावजूद उन्होंने बेटे की पढ़ाई में कोई कमी नहीं आने दी. हालांकि 1995 में जब गोविंद की मां का निधन हुआ तो  ये उनके लिए बड़ा झटका था. हालांकि गोविंद ने अपनी पढ़ाई जारी रखी और आखिरकार 2006 में यूपीएससी परीक्षा में शामिल हुए. अपने पहले ही अटेंप्ट में उन्होंने परीक्षा पास कर ली और आईएएस अधिकारी बन गए. 

पिता को बेचने पड़े रिक्शे

गोविंद के पिता नारायण जायसवाल के पास कई रिक्शे थे, जिन्हें वो किराये पर देने का काम करते थे. जब उनकी पत्नी का देहांत हुआ तो उन्हें कुछ रिक्शे बेचने पड़े, लेकिन बेटे को पढ़ाई के लिए दिल्ली भी भेजना था. ऐसे में उन्होंने अपने सारे रिक्शे बेच दिए और खुद एक रिक्शा लेकर उसे चलाने लगे. बेटे के सपने पूरे करने के लिए वो रिक्शा मालिक से रिक्शा चालक बन गए. 

गोविंद जायसवाल ने अब तक कई अहम पदों पर काम कर लिया है. वो नागालैंड के असिस्टेंट कमिश्नर, गोवा में स्पोर्ट्स एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर, स्वास्थ्य मंत्रालय में डिप्टी सचिव और शिक्षा मंत्रालय में काम कर चुके हैं. 
 

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