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JNU छात्रसंघ की क्यों कम हो रही है ताकत? महज इतना है चुनाव का कुल बजट

JNUSU Election: जेएनयू में छात्र संघ चुनाव का शोर अब थम चुका है, वोटिंग के बाद अब छात्रों को नतीजों का इंतजार है. बताया जा रह है कि नतीजे 6 नवंबर तक सामने आएंगे.

JNU छात्रसंघ की क्यों कम हो रही है ताकत? महज इतना है चुनाव का कुल बजट
JNU छात्रसंघ चुनाव

JNUSU Election: JNU छात्रसंघ चुनाव की चर्चा पूरे देशभर में होती है. इस चुनाव की प्रेसिडेंशियल स्पीच में कथित तौर पर गाजा नरसंहार से लेकर मोदी के विदेश नीति तक पर निशाना साधा गया है. लेफ्ट छात्र संगठन और एबीवीपी के बीच इस बार भी कड़ी टक्कर बताई जा रही है, वहीं एनएसयूआई की तरफ से भी खूब प्रचार किया गया. डीयू की तरह जेएनयू में भी छात्र संघ चुनाव का खूब शोर रहता है, अब सवाल है कि क्या डीयू की तरह जेएनयू छात्र संघ के पास भी अपना कोई बजट होता है? क्या छात्र संघ अध्यक्ष को कोई सैलरी मिलती है? आइए इन तमाम सवालों का जवाब जानते हैं. 

महज इतना होता है बजट

आपको जानकर हैरानी होगी कि JNUSU का फंड महज 1 लाख 20 हजार ही होता है. ये पैसा भी 2018 तक छात्रों की फीस से पहले दो रुपए फिर पांच रुपए लिया जाता था, लेकिन 2018 के बाद इस नियम को भी बदल दिया गया और कहा गया कि अगर छात्र खुद की मर्जी से देना चाहें तो दे सकते हैं, फीस के तौर पर इसे नहीं लिया जा सकता है. उसके बाद JNU स्टूडेंट यूनियन के प्रेसिडेंट किसी भी खर्चे के लिए पूरी तरह चंदे पर निर्भर हो गए. 

हालांकि छात्रसंघ को अब भी केवल चुनाव कराने के लिए बैलेट पेपर और दूसरे ख़र्चों के लिए महज एक लाख रुपए के आसपास की रकम मिलती है. यानी जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ के पास फिलहाल कोई बजट नहीं होता है. JNU के पूर्व संयुक्त सचिव शुभांशु सिंह कहते हैं कि जवाहर लाल नेहरू छात्रसंघ अब पूरी तरह छात्रों के चंदे से चलता है, बस जब चुनाव आता है तब छात्रसंघ को खर्चे के लिए कुछ पैसा दिया जाता है. 

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वक्त के साथ घट रही है ताकत 

जवाहर लाल नेहरू स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष के पास पहले सबसे बड़ी ताकत विश्वविद्यालय की उच्चस्तरीय अकादमिक कमेटी में शामिल होना था. इसी कमेटी में यूनिवर्सिटी और सिलेबस से संबंधित महत्वपूर्ण निर्णय होते थे, लेकिन अब एकेडमिक कमेटी की बैठक में शामिल होने की शक्ति भी वापस ले ली गई है. जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष मोहित पांडेय कहते हैं कि अकादमिक कमेटी की बैठक में जेएनयू प्रेसिडेंट के तौर पर जब उन्होंने हिस्सा लिया था, तब मौखिक परीक्षा में अंकों को कम करने का प्रस्ताव आया था, लेकिन इस निर्णय का प्रेसिडेंट के तौर पर विरोध किया गया और ये प्रस्ताव वापस लेना पड़ा था. लेकिन बाद में एकेडमिक काउंसिल की बैठक में प्रेसिडेंट के तौर पर हिस्सा लेने पर रोक लग गई. जिससे छात्रसंघ की ताकत कम हुई. 

EVM से नहीं बैलेट पेपर से होता है  चुनाव 

JNU छात्रसंघ चुनाव अब भी बैलेट पेपर से होता है, जबकि दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ का चुनाव EVM मशीन से होता है. यही वजह है कि JNU की मतगणना में दस से बारह घंटे का वक्त लग जाता है. मतगणना के दौरान कैंपस में अलग की छात्रों का रंग देखने को मिलता है, जहां सभी छात्र संगठन अपनी अपनी पार्टियों का नारा लगाते हुए दिखाई पड़ते हैं. हालांकि चुनावी माहौल गर्म रहता है लेकिन उग्रता कभी नहीं देखी गई. 

जेएनयू में हर साल करीब साढ़े सात हजार मतदाता होते हैं, उनमें पांच से छह हजार अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं. JNU के चुनाव केवल छात्र संघ के लिए ही नहीं बल्कि अलग-अलग स्कूलों में अपने प्रतिनिध बनाने के लिए भी वोट डाले जाते हैं. JNU से पढ़े लोग भारतीय राजनीति में भी ताकतवर भूमिका में रहे हैं मसलन एस जयशंकर, निर्मला सीतारमण और सीता राम येचुरी जैसे नेताओं ने यहीं से पढ़ाई पूरी की. 

चुनाव के दौरान होता है लंच ब्रेक 

JNU छात्रसंघ चुनाव में सभी को अलग से दिलचस्पी होती है, लेकिन एक बात अब तक आपने नहीं सुनी होगी, जहां पर मतदान के बीच में एक घंटे का लंच ब्रेक भी रखा जाता है. चुनाव करवाने वाले लोगों के लिए लंच का इंतजाम यूनिवर्सिटी प्रशासन करता है.

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