विज्ञापन
This Article is From Oct 02, 2019

Gandhi Jayanti: आखिर महात्‍मा गांधी को क्‍यों कभी नहीं मिला शांति का नोबेल पुरस्‍कार

महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) कुल 5 बार नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किए गए थे लेकिन उन्हें एक बार भी यह पुरस्कार नहीं मिला था.

Gandhi Jayanti: आखिर महात्‍मा गांधी को क्‍यों कभी नहीं मिला शांति का नोबेल पुरस्‍कार
Mahatma Gandhi Jayanti: 1937 में पहली बार गांधी जी को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया गया था.
नई दिल्ली:

Gandhi Jayanti 2019: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की आज जयंती (Gandhi Jayanti) है. गांधी जी पूरी दुनिया में सत्य और अहिंसा के पुजारी के रूप में जाने जाते हैं. अहिंसा के बल पर देश को अंग्रेजों के शासन से आजाद कराने वाले बापू ने देश में शांति बनाए रखने के लिए क्या कुछ नहीं किया. गांधी जी (Mahatma Gandhi) 20वीं सदी में अहिंसा के सबसे बड़े प्रतीक बने और यही कारण रहा है कि उन्हें कई बार शांति के नोबेल पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया गया. गांधी जी  (Mahatma Gandhi) सन 1937, 1938, 1939, 1947 और 1948 में शांति के नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize) के लिए नॉमिनेट हुए. लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि उन्हें एक बार भी नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिला. Nobelprize.org पर दी गई जानकारी के मुताबिक 1937 में पहली बार नॉर्वे की संसद “स्टॉर्टिंग” के लेबर पार्टी सदस्य ओले कोल्बजोर्नसन ने गांधी (Gandhi) का नाम सुझाया था. कोल्बजोर्नसन नोबेल कमेटी के 13 सदस्यों में से एक थे. कोल्बजोर्नसन ने गांधी जी को खुद से नॉमिनेट नहीं किया था. उन्होंने मशहूर गांधीवादी संस्था “फ्रेंड्स ऑफ़ इंडिया” की नार्वे शाखा की एक शीर्ष महिला सदस्य से गांधी जी का नाम नॉमिनेट करवाया था. जिसके बाद लगातार दूसरी और तीसरी बार 1938 और 1939 में गांधी जी (Gandhi Ji) को शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया गया. चौथी बार साल 1947 में गांधी जी शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट हुए. जबकि पांचवी और आखिरी बार उन्हें 1948 में नॉमिनेट किया गया लेकिन नॉमिनेशन की आखिरी तारीख से 2 दिन पहले उनकी हत्या कर दी गई थी. नोबेल समिति को गांधी जी के नाम पर 6 नॉमिनेशन प्राप्त हुए थे. पांचवी बार गांधी जी को नॉमिनेट करने वालों में क्वेकर्स और अर्थशास्त्राी एमिली ग्रीन बाल्च शामिल थे.

इन कारणों से गांधी जी को नहीं मिला नोबेल शांति पुरस्कार 

1937 
साल 1937 में गांधी जी को पहली बार शांति पुरस्कार (Nobel Prize) के लिए नॉमिनेट किया गया था. लेकिन उन्हें यह पुरस्कार नहीं दिया गया था. नोबेल समिति के सलाकार जैकब वॉर्म-मूलर के गांधी जी के बारे में निगेटिव लिखने के चलते उन्हें साल 1937 में नोबेल पुस्कार नहीं दिया गया. Nobelprize.org पर दी गई जानकारी के मुताबकि जैकब वार्म-मूलर ने लिखा था, “गाांधी निस्संदेह, एक अच्छे, महान और तपस्वी व्यक्ति हैं. भारत की जनता उन्हें बेहद प्यार और सम्मान देती है, लेकिन गांधी जी अहिंसा की नीति पर हमेशा कायम नहीं रहे. अंग्रेजों के खिलाफ उनके कई शांतिपूर्ण आंदोलन कभी भी हिंसक रूप ले सकते हैं. ऐसा ही कुछ चौरी चौरा में देखने को मिला जब भारतीयों ने ब्रिटिश सरकार की एक पुलिस चौकी को आग लगा दी थी जिससे कई पुलिसकर्मी जल के मर गए थे. जैकब वॉर्म-मूलर ने लिखा कि गांधी जी का आंदोलन केवल भारतीय हितों तक सीमित रहा, दक्षिण अफ़्रीका में उनका आंदोलन भी भारतीय लोगों के हितों के लिए था. गांधी जी ने अश्वेत समुदाय लिए कुछ नहीं किया है जिनकी दशा भारतीयों से भी बुरी थी.

mahatma gandhi

महात्मा गांधी की तस्वीर 

1938 और 1939
ओले कोल्बजोर्नसन ने 1938 और 1939 में भी महात्मा गांधी को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया था. लेकिन कमेटी को गांधी जी को शॉर्टलिस्ट करने में 10 साल लग गए थे.

Mahatma Gandhi Quotes: ''व्यक्ति की पहचान उसके कपड़ों से नहीं उसके चरित्र से होती है'', जानिए गांधी जी के 10 अनमोल विचार

1947
1947 में गांधी जी को यूनाइटेड प्रॉविंस के प्रीमियर गोविंद वल्लभ पंत, बॉम्बे प्रेसिडेंसी के प्राइम मिनिस्टर बीजी खेर और सेंट्रल लेजिस्लेटिव एसेंबली के स्पीकर गणेश वासुदेव मावलंकर ने नामांकित किया था. उस समय नोबेल समिति के सलाहकार जेन्स अरुप सीप थे. तत्कालीन नोबेल कमेटी प्रमुख गुन्नर जान ने अपनी डायरी में लिखा कि जेन्स अरुप सीप की रिपोर्ट गांधी के अनुकूल है लेकिन पूरी तरह से उनके पक्ष में नहीं. पाकिस्तान के साथ हालात बिगड़ने के बाद गांधी जी ने कहा, “मैं हर तरह के युद्ध का विरोधी हूं, लेकिन पाकिस्तान चूंकि कोई बात नहीं मान रहा है, इसलिए पाकिस्तान को रोकने के लिए भारत को उसके ख़िलाफ़ युद्ध के लिए जाना चाहिए. उस समय कमेटी ने गांधी जी के युद्ध वाले बयान को शांति-विरोधी माना और 1947 का नोबेल पुरस्कार मानवाधिकार समूह क्वेकर को दे दिया गया. नोबेल कमेटी के अध्यक्ष ने लिखा है, ''नॉमिनेटेड लोगों में गांधी जी सबसे बड़ी शख़्सियत थे. वह शांति के दूत ही नहीं, बल्कि सबसे बड़े देशभक्त थे. नोबेल कमेटी अध्यक्ष ने कमेटी के फ़ैसले का समर्थन करते हुए लिखा कि हमें यह भी दिमाग में रखनी चाहिए कि गांधी जी भोले-भाले नहीं हैं.''

1948
गांधी जी को 1948 में भी शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया गया था, लेकिन नॉमिनेशन की आखिरी तारीख से 2 दिन पहले उनकी हत्या कर दी गई थी. नोबेल समिति को गांधी जी के नॉमिनेशन के लिए 6 पत्र प्राप्त हुए थे. गांधी जी को नॉमिनेट करने वालों में क्वेकर्स और अर्थशास्त्राी एमिली ग्रीन बाल्च शामिल हैं. लेकिन इस बार भी गांधी जी को शांति पुरस्कार नहीं मिला था. इसका मुख्य कारण ये था कि गांधी जी की हत्या हो चुकी थी और उस समय तक मरणोपरांत किसी को नोबेल पुरस्कार नहीं दिया जाता था. लेकिन कुछ परिस्थितियों में मरणोपरांत को ये पुरस्कार दे सकते थे. ऐसे में समस्या ये थी कि गांधी जी को देने वाली पुरस्कार की राशि किसे दी जाए? क्योंकि गांधी जी न ही किसी किसी संगठन से जुड़े थे और न ही कोई वसीयत छोड़कर गए थे. ऐसे में 1948 में किसी को भी शांति का नोबेल पुरस्कार नहीं दिया गया था. नोबेल समिति ने अपनी टिप्पणी में कहा था, ''there was no suitable living candidate. (कोई जिंदा उम्मीवार नहीं हैं)''

Gandhi Jayanti Speech: गांधी जंयती के दिन दें ये भाषण

गांधी को शांति पुरस्कार न देना नोबेल समिति की भूल थी
नोबेल समिति यह बात स्वीकार कर चुकी है कि महात्मा गांधी को शांति पुरस्कार नहीं देना एक चूक थी. साल 1989 में महात्मा गांधी की मौत के 41 साल बाद बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा को शांति पुरस्कार देते हुए नोबेल समिति के चेयरमैन ने महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि दी थी. बता दें कि गांधी के अहिंसावादी सिद्धांतों पर चलने वाले मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला जैसे लोगों को शांति का पुरस्कार दिया गया था.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com