23 वर्षीय धनसिंह अरुल (Dhansingh Arul) ने फर्स्ट पोजिशन में इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की है और अब उन्होंने तमिलनाडु विधानसभा में निकली स्वीपर की नौकरी के लिए आवेदन भरा है. तूतीकोरिन में मजदूरी का काम कर रहे धनसिंह के पास पिछले चार महीनों से कोई नौकरी नहीं है. उन्होंने एनडीटीवी को बताया, "मुझे कोई नौकरी नहीं मिल रही है. हालांकि मैं इंजीनियर हूं लेकिन अगर कोई नौकरी नहीं होगी तो मैं स्वीपर भी बन सकता हूं. इसलिए मैंने आवेदन किया." आपको बता दें कि स्वीपर की नौकरी के लिए आवेदन भरने वालों में धनसिंह अकेले पढ़े-लिखे नहीं हैं. तमिलनाडु विधानसभा में स्वीपर और सफाई कर्मचारियों के 14 पदों पर भर्तियां निकली हैं, जिनके लिए करीब 4 हजार लोगों ने आवेदन भरा है. आवेदन करने वालों में एमबीए, एमसीए, बीटेक, एमकॉम, बीकॉम, बीबीए और एमफिल पास उम्मीदवार शामिल हैं.
चेन्नई के बाहरी इलाके में काम कर रहे हताश धनसिंह सरकार की ओर से मिले लैपटॉप के जरिए सरकारी नौकरी के लिए आवेदन भरते रहते हैं. उनके पास इंटरनेट के लिए पैसे नहीं हैं. उनके दोस्त पोर्टेबल हॉटस्पॉट से उनकी मदद करते हैं. उनके पास स्मार्टफोन भी नहीं है. यहां तक कि उनके पुराने बेसिक फोन में कॉल करने के लिए बैलेंस तक नहीं है. आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए राज्य सरकार ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण तो बताया है लेकिन साथ ही उन्होंने लोगों को खुद का कोई काम शुरू करने की सलाह भी दी है. सरकार का कहना है कि बेरोजगारों को सरकार की उस योजना का लाभ उठाकर खुद का काम शुरू करना चाहिए जिसके तहत उन्हें सीधे-सीधे लोन मिल सकता है.
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तमिलनाडु सरकार के मंत्री डी जयकुमार ने एनडीटीवी से कहा, "वैसे तो यह सरकार का फर्ज है कि लोगों को नौकरी मुहैया कराए लेकिन हम पांच सालों में 60 लाख नौकरियां नहीं दे सकते. उन्हें प्राइवेट सेक्टर में भी प्रयास करने चाहिए. नौजवानों को सिर्फ सरकारी नौकरी चाहिए क्योंकि यह उन्हें सुरक्षित लगती है." अकेले तमिलनाडु सरकार में ही साढ़े चार लाख पद खाली हैं. स्वर्गीय मुख्यमंत्री जे जयललिता की ग्लोबल इंवेस्टर्स मीट के बाद ढाई करोड़ का जो निवेश होना था वो नहीं हुआ और इस वजह से राज्य में साढ़े तीन लाख नौकरियों की उम्मीद लगाए लोगों के सपनों पर पानी पड़ गया.
कई लोगों का कहना है कि डिमॉनिटाइजेशन और जीएसटी ने दोहरी बाधा डाली जिससे लोगों को नौकरियां गंवानी पड़ीं और कई उद्योग बंद हो गए. वहीं, विशेषज्ञों का कहना है कि केवल 20 फीसदी ग्रेजुएट्स ही नौकरी के काबिल हैं और इसके जिम्मेदार वे उन सैंकड़ों इंजीनियरिंग कॉलेजों खासकर द्वितीय और तृतीय श्रेणी के शहरों में काम कर रहे शिक्षण संस्थानों को मानते हैं जिन्होंने अप्रशिक्षित ग्रेजुएट्स की झड़ी लगा दी है.
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कोवनंत ग्रुप के सीईओ जॉशुआ मदान के मुताबिक, "हमारे राज्य में बेरोजगारी की मुख्य वजह गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी है. पाठ्यक्रम इंडस्ट्री के हिसाब से नहीं है जिसके चलते टेक्निकल और कम्यूनिकेशन स्किल नदारद रहती हैं. वहीं दूसरी तरफ पिछले साल नौकरी के अवसरों में भी कमी आई लेकिन धीरे-धीरे 2019 में हालात कुछ बेहतर हो रहे हैं."
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