Best Country for Foreign Education: नया साल आ गया है, लेकिन इस नए साल में पिछले साल का बहुत कुछ है. बीते साल में हुई घटनाएं, बदलाव का असर नए साल पर पड़ता है फिर चाहे यह बदलाव देश-दुनिया की आर्थिक , राजनीतिक स्थिति पर हो या फिर एजुकेशन के फिल्ड में. पिछला साल इस मायने में भी अहम रहा क्योंकि कोविड-19 के बाद यह पहला साल था, जब देश-दुनिया में रोजगार, करियर, एजुकेशन सबकुछ बदल गया है. कोविड-19 के कारण स्कूलों, ऑफिसरों में ऑनलाइन का कॉन्सेप्ट आ गया, रोजगार के नए ऑप्शन खुले तो पुराने करियर विकल्प आउटडेटेड हो गएं. विदेश से पढ़ाई करने वाले छात्रों के लिए बहुत कुछ बदल गया. बीते वर्ष में कोराना महामारी, अधिकांश देशों में उच्च मुद्रास्फीति, यूक्रेन और मध्य पूर्व में युद्ध के कारण राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता के कारण विदेशी शिक्षा में बड़ा बदलाव आया है. बदलाव के कारण, कई पाठ्यक्रम वर्तमान समय में अप्रचलित हो गए हैं जबकि कई अन्य नए शुरू किए गए हैं.
पिछले साल ये कोर्स रहे पापुलर
मैक्वेरी विश्वविद्यालय में निदेशक (भारत और श्रीलंका) एबिज़र मर्चेंट ने बताया कि स्वास्थ्य, साइबर सुरक्षा, आईटी, बिजनेस एनालिटिक्स, पर्यावरण अध्ययन और मनोविज्ञान से संबंधित पाठ्यक्रम हाल के दिनों में पापुलर रहे हैं. इनके अलावा मैनेजमेंट और इंजीनियरिंग की डिमांट भी अच्छी है. एसआई-यूके इंडिया की प्रबंध निदेशक, लक्ष्मी अय्यर कहती हैं, “कोविड-19 और वैश्विक संघर्षों लोगों के लिए एक चेतावनी है और इस वजह से छात्र साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथमेटिक्स (STEM) जैसे पाठ्यक्रम को चुनने में अधिक रुचि दिखा रहे हैं. एसटीईएम प्रोग्रामों को चुनने का एक बड़ा कारण विभिन्न क्षेत्रों के बीच अंतरसंबंध है, जिसके परिणामस्वरूप करियर के नए विकल्प और नई संभावनाएं मिलती हैं."
शॉर्ट टर्म कोर्सेस
अय्यर आगे कहते हैं कि महामारी के दौरान छात्रों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्लाउड कंप्यूटिंग, बिग डेटा एनालिटिक्स और डिजिटल एन्क्रिप्शन जैसी चीजों के बारे में ऑनलाइन सीखना पसंद आया है. इस दौरान स्टूडेंट द्वारा मेंटल वेल बिइंग, विदेशी भाषाओं और कला से जुड़े शॉर्ट टर्म कोर्सों के लिए नामांकन में वृद्धि हुई है. उन्होंने आगे कहा, "भले ही महामारी खत्म हो गई हो, तकनीकी पाठ्यक्रमों की मांग बनी हुई है लेकिन छात्र अब अलग-अलग तरीकों से सीखना पसंद करते हैं."
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ऑनलाइन-ऑफलाइन कोर्सों की भरमार
कोविड के बाद एजुकेशन देने के तरीके में बदलाव के बारे में एबिज़र कहते हैं, “कई विश्वविद्यालय अब अपने अधिकांश पाठ्यक्रम अपने कैंपस में और फेस-टू-फेस फॉर्मेट में पेश कर रहे हैं, जो ऑनलाइन मैटेरियल या शॉर्ट टर्म वीडियो के साथ पूरक है. हालांकि कुछ पाठ्यक्रम ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों प्रारूपों में पेश किए जाते हैं. यह मांग खासकर कामकाजी पेशेवरों की होती है जो ट्रैवल करने में असमर्थ होते हैं या फुल टाइम स्टडी करने में असमर्थ होते हैं.
इन देशों का कर रहे चुनाव
कोविड के बाद किन देशों को छात्र एजुकेशन के लिए महत्व दे रहे हैं के सवाल पर एबिज़र कहते हैं, “ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, कनाडा जैसे सभी प्रमुख देशों में पिछले दो वर्षों में भारतीय छात्रों के नामांकन में वृद्धि देखी गई है. दूसरी ओर, मेडिकल एंड हेल्थ प्रोग्रामों में दाखिले के लिए रूस, चीन और यूक्रेन की यात्रा करने वाले छात्रों के नामांकन में गिरावट देखी गई है. पहले बड़ी संख्या में भारत के छात्र इन देशों से मेडिकल की डिग्री लाते थे.
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