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This Article is From Feb 05, 2018

Padma Shri Winners: अपने काम की वजह से आम से खास बने ये लोग, मिला पद्मश्री

Padam Shri पुरस्कार के तहत अलग-अलग फिल्ड के लोगों के नामों की हुई थी घोषणा

Padma Shri Winners: अपने काम की वजह से आम से खास बने ये लोग, मिला पद्मश्री
पद्म पुरस्कार की फाइल फोटो
नई दिल्ली: आम तौर पर पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित होने वाले लोग समाज में भी खासे प्रचलित होते हैं. और उन्हें किसी तरह के परिचय की जरूरत नहीं होती. हालांकि इस बार केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गए पद्म पुरस्कार की सूची में ऐसे नाम शामिल किए गए हैं जिन्हें आम तौर पर तो कम ही लोग जानते हैं. बावजूद इसके इन सभी लोगों ने अपने काम की वजह से अपनी एक अलग पहचान बनाई और आज देश के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों मे से एक से सम्मानित होने जा रहे हैं. आज हम आपको ऐसे ही कुछ लोगों के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्हें उनके  समाजहित में किए सराहनीय काम के लिए यह सम्मान दिया जा रहा है. 

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लक्ष्‍मीकुट्टी
प्रधानमंत्री नरेंद मोदी ने अपने मन की बात कार्यक्रम में लक्ष्मीकुट्टी की कहानी का जिक्र भी किया था. लक्ष्मीकुट्टी केरल में रहने वाली एक आदिवासी महिला हैं. वह जंगल में रहने वाले लोगों के लिए जड़ी-बूटियों से दवाइयां बनाती हैं. जिसका इस्तेमाल अकसर सांप-बिच्‍छू के काटने पर किया जाता है.

अरविंद गुप्‍ता
अरविंद गुप्ता शुरू से ही बेकार सामान के इस्तेमाल से बच्चों को शिक्षित करने के लिए उपयोगी सामान बनाते रहे हैं. वह पेशे से एक वैज्ञानिक हैं. उन्‍होंने अभी तक ऐसे ख‍िलौने बनाए हैं जिनसे बच्‍चे विज्ञान से जुड़ी बातें सीख सकते हैं.

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भज्‍जू श्‍याम
मध्य प्रदेश के आदिवासी गोंड कलाकरा भज्जू श्याम को भी नाम पदश्री पुरस्कार लेने वालों में शामिल है. भज्जू अपनी गोंड पेंटिंग की वजह से यूरोप में भी प्रसिद्ध हो चुके हैं. अभी तक भज्जू के कई चित्र किताब का रूप ले चुके हैं. वह अपने इलाके में खासे लोकप्रिय हैं. 

सुधांशु बिस्‍वास
बिस्वास 99 साल के हैं और मौजूदा समय में जरूरतमंद बच्चों के लिए 18 स्कूल चलाते हैं. खास बात यह है कि इन स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों से वह फीस के रूप में एक रुपये भी नहीं लेते. पश्चिम बंगाल में गरीबों की सेवा के लिए वह बीते कई वर्षों से काम कर रहे हैं.

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मुरलीकांत पेटकर
पेटकर भारत की तरफ से पैरालंपिक में पदक जीतने वाले पहले खिलाड़ी थे. उन्होंने यह उपलब्धि वर्ष 1972 में हासिल की थी. मुरलीकरण पुणे के बाहरी इलाके में रहते हैं. मुरलीकांत पहले फौज में थे. वह 1965 की भारत-पाकिस्तान के बीच हुई लड़ाई में गंभीर रूप से घायल हो गए थे. उन्हें इस हादसे 17 महीने बाद होश आया था. इसके बाद ही उन्होंने यह पदक जीता था. 

VIDEO: पद्म पुरस्कार विजेताओं से एक मुलाकात


एमआर राजगोपाल
केरल के कोझीकोडे के डॉ. एमआर राज गोपाल देश के ऐसे पहले डॉक्टर हैं जिन्होंने पहली पैलिएटिव केयर यूनिट खोली थी. राजगोपाल कैंसर पीड़ित मरीजों के लिए मॉरफीन के इस्तेमाल के पक्ष में हैं. राजगोपाल द्वारा 2008 में दायर की गई एक जनहित याचिका ने देश में पैलेटिव मेडिसन और देखभाल पर लोगों का ध्यान आकर्षित किया था.

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