हार्वर्ड लॉ स्कूल के प्रोफेसर डेविड बी विल्किंस ने कहा कि भारत में वकालत और विधि शिक्षा के प्रमुख केंद्रों में से एक बनने की क्षमता है. इसलिए भारतीय वकीलों को दुनिया के अन्य वकीलों से देश और विदेश में भी प्रतिस्पर्धा से भयभीत होने की जरूरत नहीं. ओ पी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में दीक्षांत समारोह में भाषण देने आए हार्वर्ड लॉ स्कूल के उप डीन विल्किंस ने कहा कि भारत में वाणिज्यिक विधि पेशे के विकास के लिए नियामकीय अवरोध एक सीमा तक जरूरी हैं, लेकिन ऐसी पाबंदियों से विदेशी वकीलों को लंबे समय तक प्रतिस्पर्धा से दूर रखा जा सकता है ऐसा मानना गलत होगा. उन्होंने कहा, ‘‘ विदेशी वकीलों ने पहले ही भारत के विधि क्षेत्र में ‘आने और जाने की नीति' (अस्थायी रूप से आने और जाने) नीति से सार्थक पहुंच बना ली है और प्रौद्योगिकी से इसका और विकास होगा. प्रतिस्पर्धा का सामना करना भारतीय वकीलों के लिए भी लाभदायक होगा. खासतौर गत साल में इससे भारतीय विधि कंपनियों का सार्थक विकास हुआ है.''
विल्किंस ने कहा कि विधि बाजार को उदार बनाने को लेकर भारतीय वकीलों की चिंता संभवत: अतिशयोक्तिपूर्ण है. उन्होंने कहा, ‘‘ इसमें इस बात की संभावना कम है कई विधि सेवा देने वाली कंपनियां भारत में अपना कार्यालय खोलना चाहेंगी और जो ऐसा करेंगी वे केवल वाणिज्यिक कानून में ही वकालत करेंगी.'' विल्किंस ने कहा कि विदेशी वकीलों को भारतीय अदालतों के समक्ष उपस्थित होने पर बहुत कम फायदा होगा और जो पेश होंगे उन्हें भी साबित करना होगा कि उन्हें भारतीय कानून और प्रक्रिया की पर्याप्त जानकारी है. भारत के उच्चतम न्यायालय के समक्ष अहम मामलों में शायद ही कोई विदेशी या घरेलू याचिकाकर्ता अनुभवी वकीलों फली नरीमन, हरीश साल्वे,कपिल सिब्बल, गोपाल सुब्रह्मण्यम और अभिषेक मनु सिंघवी के आगे किसी विदेशी वकील को नियुक्त करे.''
कानून के प्रोफेसर ने आगे कहा कि अंतत: भारतीय विधि बाजार को खोलने से भारतीय वकीलों को अपने विदेशी समकक्षों से अधिक सीखने को मिलेगा. वहीं भारतीय वकीलों को देश में ही रहने पर अधिक प्रोत्साहन मिलेगा. विल्किंस ने कहा,अभी कई प्रतिभाशाली भारतीय वकील देश छोड़कर सिंगापुर, लंदन, और न्यूयॉर्क स्थित विदेशी विधि कंपनी में मौकों की तलाश में जा रहे हैं. इससे कहीं बेहतर होगा कि ये युवक एवं युवती देश में ही रहकर भारतीय वकील समुदाय को और बेहतर बनाएं.'' हालांकि, उन्होंने कहा कि इस लाभ को प्राप्त करने के लिए भारत को विधि शिक्षा को अद्यतन करने और गुणवत्ता सुधारने के लिए अधिक निवेश करना होगा.
विल्किंस ने अपनी हालिया किताब ‘ द इंडियन लीगल प्रोफेशन इन द एज ऑफ ग्लोबलाइजेशन : द राइज ऑफ द कॉरपोरेट लीगल सेक्टर एंड इट्स इम्पैक्ट ऑन द लॉयर्स एंड सोसायटी'' में कहा था कि भारत के चुनिंदा राष्ट्रीय विधि स्कूल और अन्य स्थापित संस्थान जैसे दिल्ली विश्वविद्यालय और कुछ निजी संस्थान जैसे जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल छात्रों को उत्कृष्ट विधि शिक्षा दे रहे हैं. पर ये संस्थान भारतीय वकीलों के छोटे से हिस्से को ही शिक्षा दे रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘‘भारत के अन्य 1600 से अधिक विधि संस्थान ऐसी शिक्षा मुहैया नहीं कराते. इसलिए भारत को इन विधि स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने की जरूरत है. अगर यह होता है तो ऐसा कोई लक्ष्य नहीं होगा जो भारतीय वकील हासिल नहीं कर सकते.''
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