नई दिल्ली:
मानव संसाधन विकास मंत्रालय की एक समिति ने कहा है कि ‘लचर या भ्रष्ट’ नियामक वातावरण की वजह से धनकुबेर और शिक्षा के प्रति मामूली दिलचस्पी रखने वाले प्रभावशाली लोगों के संरक्षण में खराब आधारभूत संरचना वाले कॉलेजों का प्रसार हुआ है। समिति ने इस तरह की ‘शिक्षा की दुकानों’ पर अंकुश लगाने के लिए तत्काल कदम उठाने को कहा है।
नयी शिक्षा नीति तैयार करने पर अपनी सिफारिशों में समिति ने इन निजी उच्च शिक्षण संस्थानों के ‘अपारदर्शी वित्तीय प्रबंधन’ की भी आलोचना की है। समिति ने कहा कि यह समानांतर अर्थव्यवस्था संचालन को प्रोत्साहन देगा।
पूर्व कैबिनेट सचिव टी एस आर सुब्रह्मण्यम की अध्यक्षता वाली समिति ने कहा कि हकीकत का इस बात से सामना कराए जाने की जरूरत है कि लचर या भ्रष्ट नियामक वातावरण का फायदा उठाकर अनेक निजी विश्वविद्यालय और कॉलेज शिक्षा के प्रति मामूली दिलचस्पी रखने वाले धन बल से पूर्ण प्रभावशाली लोगों के संरक्षण में फल-फूल रहे हैं।
समिति ने कहा है कि उच्च शिक्षण संस्थानों का प्रसार हो लेकिन उच्च शिक्षा की बढ़ती मांग के अनुपात में गुणवत्तापूर्ण शिक्षक प्रदान करने के लिए न तो सुव्यवस्थित व्यवस्था है और न ही पर्याप्त प्रतिबद्धता। समिति ने कहा कि इस तरह की निजी शिक्षा की दुकानों और ‘तथाकथित गैर लाभकारी संस्थानों’ के परेशान करने वाले प्रसार से निपटने के लिए अविलंब कदम उठाने की आवश्यकता है। ये संस्थान आधारभूत संरचनाओं से वंचित हैं और अयोग्य कर्मचारियों से संचालित होते हैं।
समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा, मौजूदा व्यवस्था निजी उच्च शिक्षण संस्थानों के अपारदर्शी वित्तीय प्रबंधन को प्रोत्साहित करती है, जिससे परोक्ष रूप से समानांतर अर्थव्यवस्था के संचालन को समर्थन मिलता है। व्यवस्था में उसकी गुणवत्ता को समुन्नत करने, घटिया संस्थानों पर अंकुश लगाने और लाचार छात्रों के शोषण पर अंकुश लगाने के लिए अंतर्निहित कोई व्यवस्था नहीं है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने इस हफ्ते डीम्ड विश्वविद्यालयों के लिए नए दिशा-निर्देशों की घोषणा की थी। इनमें से ज्यादातर निजी विश्वविद्यालय हैं। मंत्रालय का लक्ष्य लाल फीताशाही को कम करना, पारदर्शिता लाना और नियमों को छात्रों के अनुकूल बनाना है।
अपनी रिपोर्ट में सुब्रह्मण्यम समिति ने संकाय सदस्यों के पद खाली रहने पर भी गौर किया और कहा कि कुछ राज्य पदों को नियमित आधार पर भरने को अनिच्छुक हैं ताकि पूर्णकालिक संकाय को वेतन देने से बचा जा सके। समिति ने कहा कि तदर्थ और अतिथि शिक्षकों पर अति निर्भरता शिक्षा की गुणवत्ता के खिलाफ है और सुझाव दिया कि नियमित संकायों का अभाव मान्यता देने के वक्त नकारात्मक सूचक होना चाहिए।
समिति ने सिफारिश की कि उच्च शिक्षा के लिए संकाय के पदों की आवश्यकता तय करने के लिए हर पांच साल पर केंद्र और राज्य स्तरों पर ‘मानवशक्ति की आवश्यकता’ का अध्ययन किया जाना चाहिए।
नयी शिक्षा नीति तैयार करने पर अपनी सिफारिशों में समिति ने इन निजी उच्च शिक्षण संस्थानों के ‘अपारदर्शी वित्तीय प्रबंधन’ की भी आलोचना की है। समिति ने कहा कि यह समानांतर अर्थव्यवस्था संचालन को प्रोत्साहन देगा।
पूर्व कैबिनेट सचिव टी एस आर सुब्रह्मण्यम की अध्यक्षता वाली समिति ने कहा कि हकीकत का इस बात से सामना कराए जाने की जरूरत है कि लचर या भ्रष्ट नियामक वातावरण का फायदा उठाकर अनेक निजी विश्वविद्यालय और कॉलेज शिक्षा के प्रति मामूली दिलचस्पी रखने वाले धन बल से पूर्ण प्रभावशाली लोगों के संरक्षण में फल-फूल रहे हैं।
समिति ने कहा है कि उच्च शिक्षण संस्थानों का प्रसार हो लेकिन उच्च शिक्षा की बढ़ती मांग के अनुपात में गुणवत्तापूर्ण शिक्षक प्रदान करने के लिए न तो सुव्यवस्थित व्यवस्था है और न ही पर्याप्त प्रतिबद्धता। समिति ने कहा कि इस तरह की निजी शिक्षा की दुकानों और ‘तथाकथित गैर लाभकारी संस्थानों’ के परेशान करने वाले प्रसार से निपटने के लिए अविलंब कदम उठाने की आवश्यकता है। ये संस्थान आधारभूत संरचनाओं से वंचित हैं और अयोग्य कर्मचारियों से संचालित होते हैं।
समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा, मौजूदा व्यवस्था निजी उच्च शिक्षण संस्थानों के अपारदर्शी वित्तीय प्रबंधन को प्रोत्साहित करती है, जिससे परोक्ष रूप से समानांतर अर्थव्यवस्था के संचालन को समर्थन मिलता है। व्यवस्था में उसकी गुणवत्ता को समुन्नत करने, घटिया संस्थानों पर अंकुश लगाने और लाचार छात्रों के शोषण पर अंकुश लगाने के लिए अंतर्निहित कोई व्यवस्था नहीं है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने इस हफ्ते डीम्ड विश्वविद्यालयों के लिए नए दिशा-निर्देशों की घोषणा की थी। इनमें से ज्यादातर निजी विश्वविद्यालय हैं। मंत्रालय का लक्ष्य लाल फीताशाही को कम करना, पारदर्शिता लाना और नियमों को छात्रों के अनुकूल बनाना है।
अपनी रिपोर्ट में सुब्रह्मण्यम समिति ने संकाय सदस्यों के पद खाली रहने पर भी गौर किया और कहा कि कुछ राज्य पदों को नियमित आधार पर भरने को अनिच्छुक हैं ताकि पूर्णकालिक संकाय को वेतन देने से बचा जा सके। समिति ने कहा कि तदर्थ और अतिथि शिक्षकों पर अति निर्भरता शिक्षा की गुणवत्ता के खिलाफ है और सुझाव दिया कि नियमित संकायों का अभाव मान्यता देने के वक्त नकारात्मक सूचक होना चाहिए।
समिति ने सिफारिश की कि उच्च शिक्षा के लिए संकाय के पदों की आवश्यकता तय करने के लिए हर पांच साल पर केंद्र और राज्य स्तरों पर ‘मानवशक्ति की आवश्यकता’ का अध्ययन किया जाना चाहिए।
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