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CBSE ओपन बुक परीक्षा मौजूद परीक्षा प्रणाली से ज्यादा कठिन, इसमें न फिक्स सवाल होंगे ना रटे-रटाए जवाब

CBSE Open Book Exam: एक्सपर्ट की मानें तो सीबीएसई ओपन बुक एग्जाम मौजूद परीक्षा पद्धित से ज्यादा कठिन है, क्योंकि इस परीक्षा में न तो फिक्स सवाल होंगे, ना कि छात्रों को रटे-रटाए जवाब देने होंगे. यह परीक्षा के जरिए बच्चों की बैद्धिक क्षमता का आकलन किया जाएगा.

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CBSE ओपन बुक परीक्षा मौजूद परीक्षा प्रणाली से भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण

नई दिल्ली:

CBSE Open Book Exam: देश में नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (NEP 20220) के तहत शिक्षा क्षेत्र में कई बड़े बदलाव हो रहे हैं. एनईपी को लागू करने के लिए नए नेशनल कैरिकुलम फ्रेमवर्क (NCF) की सिफारिशों के मुताबिक ओपन बुक एग्जामिनेशन (OBE) का कॉन्सेप्ट लागू करने पर विचार हो रहा है. केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) नए नेशनल कैरिकुलम फ्रेमवर्क की सिफारिशों के मुताबिक कक्षा 9वीं से 12वीं तक के सभी छात्रों के लिए ओपन बुक एग्जाम पर विचार कर रही है. सीबीएसई साल के अंत में कक्षा 9वीं के लिए अंग्रेजी, गणित और विज्ञान जबकि 11वीं और 12वीं के लिए अंग्रेजी, गणित और बायोलॉजी के लिए कुछ स्कूलों में ओपन बुक परीक्षा करवाने का प्रस्ताव दिया है. जिससे इसमें लगने वाले समय का मूल्यांकन किया जा सके और यह प्रयोग सफल रहा तो इसे आगे की सभी परीक्षाओं में लागू किया जा सकता है. फिलहाल बोर्ड ने सीबीएसई स्कूलों में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में ओपन बुक एग्जाम आयोजित करने का प्रस्ताव दिया है. ओपन बुक एग्जाम यानी किताब खोलकर परीक्षा की बात आते ही बच्चों सहित अभिभावकों और शिक्षकों के मन में कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. ओपन बुक एग्जाम से क्या फायदा और क्या नुकसान है, इसे लेकर NDTV ने शिक्षाविद अनीता रामपाल से बातचीत की है, आइये जानते हैं-

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प्रश्न-ओपन बुक एग्जाम के क्या फायदे हैं और क्या नुकसान हैं?

जवाब-इस एग्जाम के फायदे तो हैं, लेकिन इसे तुरंत या फिर एक साल के भीतर लागू करने का दवाब बोर्ड पर नहीं दिया जाना चाहिए. स्कूलों में ओपन बुक एग्जाम होना चाहिए ताकि हमारे पढ़ने का क्या तरीका है, पढ़ाने का तरीका क्या और मूल्यांकन का तरीका जो सालभर में किया जाएगा, उसके हम आदि हो जांए. इस परीक्षा में फिक्स सवाल नहीं आएंगे और उसे हमें रटे-रटाए उत्तर देने नहीं है. क्योंकि ओपन बुक परीक्षा एक सीखने का तरीका है, यह सिर्फ मूल्यांकन का तरीका नहीं है. दूसरा यह कि यह परीक्षा ऑनलाइन नहीं होनी चाहिए. क्योंकि ऑनलाइन के अपने चैलेंजे हैं, जैसे कोविंड काल में दिल्ली यूनिवर्सिटी सहित अन्य यूनिवर्सिटी ने किया था. यह परीक्षा ऑनलाइन सही ढंग से नहीं हो पाती है. ऑनलाइन में यह जानकारी स्पष्ट नहीं होती है कि परीक्षा कौन दे रहा यानी छात्र की जगह कोई और तो प्रश्न का उत्तर नहीं दे रहा है, ऐसे में यह परीक्षा ऑफलाइन होनी चाहिए. यह ऑफलाइन होना चाहिए. ऐसा प्रयोग मध्य प्रदेश के कक्षा आठवीं के बोर्ड के साथ ऐसा प्रयोग किया गया था. 70-80 के दशक में ऐसी ही इंतिहान लिए जाते थे, जिसमें छात्र अपनी किताबें-नोट्स लेकर जा सकते थे. उसकी तैयारी ऐसी होती थी कि सारा साल मूल्यांकन वैसे ही होता है. ओपन बुक परीक्षा में छात्र को प्रश्न का जवाब सोचना होता है, और किताब आप रिफरेंस के तौर पर इस्तेमाल करते हैं.

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प्रश्न-ओपन बुक परीक्षा में किताबों को लाने की परमिशन होगी, ऐसे में छात्र का बौद्धिक विकास किस तरह होगा?

जवाब- बौद्धिक विकास इस तरह से होता है कि आप रटी-रटाई जवाब नहीं दे रहे हो. आप किताबी ज्ञान पेपर पर नहीं उतार रहें बल्कि छात्र की अपनी समझ को आंका जा रहा है. 

प्रश्न-परीक्षा का डर छात्रों को पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित करता है ऐसे में अगर ओपन बुक हुआ तो क्या होगा?

उत्तर-ओपन बुक परीक्षा, आसान नहीं है क्योंकि आप ऐसा सोचें कि आपने सालभर पढ़ाई नहीं की और परीक्षा में चलें गए है प्रश्न का जवाब देखने के लिए किताब के पन्ने पलटने लगें. इस परीक्षा में भी वे ही छात्र जवाब दे सकेंगे जो सालभर अच्छी तरह पढ़ते हैं. यह परीक्षा परंपरागत परीक्षा से ज्यादा चुनौतिपूर्ण हैं.

प्रश्न- बच्चे परीक्षा में नकल करने के लिए चीट लेकर जाते हैं, ऐसे में तो अच्छा रहेगा कि ओपन बुक यानी किताब लेकर जाना का विकल्प मिल जाए?

जवाब- बच्चे परीक्षा में किताब तो लेकर जा सकेंगे, लेकिन वे सवाल ऐसे नहीं होने चाहिए कि उनका जवाब सीधे किताब से उतारा जा सके. वे सवाल चुनौतीपूर्ण होने चाहिए, छात्र के मौलिक समझ के. अगर सीधे-साधे सवाल हो और छात्र किताब खोलकर उसका जवाब लिख दे, तो ऐस परीक्षा का कोई मतलब नहीं है. परीक्षा ही नहीं इसकी मार्किंग भी अलग ढंग से होनी चाहिए. 

प्रश्न-उत्तर प्रदेश में 92-93 में नई शिक्षा नीत लागू हुई थी, स्वपुस्तिक की परीक्षा. उस साल यूपी बोर्ड का रिजल्ट सबसे खराब हुआ था, क्योंकि बच्चों ने पढ़ने बंद कर दिया था, क्योंकि परीक्षा में किताब ले जाना अलाउड है.

जवाब-पढ़ने-पढ़ाने की प्रक्रिया में यह निहित होना चाहिए कि आंकलन कैसा होगा. ओपन बुक परीक्षा में सालभर में आपका आंकलन कैसे हो रहा है, सवाल बिलकुल अलग तरह के आ रहे हैं, कहीं से कोई जानकारी लिखी-लिखाई या रटी-रटाई उड़ेलनी नहीं है. इसे हमारे पूरे सिस्टम को बदलना है, सिर्फ एक एग्जाम बदलने से बच्चों के सही नंबर नहीं आएंगे. इसलिए स्कूलों में साल के शुरू में ही ऐसा प्रक्रिया दो-तीन बार की जानी चाहिए ताकि बोर्ड में स्टूडेंट इस पद्धित को अच्छी तरह समझ सकें.

प्रश्न- ओपन बुक परीक्षा मे जब बच्चा किताब लेकर परीक्षा देने जाएंगे, तो बच्चे का स्कूल जाने का फायदा क्या होगा. परीक्षा बच्चों को आगे की प्रतियोगिताओं के तैयार करने के लिए होती है, तो क्या इस तरीके से हम बच्चों को डिपेंडेंट तो नहीं बना रहें, हम बच्चों को कमजोर तो नहीं बना रहें, क्योंकि अभी तक ऐसा ही होता रहा है और हमारा सिस्टम भी एग्जाम बेस्ड है.

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जवाब-बिलकुल नहीं ऐसा नहीं होगा. अभी के सिस्टम में हम बच्चों से समझने की प्रक्रिया नहीं करवा रहें. रटी-रटाई चीजों को वह परीक्षा में लिखकर आते हैं और एग्जाम में नंबर आ जाते हैं तो देखा जाए तो ऐसा सीखने का तो कोई मतलब ही नहीं है. यही कारण कि कहा जाता है कि हमारी शिक्षा की गुणवत्ता बहुत ही कम है. स्कूल ही नहीं यूनिवर्सिटी तक के बच्चे अपनी सोच, समझ और अनुभव को लिख नहीं पाते हैं, क्योंकि उन्हें आदत नहीं है. मेरी समझ से ऐसी शिक्षा का कोई मायने नहीं है. 

प्रश्न- सीबीएसई इसे 9वीं से लागू कर रही है, लेकिन इसे आठवीं कक्षा से ही नहीं बल्कि प्राइमरी लेवल से लागू करना चाहिए. साथ ही शिक्षकों को इस परीक्षा पद्धति के लिए प्रशिक्षण देना चाहिए.

जवाब-सीबीएसई अभी ट्रायल कर रहा है. वह कुछ स्कूलों में इस प्रयोग के तौर पर करेंगे और देखें कि ऐसा संभव है या नहीं. ओपन बुक के लिए शिक्षकों की भी तैयारी होनी चाहिए, उन्हें भी ट्रेंड किया जाना चाहिए.

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