कोयला घोटाले पर सीबीआई की स्टेटस रिपोर्ट को सरकार द्वारा देखे जाने और उसमें कुछ बदलाव किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट के सख्त रुख के बाद केंद्रीय कानून मंत्री अश्विनी कुमार के करीबी अब उनका बचाव करने में लग गए हैं। मंत्री के करीबी सूत्रों का कहना है कि मंत्री द्वारा दिए गए 'सुझाव बहुत ही मामूली' थे और मंत्री के 'सुझाव स्वीकार या अस्वीकार करने' के लिए सीबीआई पूरी तरह से स्वतंत्र थी।
इसी के साथ कानूनमंत्री ने कहा कि बैठक कानून मंत्रालय ने नहीं बुलाई थी। उन्होंने कहा कि बैठक अटॉर्नी जनरल ने बुलाई थी। सीबीआई निदेशक को भी अटॉर्नी जनरल ने बुलाया था।
सरकार के लिए शर्मिंदगी बात यह है कि सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में स्वीकार किया कि कोयला घोटाला पर तैयार स्टेटस रिपोर्ट पीएमओ, कानूनमंत्री और कोयला मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों को दिखाई गई थी।
फिलहाल, प्रधानमंत्री ने कानूनमंत्री का साथ दिया, लेकिन कांग्रेस के कुछ नेता यह मानते हैं कि कानूनमंत्री का पद पर बने रहना ठीक नहीं है।
कानूनमंत्री के करीबी बताते हैं कि मंत्री जी मीडिया के लिए तैयार दो पन्ने के नोट में कुछ तकनीकी वजहों को बताकर अपने ऊपर लगे आरोपों को काटना चाहते हैं। नोट कहता है कि सरकार के कानूनी सलाहकार होने के नाते कानून मंत्रालय को सीबीआई से तमाम मुद्दों पर संपर्क बनाए रखना पड़ता है।
नोट यह भी कहता है कि जब कुमार ने सीबीआई की रिपोर्ट पढ़ी थी तब तक सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई या कानून मंत्रालय को सीबीआई की ड्राफ्ट रिपोर्ट पर वार्ता करने से नहीं रोका था।
रिपोर्ट में बदलाव के सुझाव कानून मंत्रालय द्वारा 5 मार्च को दिए गए। यह रिपोर्ट कोर्ट में प्रस्तुत किए जाने के मात्र तीन दिन पहले ही दिए गए थे। कोर्ट ने सीबीआई को यह आदेश दिया है कि वह बताए कि किनके कहने पर कितना बदलाव रिपोर्ट में किया गया।