दिल्ली हाई कोर्ट में संजय कपूर की वसीयत को लेकर चल रही सुनवाई के तीसरे दिन बचाव पक्ष ने करिश्मा कपूर और उनके बच्चों द्वारा लगाए गए सभी आरोपों का विस्तार से जवाब दिया. प्रिया सचदेव के वकील ने अदालत में कहा कि वादी पक्ष के आरोप अनुमान पर आधारित हैं, उनमें कई विरोधाभास हैं और वे काफी देर से उठाए गए हैं. अगर पूरे रिकॉर्ड को देखा जाए तो वसीयत के असली होने में कोई संदेह नहीं रह जाता. अदालत में पेश सबूतों को उन्होंने एक पूरी चेन बताया, जिसमें डिजिटल रिकॉर्ड, ईमेल, मेटाडेटा, ट्रैवल लॉग और एफिडेविट शामिल हैं.
बचाव पक्ष ने स्पष्ट किया कि वसीयत नितिन शर्मा के लैपटॉप पर तैयार की गई थी. नितिन शर्मा वही व्यक्ति हैं, जिन्होंने वसीयत का ड्राफ्ट बनाया और बाद में उसे साइन करने के समय गवाह भी बने. उन्होंने अपना लैपटॉप अदालत में पेश किया, जिसके मेटाडेटा, स्क्रीनशॉट और एफिडेविट रिकॉर्ड का हिस्सा बनाए गए. बचाव पक्ष का कहना था कि इन तकनीकी सबूतों से साफ है कि दस्तावेज कब और कैसे बनाया गया और इसमें कब-कब बदलाव हुए.
वादी पक्ष ने यह आरोप लगाया था कि वसीयत किसी 'मिस्ट्री इम्पोर्टेड डॉक्यूमेंट' से तैयार की गई है. इस आरोप पर बचाव पक्ष ने कहा कि ऐसा कुछ नहीं हुआ. वसीयत का ड्राफ्ट रानी कपूर की पुरानी वसीयत के टेम्पलेट पर आधारित था, इसलिए उसमें कुछ शब्दों की स्पेलिंग दोहराई जा सकती है और कुछ जगहों पर शब्द गलती से रह सकते हैं. यह साधारण टाइपिंग की बात है, कोई धोखाधड़ी का संकेत नहीं है.
एडिट के समय पर उठाए गए संदेहों को भी बचाव पक्ष ने खारिज किया. उनके अनुसार, संजय ने 10 मार्च 2025 के आसपास ड्राफ्ट का रिव्यू किया, उसके बाद बदलाव किए, और अंतिम बदलाव 17 मार्च को किया गया. इसी दिन वादी पक्ष भी मानता है कि संजय दिल्ली वापस आ चुके थे. ट्रैवल रिकॉर्ड भी इस बात की पुष्टि करते हैं. इसलिए, समय-सीमा में किसी भी तरह की गड़बड़ी की बात बेबुनियाद है.
बचाव पक्ष ने अदालत को वसीयत का डिजिटल अपडेट भी दिखाया, वर्ड फाइल बनने से लेकर पीडीएफ बनने तक, दोनों गवाहों के बीच हुए ईमेल, और फिर 5:01 बजे फैमिली ऑफिस ग्रुप में संजय द्वारा इस दस्तावेज को देखने तक, हर अपडेट का रिकॉर्ड अदालत में दिखाया गया. वादी पक्ष ने अचानक संजय के हस्ताक्षर पर भी सवाल उठाया. इस पर बचाव पक्ष ने कहा कि यह स्वयं विरोधाभासी है, क्योंकि बच्चों ने इसी सिग्नेचर को मानते हुए 2,000 करोड़ रुपए से अधिक के ट्रस्ट लाभ स्वीकार किए थे. दोनों गवाहों ने हलफनामे देकर कहा कि सिग्नेचर असली हैं.
एक और आरोप यह था कि वसीयत समय पर नहीं दी गई या उसे छिपाया गया. बचाव पक्ष के अनुसार, संजय की मौत के तुरंत बाद दिनेश अग्रवाल ने एग्जीक्यूटर से संपर्क किया और 24 जून 2025 को वसीयत सौंप दी गई, जिसकी लिखित पुष्टि भी है. दूसरी ओर, वादी पक्ष ने कई हफ्तों तक वसीयत लेने की कोशिश ही नहीं की और शुरुआत में केवल ट्रस्ट से जुड़े कागजों पर ध्यान दिया.
वादी पक्ष ने वसीयत के रजिस्टर्ड न होने पर भी विरोध जताया था, जिसे बचाव पक्ष ने कानून के आधार पर गलत बताया. दिल्ली में वसीयत का रजिस्ट्रेशन जरूरी नहीं है और न ही इसका कानूनी वैधता पर कोई असर पड़ता है. संजय की अधिकांश संपत्ति भारत से बाहर होने के कारण प्रोबेट की भी कोई आवश्यकता नहीं थी. प्रोबेट किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी वसीयत को अदालत से प्रमाणित करवाने की कानूनी प्रक्रिया को कहते हैं.
गवाहों के फाइनेंशियल फायदे से जुड़े आरोपों को भी बचाव पक्ष ने सिरे से खारिज किया. उन्होंने कहा कि नितिन शर्मा और दिनेश अग्रवाल परिवार के लंबे समय से जुड़े प्रोफेशनल हैं और उन्हें वसीयत से कोई आर्थिक लाभ नहीं मिलता. नितिन शर्मा का बाद में ऑनरेरी डायरेक्टर बनना पूरी तरह प्रतीकात्मक था और उससे कोई आय नहीं होती. बचाव पक्ष ने अदालत से सबूतों के आधार पर फैसला लेने का आग्रह किया. बचाव पक्ष ने बताया कि प्रिया कपूर संजय की मृत्यु के बाद से बच्चों की पढ़ाई, देखभाल और जरूरतों पर 1 करोड़ रुपए से अधिक खर्च कर चुकी हैं और वह उनके हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं. मामले की अगली सुनवाई 21 नवंबर को होगी.
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