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सिनेमाघरों में पुरानी फिल्मों की बहार: मजबूरी या मौका?

क्या है ओल्ड इज गोल्ड की स्ट्रेटेजी? सिनेमाघरों में कॉन्टेंट की कमी से कुछ इस तरह निबट रहे सिनेमा मालिक, 30 अगस्त को सिनेमाघरों में फिर रिलीज हो रहीं तुम्बाड़, रहना है तेरे दिल में और गैंग्स ऑफ वासेपुर.

आखिर क्या है पुरानी फिल्मों को दोबारा रिलीज करने की वजह

नई दिल्ली:

बॉलीवुड का एक मशहूर गाना है, बार बार देखो हजार बार देखो, ये देखने की चीज है...इन दिनों सिनेमाघरों में भी कुछ ऐसा ही आलम है. एक समय बॉक्स ऑफिस पर झंडे गाड़ चुकी फिल्में दोबारा से दिखाई जा रही हैं. 30 अगस्त को एक दो नहीं बल्कि तीन पुरानी फिल्में रहना है तेरे दिल में, तुम्बाड़ और गैंग्स ऑफ वासेपुर री-रिलीज होंगी. कुछ समय पहले रॉकस्टार, मैंने प्यार किया, जब वी मेट और ये जवानी है दीवानी भी दोबारा रिलीज हो चुकी हैं, यही नहीं, एनिमल फेम एक्ट्रेस तृप्ति डिमरी की बढ़ती पॉपुलैरिटी को देख उनकी लैला मजनूं भी री-रिलीज कर दी गई थी.

क्या है री-रिलीज की वजह?

इस तरह साउथ से लेकर बॉलीवुड तक में ओल्ड इज गोल्ड का फॉर्मूला अपनाया जा रहा है. वजह? सिनेमाघरों में पसरा सन्नाटा...ये सन्नाटा पसरा कैसे? इसकी सबसे बड़ी वजह फिल्मों का कम तादाद में रिलीज होना है. साल 2024 के अप्रैल से जून के बीच बहुत ही कम हिंदी, अंग्रेजी या पैन-इंडिया फिल्में रिलीज हुई थीं. अगस्त और सितंबर की करें तो 15 अगस्त के दिन 16 बढ़ी और छोटी कई भाषाओं की फिल्में एक साथ ही रिलीज कर दी गईं. अब उससे पहले के भी कुछ हफ्ते खाली थे, और इसके बाद तो सितंबर तक सिनेमाघरों में इमरजेंसी को छोड़ कोई बड़ी रिलीज नहीं है. ऐसे में सन्नाटा तो पसरेगा ही. लेकिन अक्टूबर से जनवरी तक, हिंदी, तेलुगु, तमिल और अंग्रेजी फिल्मों का भारी-भरकम शेड्यूल है.

कहां हुई कौन-सी गड़बड़?

मिराज एंटरटेनमेंट लिमिटेड के एमडी अमित शर्मा कहते हैं, मल्टीप्लेक्सेस को चलाने के लिए लगातार फिल्मों की जरूरत होती है. जब रिलीज शेड्यूल में गैप होते हैं और कॉन्टेंट की कमी होती है, तो हम जैसे मल्टीप्लेक्स ऑपरेटर फिल्मों को दोबारा रिलीज करने का सहारा लेते हैं. खासकर सितंबर के लिए, जो इस वित्तीय वर्ष का रीरिलीज का आखिरी महीना लगता है.'

फिल्मों को री-रिलीज सिर्फ बॉलीवुड ही कर रहा है बल्कि साउथ में भी इस भी इस ट्रेंड को खूब फॉलो किया जा रहा है. पवन कल्याण की गब्बर सिंह और नागार्जुन की शिवा उनके जन्मदिन पर रीरिलीज होंगी. महेश बाबू की मुरारी और रवि तेजा की विक्रामारकुडु को रीरिलीज अच्छा रिस्पॉन्स मिला था.

किसका कितना फायदा?

यहां सवाल ये पैदा होता है कि क्या इन फिल्मों को दोबारा रिलीज करने से सिनेमा मालिकों का बहुत बड़ा फायदा होता है तो इसका जवाब मूवी मैक्स सिनेमा के सीईओ आशीष कनकिया देते हैं कि आर्थिक लाभ की दृष्टि से, दोबारा रिलीज की गई फिल्मों से हमेशा बड़ा फायदा होने की उम्मीद नहीं होती, लेकिन यह एक अलग प्रकार का निवेश है. इससे सिनेमाघरों में नई और पुरानी फिल्मों के बीच संतुलन बना रहता है, जो हमारी दर्शक संख्या को बनाए रखने में मदद करता है.' 

इस तरह मौजूदा हालात को देखकर सिनेमा मालिकों को लेकर जेहन में मुनव्वर राणा का एक शेर कौंध जाता है. जिसमें थोड़ा बदलाव किया जाए तो थिएटर मालिकों का दर्द उभरकर आता है कि पुरानी फिल्में दिखाना शौक कहां मजबूरी का सौदा है, हम अच्छे कंटेंट के इंतजार में पुरानी फिल्में रिलीज करते जाते हैं...

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