
बॉलीवुड के चलन से हटकर फिल्में बनाने के लिए मशहूर रहे निर्माता, निर्देशक और लेखक महेश भट्ट ने हमेशा सीमित बजट में फिल्में बनाकर कई हिट फिल्में दीं. महेश भट्ट ने ज्यादातर कलाकारों को फिल्मों में चांस दिया. उनके प्रोडक्शन हाउस या खुद महेश भट्ट ने नए चेहरों को स्टार बनाया और कभी स्टार्स के पीछे नहीं भागे. हाल ही में बॉलीवुड में कॉर्पोरेट बुकिंग या कहें मास बुकिंग के चलन ने जोर पकड़ा और विवाद उठा कि किस तरह फिल्म के निर्माता अपनी ही फिल्मों के टिकट खरीदकर बॉक्स ऑफिस के आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखा रहे हैं. बॉलीवुड के इस नए रिवाज से महेश भट्ट नाखुश दिखे.
हाल ही में महेश भट्ट द्वारा निर्मित फिल्म ‘तुम मेरी पूरी कहानी' रिलीज हुई और उसी दौरान बातचीत में जब उनसे इस चलन के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, "ये कन्फर्म है, यह एक श्राप है. धर्म जी (धर्मेंद्र) ने कुछ साल पहले एक बात कही थी जब हम लोग ट्रैवल कर रहे थे. उन्होंने कहा था- अजीब दौर आ गया यार. लोग आजकल अच्छा दिखना चाहते हैं, अच्छा बनना नहीं चाहते हैं. हम ये दिखाना चाहते हैं कि हमने एक सुपरहिट फिल्म बना दी है, पर आपको सच से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए. जो बॉक्स ऑफिस आपको देता है, वही ईश्वर की आवाज है".
आगे कहा, "आपने यह काम किया, उसका यही नतीजा है भैया. अब वही आपकी बुनियाद है. अगर उस पर आप अपना दूसरा क्रिएशन शुरू करेंगे और इस फैक्ट से मुंह चुराएंगे, तो आखिर आप किसे बेवकूफ बना रहे हैं?".
राजश्री के राजबाबू का जिक्र करते हुए महेश भट्ट ने कहा, "मुझे याद है ‘सारांश' के टाइम की बात. उस जमाने में होता ये था कि पहले पिक्चर बंबई में लगती थी, फिर दिल्ली में, फिर बंगाल में. मजबूरी में यहां के प्रोड्यूसर पैसे देकर हाउसफुल करा लेते थे ताकि लगे कि पिक्चर हिट हो रही है. क्योंकि नहीं तो दिल्ली वाला डिस्ट्रीब्यूटर भाग जाता था, बंगाल वाला भी". महेश भट्ट साहब आगे कहते हैं, "मुझे याद है, जब ‘दो रास्ते' रिलीज हुई थी, फिल्म शुरू में चली नहीं थी तो हमें प्रोडक्शन से भेजा जाता था. हम टिकट खरीदते थे क्योंकि हॉल खाली रहता था. फिर टिकट खरीदकर मरीन ड्राइव में जाकर पानी में फेंक देते थे. ये चलन हमने अपनी आंखों से देखा था".
उन्होंने कहा, "जब ‘सारांश' मेट्रो सिनेमाघर में रिलीज हुई, तो फिल्म की तारीफ बहुत थी. पर मेट्रो बहुत बड़ा हॉल था और उस वक़्त भिवंडी में दंगे चल रहे थे, हाउसफुल होने में कुछ सीटें खाली रह जाती थीं. मैंने कहा- ‘राजबाबू, हाउसफुल कर दीजिए', तो उन्होंने मुझे घूरकर देखा और कहा- ‘ऐसा कभी मत करना. कल को अगर पिक्चर वाकई अच्छा कमाएगी, तो मालूम ही नहीं पड़ेगा कि असली कमाई क्या है'. अगर पांच साल बाद तुम जो झूठ आज बोल रहे हो, उस पर लोग यकीन करने लगेंगे कि फिल्म वाकई हाउसफुल थी. तो किससे झूठ बोल रहे हो? आईना तोड़कर आप अपनी शक्ल ठीक नहीं कर सकते".
लंबे समय से फिल्मों में काम कर रहे महेश भट्ट ने सिनेमा जगत के कई दौर देखे हैं. पर आज के दौर के चलन से उन्हें ऐतराज है और होना भी चाहिए. क्योंकि आज भले ही नकली आंकड़े किसी फिल्म को हिट साबित कर दें, लेकिन बॉलीवुड की खोखली जेबों का मंजर धीरे-धीरे सामने आ ही जाता है.
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