
कोलकाता में मशहूर गीतकार और लेखक जावेद अख्तर के मुशायरे को अंतिम समय में रद्द कर दिया गया. कुछ मुस्लिम संगठनों के विरोध के बाद यह निर्णय लिया गया, जिसके बाद अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और संस्कृति पर हमले का मुद्दा गरमाया है. पश्चिम बंगाल उर्दू अकादमी द्वारा आयोजित यह चार दिवसीय कार्यक्रम 1 सितंबर से शुरू होने वाला था, लेकिन 2 सितंबर को इसे स्थगित करने की घोषणा की गई. अकादमी की सचिव नुजहत जैनब ने बताया कि “कुछ अपरिहार्य कारणों” से कार्यक्रम को टालना पड़ा. उन्होंने यह भी कहा कि नई तारीखों की घोषणा बाद में की जाएगी, लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया कि जावेद अख्तर को उस आयोजन में शामिल किया जाएगा या नहीं.
मुस्लिम संगठनों का विरोध
आयोजन के रद्द होने की वजह कुछ मुस्लिम संगठनों का विरोध बताया जा रहा है. इन संगठनों ने दावा किया कि जावेद अख्तर की हाल की कुछ टिप्पणियों से समुदाय की धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं. जमीयत-ए-उलेमा की पश्चिम बंगाल इकाई के महासचिव मुफ्ती अब्दुस सलाम कासमी ने कहा, “जावेद अख्तर की टिप्पणियां मुस्लिम समुदाय की भावनाओं के खिलाफ हैं. उर्दू अकादमी एक अल्पसंख्यक संस्था है, और ऐसे व्यक्ति को आमंत्रित करना ठीक नहीं, जिसने धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई हो.”
कार्यक्रम रद्द होने पर क्या बोले जावेद अख्तर
एनडीटीवी से बातचीत में जावेद अख्तर ने कहा, 'मेरे लिए, यह बिल्कुल भी नया नहीं है. अगर मैं आपको फोन और मैसेज दिखाऊं तो मुझे लगातार कट्टरपंथियों, हिंदू और मुस्लिम, दोनों से नफरत भरे ईमेल मिलते हैं. कुछ कहते हैं कि मैं जेहादी हूं और मुझे पाकिस्तान चले जाना चाहिए. कुछ कहते हैं कि मैं काफिर हूं और सौ फीसदी मैं नर्क में जाऊंगा, और मुझे अपना नाम बदल लेना चाहिए. मुझे मुस्लिम नाम रखने का कोई हक नहीं है वगैरह. तो मेरे लिए यह कोई नई बात नहीं है. मैं आपको बता दूं कि 20-25 साल में चार बार बॉम्बे पुलिस ने मुझे अपनी मर्जी से सुरक्षा दी है. मैंने इसके लिए कहा नहीं था, लेकिन उन्होंने कहा कि इसकी जरूरत है, इसलिए हम आपको दे रहे हैं. चार में से तीन बार ऐसा किसी मुस्लिम कट्टरपंथी संगठन या व्यक्ति की वजह से हुआ और एक बार दूसरे पक्ष की वजह से.'
वामपंथी संगठनों का गुस्सा
कार्यक्रम के स्थगन के फैसले की वामपंथी छात्र संगठनों ने कड़ी आलोचना की है. SFI, AISF, आइसा, AIDSO, AISB और PSU ने एक संयुक्त बयान में इसे “इस्लामी कट्टरपंथी समूहों के दबाव में लिया गया अलोकतांत्रिक कदम” करार दिया. उन्होंने आरोप लगाया कि तृणमूल कांग्रेस सरकार ने जमीयत-ए-उलेमा-ए-हिंद जैसे संगठनों के दबाव में यह निर्णय लिया. बयान में कहा गया, “ऐसी धमकियों का विरोध करने के बजाय, सरकार ने आत्मसमर्पण कर दिया. यह हमला न केवल जावेद अख्तर पर, बल्कि कला, संस्कृति, धर्मनिरपेक्षता और बौद्धिक स्वतंत्रता पर है.”
वामपंथी छात्र संगठनों ने जावेद अख्तर को दिल्ली में होने वाले एक अन्य आयोजन में “हिंदी सिनेमा में उर्दू की भूमिका” पर बोलने के लिए खुला निमंत्रण दिया. उन्होंने कहा कि वे किसी भी धार्मिक कट्टरपंथी ताकतों के दबाव में नहीं झुकेंगे और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करेंगे.
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