विज्ञापन जगत के महानायक और ‘ऐड गुरु' कहे जाने वाले पीयूष पांडे के निधन ने पूरे उद्योग को स्तब्ध कर दिया है. अभिनेता वीरेन्द्र सक्सेना, जिन्होंने पीयूष के साथ कई प्रोजेक्ट्स में काम किया, भावुक होकर उन्हें याद करते हैं.
सवाल: आपने भी कई ऐड्स किए हैं, पीयूष पांडे से मुलाकातें भी रही होंगी. वे आपको किस तरह के इंसान लगे?
वीरेन्द्र सक्सेना: बहुत कम लोग होते हैं जिन्हें देखकर दिल खुश हो जाए. पीयूष उन्हीं में से एक थे. मैंने उन्हें कभी उदास या नाराज़ नहीं देखा. हमेशा मुस्कुराने वाले, हंसाने वाले और हर वक्त किसी ना किसी वन-लाइनर के साथ तैयार. बात चाहे कितनी ही गंभीर क्यों न हो, उनके पास एक ऐसा जुमला होता था जो माहौल हल्का कर देता था. हम लोग एक फिल्म ‘लव इन मथुरा' पर साथ काम कर रहे थे. उन दिनों उन्होंने हमारी स्क्रिप्ट सुनी, सुझाव दिए और मज़ाक करते रहे. बहुत अच्छा वक्त था वो. इतना सच्चा, मददगार और जीवन से भरा इंसान मैंने बहुत कम देखा है. किसी भी नीरस प्रोडक्ट में जान डाल देना, ये हुनर सिर्फ उन्हीं में था.
सवाल: उनके ऐड्स में अक्सर समाज और मनोरंजन का मेल दिखता था. आप इसे कैसे देखते हैं?
वीरेन्द्र सक्सेना: बिल्कुल सही कहा. पीयूष चीज़ों को देखने का नजरिया बहुत मानवीय और सामाजिक रखते थे. वो सिर्फ प्रोडक्ट नहीं बेचते थे, वो उसमें ‘ज़िंदगी' डाल देते थे. उनके लिए तीस सेकंड का ऐड भी किसी कहानी जैसा होता था, जिसमें कुछ ऐसा ज़रूर हो जो दिल को छू जाए. ‘हर घर कुछ कहता है' जैसे स्लोगन में भी देखिए ये सिर्फ लाइन नहीं, एक भावना थी.
सवाल: क्या कोई ऐड या लाइन जो आपके दिल में हमेशा के लिए बस गई हो?
वीरेन्द्र सक्सेना: ‘हर घर कुछ कहता है' तो खुद में एक इतिहास है. वो मुंबई में रहते थे लेकिन ‘मुंबई वाले' नहीं थे. छोटे शहर की सादगी और अपनापन उनमें हमेशा था. वही चीज़ उनके काम में दिखती थी — Fevicol के ऐड्स में, Asian Paints में, हर जगह. उनकी सोच लोक और जीवन से जुड़ी थी.
सवाल: पीयूष के परिवार से भी आपका जुड़ाव रहा है.
वीरेन्द्र सक्सेना: हाँ, प्रसून पांडे से लेकर पूरे परिवार को जानता हूं. सबके भीतर वही ह्यूमर, वही गर्मजोशी है. सुबह जब खबर सुनी तो बहुत अजीब-सा लगा. ये कोई उम्र नहीं थी जाने की. उन्होंने दुनिया को बहुत कुछ दिया.
सवाल: आपने भी कई ऐड्स में वॉयस ओवर किया है. क्या उन्होंने कभी आपके काम पर कुछ कहा?
वीरेन्द्र सक्सेना (हंसते हुए): एक बार बोले थे, “वीरू, जब स्क्रिप्ट में बदलाव कराओ तो पैसे चार्ज किया करो.” बोले, “तुम काम को अच्छा कर रहे हो, नया सोच रहे हो, उसका मूल्य लो.” ऐसे थे वो — प्रोत्साहित करने वाले, सबको आगे बढ़ाने वाले.
सवाल: उनके जाने से ऐड वर्ल्ड को कितना बड़ा नुकसान हुआ है?
वीरेन्द्र सक्सेना: बहुत बड़ा. सच कहूं तो उनकी जगह कोई नहीं ले सकता. अगर कोई थोड़ा-बहुत उस विरासत को आगे बढ़ा सकता है तो वो उनके छोटे भाई प्रसून पांडे हैं. उन्हीं में वो सेंस ऑफ ह्यूमर है, वही जज़्बा, वही अपनापन. उनके ऐड्स भी लोगों को मुस्कुराने पर मजबूर करते हैं, जैसे पीयूष के करते थे.
अंत में, वीरेन्द्र सक्सेना की आवाज़ भारी हो जाती है
“पीयूष जैसा दिलखुश आदमी अगर अचानक चला जाए, तो दिल में एक खालीपन रह जाता है. वो सिर्फ ऐड गुरु नहीं, इंसानियत के भी गुरु थे.”
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