
शोले सिर्फ एक फिल्म नहीं थी, बल्कि भारतीय सिनेमा का वो क्लासिक चैप्टर है जिसने हर किरदार को अमर बना दिया. गब्बर का खौफ, ठाकुर का दर्द और वीरू की शरारतें सब ने मिलकर इस फिल्म को इतना एंटरटेनिंग बना दिया कि एक नहीं शोले हर जेनरेशन की फेवरेट फिल्म बन गई. लेकिन सोचिए, अगर धर्मेंद्र उस दौर में वीरू की जगह गब्बर सिंह की डरावनी हंसी हंसते या ठाकुर जैसे गंभीर और संजीदा नजर आते, तो शायद पूरी कहानी का रंग ही बदल जाता. दिलचस्प बात ये है कि धर्मेंद्र ने वाकई निर्देशक रमेश सिप्पी से गब्बर या ठाकुर का किरदार निभाने की जिद ठान ली थी. लेकिन रमेश सिप्पी का जवाब इतना मजेदार था कि धर्मेंद्र भी मुस्कुराते हुए चुप हो गए और वीरू के किरदार को पूरे दिल से स्वीकार कर लिया.
धर्मेंद्र की पहली पसंद, गब्बर या ठाकुर
धर्मेंद्र ने शुरू में वीरू का रोल करने में बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं दिखाई. उनका मानना था कि वीरू का किरदार उनके स्टारडम और स्क्रीन प्रेजेंस के हिसाब से छोटा है. धर्मेंद्र चाहते थे कि उन्हें गब्बर या ठाकुर का रोल दिया जाए. धर्मेंद्र को लग रहा था की फिल्म गब्बर और ठाकुर के किरदार के इर्द गिर्द ही घूमेगी.
रमेश सिप्पी का मजेदार जवाब
निर्देशक रमेश सिप्पी जानते थे कि अगर धर्मेन्द्र ने वीरू का रोल छोड़ दिया तो फिल्म का पूरा बैलेंस बिगड़ जाएग. वो धर्मेन्द्र की जिद को तोड़ना चाहते थे, लेकिन सीधे-सीधे समझाने से शायद बात नहीं बनती. इसलिए उन्होंने मजाकिया अंदाज में एक लाइन कही जिसने पूरा खेल बदल दिया. सिप्पी ने मुस्कुराते हुए कहा-'धर्म जी, आप चाहें ठाकुर बन जाइए या गब्बर… लेकिन फिर बसंती यानी हेमा मालिनी आपको कभी नहीं मिलेगी'. बस, इतना सुनना था कि माहौल बदल गया. धर्मेन्द्र के चेहरे पर मुस्कान लौट आई और उन्होंने तुरंत वीरू का रोल करने के लिए हामी भर दी.
क्यों पलटा धर्मेन्द्र का फैसला?
असल में, उस समय धर्मेन्द्र का दिल हेमा मालिनी पर पूरी तरह आ चुका था. वो जानते थे कि वीरू का रोल करने से उन्हें बसंती के साथ सबसे ज्यादा स्क्रीन टाइम मिलेगा. रोमांस, डांस और शरारतों से भरे सीन होंगे. यही मौका तो उन्हें चाहिए था. इसलिए रमेश सिप्पी की हल्की-सी चुटकी ने उनका मन पूरी तरह बदल दिया. वीरू का रोल मानने के पीछे कहीं न कहीं उनका असली मकसद भी हेमा मालिनी के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताना ही था.
अमिताभ बच्चन भी चाहते थे गब्बर बनना
दिलचस्प बात यह है कि सिर्फ धर्मेन्द्र ही नहीं, बल्कि अमिताभ बच्चन भी गब्बर सिंह का किरदार निभाने की इच्छा रखते थे. उन्होंने स्क्रिप्ट सुनने के बाद कहा था कि विलेन का रोल सबसे दमदार है, लेकिन फिल्म की टीम का मानना था कि अमिताभ उस समय एक उभरते हुए हीरो थे और जय का किरदार उन पर ही फबेगा. यह फैसला भी बिल्कुल सही साबित हुआ क्योंकि जय-वीरू की दोस्ती आज भी भारतीय सिनेमा की सबसे बड़ी मिसाल मानी जाती है.
वीरू और बसंती, रील जोड़ी बनी रियल
धर्मेंद्र और हेमा मालिनी की जोड़ी पर्दे पर बिल्कुल रियल लगती थी. वीरू की शरारती, मस्ती भरी और कभी-कभी नटखट अदा ने बसंती के खिलखिलाते अंदाज के साथ मिलकर हर सीन को जिंदा कर दिया. अगर धर्मेंद्र गब्बर या ठाकुर बन जाते, तो यह प्यारी जोड़ी शायद पर्दे पर कभी नहीं बन पाती. वीरू-बसंती की केमिस्ट्री ने फिल्म में हंसी, रोमांस और दिलचस्पी का पूरा तड़का लगा दिया.
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