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भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत के दिन कर सकते हैं रुद्राष्टकम स्तोत्र का पाठ

किस तरह से प्रदोष व्रत रखना चाहिए और इस दौरान किस तरह रुद्राष्टकम स्तोत्र (Rudrashtakam Stotram) का पाठ करना चाहिए, जानें यहां.

Edited by Updated : June 19, 2024 7:45 AM IST
भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत के दिन कर सकते हैं रुद्राष्टकम स्तोत्र का पाठ
प्रदोष व्रत के दिन इस तरह करें भगवान शिव को प्रसन्न.
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हिंदू कैलेंडर के अनुसार, हर महीने में शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) रखा जाता है. यह व्रत भगवान शिव (Lord Shiva) और मां पार्वती को समर्पित होता है. कहते हैं कि इस दिन विधि-विधान से महादेव और पार्वती मां की पूजा अर्चना करने से भक्तों की सभी मुराद पूरी होती है और दांपत्य जीवन खुशहाल होता है. ऐसे में आपको किस तरह से प्रदोष व्रत रखना चाहिए और इस दौरान किस तरह रुद्राष्टकम स्तोत्र (Rudrashtakam Stotram) का पाठ करना चाहिए, जानें यहां.

ज्येष्ठ माह के प्रदोष व्रत 2024 शुभ मुहूर्त

जून के महीने में ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत रखा जाएगा. इस बार यह तिथि 19 जून को सुबह 7:28 से शुरू होगी और इसका समापन 20 जून को 7:49 पर होगा. ऐसे में प्रदोष का व्रत उदया तिथि के अनुसार 19 जून को ही रखा जाएगा. मां पार्वती और भगवान शिव को समर्पित यह व्रत करने के लिए सबसे पहले सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें, साफ-सुथरे कपड़े पहनें, भगवान शिव और मां पार्वती की प्रतिमा स्थापित करें, पूजा अर्चना करें, उन्हें पुष्प, बेलपत्र और धतूरा अर्पित करें और सफेद चीजों का भोग लगाएं. इसके बाद सच्चे मन से मां पार्वती और शिवजी की आराधना करें. पूजा में शिव रुद्राष्टकम स्त्रोत का पाठ करना भी बेहद शुभ माना जाता है.

शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र का पाठ
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं ।

विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।।

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं ।

चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ।।1।।

निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं ।

गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् ।।

करालं महाकालकालं कृपालं ।

गुणागारसंसारपारं नतोऽहम् ।।2।।

तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं ।

मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम् ।।

स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा ।

लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ।।3।।

चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं ।

प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।।

मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं ।

प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि ।।4।।

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं ।

अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं ।।

त्रय: शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं ।

भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ।।5।।

कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी ।

सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।।

चिदानन्दसंदोह मोहापहारी ।

प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ।।6।।

न यावद् उमानाथपादारविन्दं ।

भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।

न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं ।

प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ।।7।।

न जानामि योगं जपं नैव पूजां ।

नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् ।।

जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं ।

प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ।।8।।

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ।

ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ।।9।।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)