रजाकार, पाकिस्तान, आरक्षण या राजनीति...शेख हसीना को कौन सी एक गलती पड़ गई भारी?

Sheikh Hasina Bangladesh Exit : बांग्लादेश को छोड़कर शेख हसीना लंदन जा रही हैं. आखिर शेख हसीना को बांग्लादेश छोड़ने की नौबत क्यों आई और उनसे क्या गलतियां हुईं...जानें इस रिपोर्ट में...

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बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है और अब अंतरिम सरकार वहां कार्यभार संभालेगी. बांग्लादेश के सेना प्रमुख जनरल वकार-उज-जमां ने सोमवार को यह घोषणा की. हसीना के देश छोड़कर चले जाने की खबरों के बीच सेना प्रमुख ने टेलीविजन पर दिए गए अपने संबोधन में कहा, “मैं (देश की) सारी जिम्मेदारी ले रहा हूं. कृपया सहयोग करें.” इस बीच, प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे चुकीं शेख हसीना के लंदन रवाना होने की जानकारी प्राप्त हुई है. सेना प्रमुख वकार-उज-जमां ने कहा कि उन्होंने राजनीतिक नेताओं से मुलाकात की और उन्हें बताया कि सेना कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी संभालेगी. बैठक में हसीना की अवामी लीग पार्टी का कोई नेता मौजूद नहीं था. पिछले दो दिनों से हसीना की सरकार के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे और इनमें 100 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है. मगर, यह पिछले दो दिनों या कुछ महीनों में नहीं हुआ. इसके बीज साल 2018 में ही पड़ गए थे. 

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चुनाव में दिख गए थे आसार 

बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबर रहमान की 76 वर्षीय बेटी हसीना 2009 से सामरिक रूप से महत्वपूर्ण इस दक्षिण एशियाई देश की बागडोर संभाल रही थीं. इसी साल जनवरी में हुए 12वें आम चुनाव में लगातार चौथी बार और कुल पांचवीं बार उन्हें प्रधानमंत्री चुना गया था. पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की मुख्य विपक्षी पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और उसके सहयोगियों ने चुनाव का बहिष्कार किया था. इससे बांग्लादेश में किसी मुद्दे पर सहमति बनने की सभी संभावनाएं समाप्त हो गईं थीं.
हाईकोर्ट के आदेश ने बढ़ाई समस्या

शेख मुजीबर रहमान ने ही पाकिस्तान से बांग्लादेश को अलग देश बनाने का स्वतंत्रता संग्राम चलाया था. शेख हसीना उन्हीं की बेटी हैं. बांग्लादेश में स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों को अलग से नौकरियों में आरक्षण मिलता था. बांग्लादेश में रिजर्वेशन का विरोध लंबे अरसे से हो रहा था, मगर सन 2018 में देश भर में हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए थे, जिसके बाद सरकार ने उच्च श्रेणी की नौकरियों में आरक्षण रद्द कर दिया था. पांच जून 2018 को बांग्लादेश हाईकोर्ट ने आरक्षण को लेकर एक याचिका पर फैसला सुनाया. कोर्ट ने इस साल सरकार के आरक्षण रद्द करने के सर्कुलर को अवैध बताया. कोर्ट के इस फैसले से स्वाभाविक रूप से सरकारी नौकरियों में आरक्षण फिर से लागू होता. इसके बाद बांग्लादेश में फिर से प्रदर्शन शुरू हो गए.
यह बयान देना पड़ा भारी
बांग्लादेश हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद शेख हसीना से चूक यह हो गई कि उन्होंने इसका समर्थन कर दिया और विरोध प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर सख्ती शुरू करनी शुरू कर दी. इस बीच प्रधानमंत्री शेख हसीना ने एक बयान दे दिया कि आरक्षण स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों को नहीं तो क्या रजाकारों के वंशजों को दिया जाना चाहिए?  इस पर आंदोलनकारी छात्र भड़क गए और उन्होंने 'रजाकार' शब्द को ही सरकार के खिलाफ अपना हथियार बना लिया, जबकि यह शब्द बांग्लादेशी समाज में बहुत अपमानसूचक था.
कौन थे रजाकार
बांग्लादेश में 'रजाकार' एक अपमानजनक शब्द है, जिससे पीछे बदनामी का एक इतिहास है. सन 1971 में बांग्लादेश का मुक्ति संग्राम हुआ था. उस दौरान पाकिस्तानी सेना तब पूर्वी पाकिस्तान कहलाने वाले बांग्लादेश के लोगों पर भारी अत्याचार कर रही थी. तब पाकिस्तान ने बांग्लादेश में ईस्ट पाकिस्तानी वालेंटियर फोर्स बनाई थी. कट्टरपंथी इस्लामवादियों द्वारा समर्थित पाकिस्तान के सशस्त्र बलों ने स्वतंत्रता संग्राम को दबाने और लोगों को आतंकित करने के लिए तीन मुख्य मिलिशिया बनाए थे- रजाकार, अल-बद्र और अल-शम्स. पाकिस्तान सशस्त्र बलों के समर्थन से इन मिलिशिया समूहों ने बंगाल में नरसंहार किए और बंगालियों के खिलाफ बलात्कार, प्रताड़ना, हत्या जैसी जघन्य वारदातें की थीं. वे पृथक बांग्लादेश के गठन के विरोधी थे. 
नारे में तब्दील कर दिया
शेख हसीना के इस बयान पर आंदोलनकारी छात्र भड़क गए. उन्होंने शेख हसीना की ओर से दिए गए रजाकार के संदर्भ को लेकर ही उन्हें निशाना बनाना शुरू कर दिया. आंदोलनकारी अब नारे लगा रहे हैं -  “तुई के? अमी के? रजाकार, रजाकार... की बोलचे, की बोलचे, सैराचार, सैराचार ( इसका अर्थ है- तुम कौन? मैं कौन? हम रजाकार, रजाकार... कौन कह रहा? तानाशाह, तानाशाह).” यह नारा पाकिस्तान से आजादी की लड़ाई के दौरान बांग्लादेशी स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा इस्तेमाल किए गए एक प्रतिष्ठित नारे से लिया गया है. सन 1968 से 1971 के बीच बंगाली स्वतंत्रता सेनानियों और नेताओं ने पाकिस्तान, उसके सशस्त्र बलों और उसके समर्थकों के खिलाफ इस तरह के कई नारे दिए थे. उनमें से एक जानामाना नारा था “तुमी के अमी के, बंगाली, बंगाली (तुम कौन हो? मैं कौन हूं? बंगाली, बंगाली).” इसका उद्देश्य पाकिस्तान के उत्पीड़न के खिलाफ अपनी बंगाल की पहचान और स्वतंत्रता की मांग के लिए आम नागरिकों को प्रेरित करना था. 
शेख हसीना अड़ी रहीं
खुद के लिए एक बदनामी वाली उपमा 'रजाकार' का उपयोग करके वास्तव में प्रदर्शनकारी छात्र शेख हसीना के बयान पर पलटवार करके खुद को पतित बता रहे हैं. हालांकि वास्तविकता यह भी है कि शेख हसीना ने छात्रों को रजाकार नहीं कहा था बल्कि स्वतंत्रता सेनानियों की तुलना रजाकारों से करके व्यंग्य के जरिए अपनी बात न्यायसंगत साबित करने की कोशिश की थी. जब ढाका की सड़कों पर नारे गूंजने लगे तो शेख हसीना ने एक समारोह में उन पर प्रतिक्रिया दी. उन्होंने कहा कि उन्होंने प्रदर्शनकारियों के लिए ‘रजाकार' शब्द का इस्तेमाल नहीं किया था. उन्होंने कहा, "वे खुद को रजाकार कहलाने में शर्म महसूस नहीं करते...वे नहीं जानते कि पाकिस्तानी कब्जे वाली सेना और रजाकार वाहिनी ने देश में किस तरह से अत्याचार किए थे-उन्होंने अमानवीय अत्याचार और सड़कों पर पड़ी लाशें नहीं देखीं. इसलिए वे खुद को रजाकार कहलाने में शर्म महसूस नहीं कर रहे. हमारा एकमात्र लक्ष्य मुक्ति संग्राम की भावना को स्थापित करना है. सैकड़ों-हजारों शहीदों ने खून बहाया जबकि हमारी लाखों माताओं और बहनों के साथ बलात्कार किया गया. हम उनके योगदान को नहीं भूलेंगे. हमें इसे ध्यान में रखना होगा."
पाकिस्तान का आया नाम
खालिदा जिया की पार्टी सहित कट्टरपंथियों का छात्रों को सहयोग मिलने लगा और दावा तो यहां तक किया जा रहा है कि पाकिस्तान ने भी कट्टरपंथियों के जरिए इस आंदोलन को बढ़ावा दिया. धीरे-धीरे करीब 300 लोगों की इस आंदोलन में मौत हो गई.  इससे सेना ने भी शेख हसीना से हाथ पीछे खींचना शुरू कर दिया और आर्मी चीफ ने आज सुबह बयान दिया कि सेना द्वारा आगे कोई गोलीबारी नहीं की जाएगी." उन्होंने यह भी कहा कि यदि सत्ता का परिवर्तन गैर-लोकतांत्रिक तरीके से हुआ, तो बांग्लादेश, केन्‍या जैसा बन जाएगा. उन्होंने कहा, "ये देश में 1971 के बाद सबसे बड़ा और हिंसक विरोध प्रदर्शन है." इसके बाद छात्र नेताओं ने प्रधानमंत्री हसीना की बातचीत की पेशकश ठुकरा दी. इससे तनाव और बढ़ गया.
इस हालत में भागीं हसीना
रिपोर्ट के मुताबिक, बांग्लादेश (Bangladesh Army) की आर्मी ने शेख हसीना के देश छोड़ने के बाद सरकार की कमान संभाल ली है. आर्मी ने शेख हसीना को जान बचाने की खातिर 45 मिनट के अंदर देश छोड़ने को कहा था. आर्मी चीफ जनरल वकार-उज-जमान ने बताया कि हसीना के देश छोड़ने के बाद अब आर्मी शांति से सरकार चलाएगी. जल्द ही अंतरिम सरकार का गठन किया जाएगा. शेख हसीना बतौर पीएम हिंसा को लेकर भाषण रिकॉर्ड करना चाहती थीं. लेकिन उन्हें ऐसा करने का मौका तक नहीं मिला. रिपोर्ट के मुताबिक, सेना के नोटिस के बाद ही शेख हसीना से राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन को अपना इस्तीफा सौंप दिया. जान बचाने के लिए वो महफूज जगह की तलाश में देश से रवाना हो गईं.
अब ये चलाएंगे देश
एनडीटीवी को सूत्रों के मुताबिक मिली जानकारी के अनुसार, इस अंतरिम सरकार में सलीमुल्‍लाह खान, जस्टिस रिटायर्ड एमए मतीन, प्रोसेफर आसिफ नजरुल, रिटायर्ड जस्टिस मोहम्‍मद अब्‍दुल वहाब मियां, रिटायर जनरल इकबाल करीम, रिटायर मेजर जनरल सैयद इफ्तिखारउद्दीन, डॉ. देबप्रिय भट्टाचार्य, मतिउर्रहमान चौधरी, रिटायर ब्रिगेडियर जनरल एम सखावत हुसैन, डॉ. हुसैन जिलुर्रहमान और रिटायर जस्टिस एमए मतीन शामिल हो सकते हैं. इन सभी लोगों को सेना का करीबी माना जाता है और इनमें से बहुत से लोग शेख हसीना की विरोधी पार्टी से जुड़े हैं. 
हसीना के जाने के बाद सेना प्रमुख ने ये कहा
सेना प्रमुख ने कहा कि उन्होंने सेना और पुलिस दोनों से गोली न चलाने को कहा है. साथ ही उन्‍होंने प्रदर्शनकारियों से संयम बरतने और हिंसा बंद करने का आह्वान किया है. साथ ही जमां ने लोगों के लिए “न्याय” का संकल्प व्यक्त किया. सेना प्रमुख की घोषणा के बाद सैकड़ों लोग सड़कों पर उतर आए और हसीना के निष्कासन का जश्न मनाने लगे. बांग्लादेश में प्रदर्शनकारी इतने उग्र हो चुके हैं कि उन्होंने बांग्लादेश के राष्ट्रपिता कहे जाने वाले शेख मुजीबुर्रहमान की मूर्ति पर चढ़कर हथौड़े चलाए. शेख हसीना के इस्तीफे के बाद प्रदर्शनकारियों ने ढाका के पॉश इलाके धानमंडी में देश के गृह मंत्री असदुज्जमां खान कमाल के आवास में तोड़फोड़ की और उसे आग के हवाले कर दिया.