जवाहर लाल यूनिवर्सिटी का मसला फिर से लौट आया है. 9 फरवरी 2016 को कथित रूप से देशदोह की घटना पर जांच एजेंसियों की इससे अधिक गंभीरता क्या हो सकती है कि तीन साल में उन्होंने चार्जशीट फाइल कर दी. वरना लगा था कि हफ्तों तक इस मुद्दे के ज़रिए चैनलों को राशन पानी उपलब्ध कराने के बाद इससे गोदी मीडिया की दिलचस्पी चली गई है. उस दौरान टीवी ने क्या क्या गुल खिलाए थे, अब आपको याद भी नहीं होंगे. आपको क्या, हममें से शायद ही किसी को याद होंगे. लेकिन अब जब पुलिस ने कन्हैया, उमर ख़ालिद, अनिर्बान के ख़िलाफ़ चार्जशीट पेश कर दी है तो उम्मीद है कि मीडिया 1200 पन्नों की चार्जशीट को पढ़ने का कष्ट उठाएगा. हमने चार्जशीट नहीं पढ़ी है. हमें पूरी जानकारी नहीं है कि पुलिस ने अपने आरोपों के संदर्भ में क्या सबूत होने की दलील दी है. पुलिस ने जो कोर्ट में कहा है, सूत्रों ने जो कहा है उसी के आधार पर सब कुछ है.