'गली बॉय' (Gully Boy) कहानी है मुराद की, जो धारावि के छोटे से घर में पला बड़ा है, उसके साथ रहते हैं उसके मां-बाप, दादी और भाई. गरीबी और तंगी में रह रहे मुराद के सपने बड़े हैं पर उनके सामने खड़े हैं उसके हालत, उसके पिता, समाज और उसकी सोच की एक नौकर का बेटा सिर्फ नौकर हो सकता है और कैसे सोच की इन बेड़ियों को पिघलाकर अपने अंदर की आग को अपने रैप में डालकर और समाज की इस सोच को जलाकर बन जाता है रैप स्टार, यही कहानी है गली बॉय की. रैप का मतलब शायद बहुत से दर्शकों को समझ ना आए इसलिए में बता दूं कि किसी भी सोच या कविता को जो बेसिक रिधम के साथ परफॉर्म किया जाता है उससे रैप कहते हैं, अक्सर लोग नारों को प्रोटेस्ट करने के लिए इस्तेमाल किया करते थे और धीरे-धीरे जब इसमें रिधम और बीट्स का इस्तेमाल आया तो इसने रैप की शक्ल ले ली और समाज के आगे प्रोटेस्ट करने के लिए गली बॉय में निर्देशक ज़ोया अख़्तर ने इसी रैप को हथियार बनाकर वार किया है.
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ये कहानी सिर्फ़ एक लड़के के रैप स्टार बनने की नहीं बल्कि एक रूढ़िवादी सोच को झकझोरने की है लेकिन बड़े ही सहज तरीक़े से।दीवार का विजय अगर हाथों की ताक़त का इस्तेमाल करता है अपने ग़ुस्से को ठंडा करने के लिए तो गली बॉय का मुराद इस्तेमाल करता है शब्दों की ताक़त का.
खामियां
कुछ लोगों को ये फ़िल्म धीमी गति की लग सकती है और इसकी वजह ये भी है क्योंकि ये फ़िल्म थोड़ी लम्बी है. एक चीज़ मुझे और लगी और वो ये की मुराद के किरदार के अंदर की आग की तपिश मुझे थोड़ी कम लगी, वो सिर्फ़ उसके रैप करते वक़्त नज़र आती थी या एक दो सीन में नज़र आयी मसलन जब उसे एक क्लब के सामने से जाने को कहा जाता है. तो ये थी खामियां.
देखें ट्रेलर-
खूबियां
फ़िल्म की कहानी, स्क्रिप्ट, डायलॉग्ज़ कमाल के हैं, स्क्रीन्प्ले भी अच्छा है बस थोड़ा फ़िल्म को छोटा करने की ज़रूरत थी. फिल्म का ambience यानी वो दुनिया जो ज़ोया ने कैमरे के सामने रची है वास्तविक और अदरकर लगती है और इसमें चार चांद लगाए है जय ओज़ा की सिनमटॉग्रफ़ी ने. सभी रैपरज़ ने फ़िल्म को ऑथेंटिक बनाने में मदद की है और एक पूरा माहौल तैयार कर देते हैं ये लोग. रणवीर सिंह एक बहुत ही एनर्जेटिक एक्टर हैं और किसी भी निर्देशक या ख़ुद उनके लिए अपनी ऊर्जा को रोकना बड़ा काम है लेकिन यहां ज़ोया और रणवीर दोनो ही तारीफ़ के हक़दार हैं जिन्होंने उनकी ऊर्जा को थाम के एक सहज किरदार को जन्म दिया, हालांकि रणवीर ये काम फ़िल्म लूटेरा में भी कर चुके हैं पर उनकी सादगी, सहजता और ईमानदारी इस किरदार को सशक्त करती है.
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एक और किरदार, एमसी शेर यानी सिद्धांत चतुर्वेदी, बेहतरीन काम किया है उन्होंने, उनकी जितनी तारीफ़ की जाए कम है, इस फ़िल्म में वो रणवीर के बराबर के किरदार हैं. वहीं आलिया भट्ट बेजोड़ अभिनय करके अपनी छाप छोड़तीं हैं, विजय वर्मा, विजय राज और अमृता सुभाष का भी दमदार और असरदर अभिनय है. आज़ादी और अपना टाइम आएगा जैसे रैप आपको झकझोरते हैं।तो मैं कहूँगा की ज़ोया का बेहतरीन निर्देशन, आप जाइए और फ़िल्म देखिए मेरी और से इसे 3.5 स्टार्स.
कास्ट एंड क्रू
रणवीर सिंह,आलिया भट्ट, कल्कि कोची, सिद्धांत चतुर्वेदी, विजय राज़, विजय वर्मा, विजय मौर्य, अमृता सुभाष और नकुल सहदेव. फ़िल्म का स्क्रीन्प्ले लिखा है रीमा कागती और ज़ोया अख़्तर ने, डाइयलॉग्ज़ हैं विजय मौर्य के और सिनमटॉग्रफ़ी है जय ओज़ा की. अब बारी निर्देशक की तो इस फ़िल्म की निर्देशक हैं ज़ोया अख़्तर. फ़िल्म में रणवीर सिंह के लिए शायरी लिखी है लेजेंडेरी लेखक जावेद अख़्तर ने और इसके एक प्रडूसर हैं इक्सेल एंटर्टेन्मेंट यानी फरहान अख़्तर और रितेश सिधवानी की कम्पनी.
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