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उषा सिलाई की महिलाएं अब चेंज मेकर्स की भूमिका निभा रही हैं

Updated: 24 नवंबर, 2021 12:33 PM

उषा सिलाई स्कूल की महिलाएं अंततः परिवर्तन उत्प्रेरक के रूप में उभर रही हैं. ये बदलाव लाने और प्रचलित सामाजिक मुद्दों के खिलाफ कार्य करने की इच्छुक हैं.

उषा सिलाई की महिलाएं अब चेंज मेकर्स की भूमिका निभा रही हैं

उत्तर प्रदेश (यूपी) के सोनभद्र जिले के मुंगा दिह गांव की गोंड जनजाति की सदस्य गुड़िया देवी उषा सिलाई की शिक्षिका बनने के बाद अपने ग्राम (गाँव) की प्रधान बनीं और अब अपने कार्यालय के माध्यम से गाँव के विकास को प्रभावित कर रही हैं.

उषा सिलाई की महिलाएं अब चेंज मेकर्स की भूमिका निभा रही हैं

अक्टूबर 2020 में अपने गांव में सिलाई स्कूल शुरू करने वाली देवी को बचपन से ही आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा. उन्होंने छोटी उम्र में एक छोटे किसान हरि से शादी कर ली.

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उन्होंने अक्टूबर 2020 में अपने गांव में स्थापित स्कूल में नौ दिवसीय आवासीय प्रशिक्षण में भाग लिया जहाँ उसने फैशन, सिलाई मशीन की स्थापना, मरम्मत और रखरखाव के बारे में सीखा और 2 दिन का जीवन कौशल प्रशिक्षण भी प्राप्त किया. प्रशिक्षण पाठों के साथ, उन्हें एक सिलाई मशीन, एक साइनेज बोर्ड, एक पाठ्यक्रम पुस्तक, एक सेवा नियमावली और एक शिक्षक प्रमाणपत्र भी प्राप्त हुआ. यह उनके लिए एक नई शुरुआत की ओर एक कदम था. उन्होंने अपना खुद का सिलाई स्कूल खोला और अन्य महिलाओं को प्रशिक्षण देना शुरू किया.

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देवी अब 7 महिलाओं को सिलाई सीखा रही हैं और उनसे वह इनके 200 रुपये महीना लेती हैं. इतना ही नहीं वे एडमिशन फीस 50 रुपये भी लेती हैं. खास बात है कि वह अब इस काम की वजह से 5000 रुपये महीना कमा रही हैं.

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उषा सिलाई स्कूल में प्राप्त प्रोत्साहन और प्रशिक्षण के कारण देवी की अब ग्राम प्रधान, प्रशिक्षक, प्रेरक और परामर्शदाता के रूप में अपनी पहचान है. ग्राम पंचायत प्रमुख के रूप में देवी ने अपने क्षेत्र के लोगों को आश्वासन दिया है कि वह गांव में उच्च शिक्षा, पानी और स्वास्थ्य की सुविधाएं दिलाने के लिए अंत तक संघर्ष करेंगी.

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वहीं झारखंड के चिरकुबेरा गाँव की पॉलिना तुती को नक्सलवाद से सबसे बुरी तरह प्रभावित क्षेत्र में अपना जीवन बनाने के लिए संघर्ष करना पड़ा.

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तुती अपने बचपन को एक कठिन समय के रूप में याद करती हैं, क्योंकि उन्होंने अपने पिता के सभी पांच बच्चों को खिलाने के संघर्ष को देखा था. तमाम मुश्किलों के बावजूद उसने इंटर तक की पढ़ाई की. वह दो बच्चों की मां हैं.

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उषा सिलाई स्कूल में प्राप्त प्रशिक्षण और सिलाई मशीन ने उन्हें सिलाई मशीन प्रदान की, जिसने तुती के जीवन में सभी बदलाव लाए. उनके अनुसार, सबसे बड़ा अंतर स्वतंत्रता का स्तर है जो प्रशिक्षण ने उनके जीवन में लाया है, खासकर जब घरेलू खर्चों की बात आती है.

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खुद के संघर्षों पर काबू पाने के बाद तुती अब परिवर्तन की आवाज बन गई हैं. वन और भूमि अधिकारों और पर्यावरण के संरक्षण के लिए लोगों को लामबंद करके अपने समुदाय की बेहतरी में योगदान दे रही हैं.

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