कार्यस्थलों पर सेकेंड हैंड स्मोक के मामले बढ़े
नई दिल्ली:
घरों व सार्वजनिक स्थलों पर सिगरेट व बीड़ी का धुआं दूसरों को पिलाने यानी सेकेंड हेंड स्मोक के मामले में जहां पिछले कुछ साल के दौरान कमी आई है वहीं कार्यस्थलों पर इसके मामलों में बढ़ोतरी हुई है. कार्यस्थलों पर जहां करीब एक दशक पहले 29.9 फीसदी लोग दूसरों के धूम्रपान से प्रभावित होते थे वहां अब 30.2 फीसदी हो रहे हैं. ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे (जीएटीएस), इंडिया-2017 के अनुसार, वर्ष 2009-2010 से लेकर अब तक सेकंडहैंड स्मोक (एसएचएस) यानी धूम्रपान कर दूसरों को धुआं पिलाने के मामले सार्वजनिक स्थानों पर 29 फीसदी से घटकर 23 फीसदी रह गए हैं और घरों में ऐसे मामले 52 फीसदी से घटकर 39 फीसदी दर्ज हो गए हैं, जबकि कार्यस्थलों पर इसमें वृद्धि हुई है.
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रिपोर्ट में बताया गया है कि कार्यस्थलों पर जहां करीब एक दशक पहले 29.9 फीसदी लोग दूसरों के धूम्रपान से प्रभावित होते थे वहां अब 30.2 फीसदी हो रहे हैं.
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इस सर्वेक्षण में बताया गया है कि मीडिया के माध्यम से चलाए जा रहे प्रचार अभियान तंबाकू नियंत्रण नीतियां बनाने और लोगों को धूम्रपान बंद करना सबसे कारगर रहे हैं.
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टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल के प्रोफेसर व सर्जन डॉ. पंकज चतुर्वेदी ने कहा, "सेकेंड हैंड स्मोक से हृदय प्रभावित होता है और इससे धूम्रपान नहीं करने वालों में धूम्रपान से संबंधित रोग का खतरा पैदा होता है. कार्यस्थलों, सार्वजनिक व अन्य जगहों को धूम्रपान रहित अर्थात धूम्रपान निषेध क्षेत्र बनाने की नीतियों को प्रभावकारी तरीके से लागू करना कारगर उपाय होगा और इससे धूम्रपान नहीं करने वालों को बचाया जा सकता है."
ग्लोबल पॉलिसी एंड रिसर्च के वाइस प्रेसिडेंट डॉ. नंदिता मुरुकुटला ने कहा, "सेकंड हैंड स्मोक के खतरे का कोई सुरक्षित स्तर नहीं है. हमें उम्मीद है कि सेकंड हैंड स्मोक के खतरों को लेकर लोगों की जानकारी बढ़ाने और उनके धूम्रपान करने वालों के व्यवहार में बदलाव लाने में प्रचार अभियान ज्यादा कारगर साबित होगा." (इनपुट - आईएएनएस)
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इस सर्वेक्षण में बताया गया है कि मीडिया के माध्यम से चलाए जा रहे प्रचार अभियान तंबाकू नियंत्रण नीतियां बनाने और लोगों को धूम्रपान बंद करना सबसे कारगर रहे हैं.
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टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल के प्रोफेसर व सर्जन डॉ. पंकज चतुर्वेदी ने कहा, "सेकेंड हैंड स्मोक से हृदय प्रभावित होता है और इससे धूम्रपान नहीं करने वालों में धूम्रपान से संबंधित रोग का खतरा पैदा होता है. कार्यस्थलों, सार्वजनिक व अन्य जगहों को धूम्रपान रहित अर्थात धूम्रपान निषेध क्षेत्र बनाने की नीतियों को प्रभावकारी तरीके से लागू करना कारगर उपाय होगा और इससे धूम्रपान नहीं करने वालों को बचाया जा सकता है."
ग्लोबल पॉलिसी एंड रिसर्च के वाइस प्रेसिडेंट डॉ. नंदिता मुरुकुटला ने कहा, "सेकंड हैंड स्मोक के खतरे का कोई सुरक्षित स्तर नहीं है. हमें उम्मीद है कि सेकंड हैंड स्मोक के खतरों को लेकर लोगों की जानकारी बढ़ाने और उनके धूम्रपान करने वालों के व्यवहार में बदलाव लाने में प्रचार अभियान ज्यादा कारगर साबित होगा." (इनपुट - आईएएनएस)
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