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This Article is From Sep 23, 2019

घर-घर जाकर बुजुर्गों का पता लगा रही है नई दिल्‍ली पुलिस, जानिए क्‍यों

यह अजब-गजब पुलिस बुजुर्गों की तलाश में घर-घर और गली-गली भटक रही है. सच भी आखिर सच होता है. उसे कुछ समय के लिए छिपाया जा सकता है, तमाम उम्र के लिए कतई नहीं.

घर-घर जाकर बुजुर्गों का पता लगा रही है नई दिल्‍ली पुलिस, जानिए क्‍यों
नई दिल्ली जिला पुलिस घर-घर और गली-गली में जाकर 'बुजुर्ग-मेला' लगा रही है
नई दिल्‍ली:

आज की भाग-दौड़ भरी जिंदगी में तमाम अपनों को, आलीशान बंगलों या फिर गरीबखानों में गुमसुम से बैठे बुजुर्गों के साथ बैठकर दो मीठी बातें करने का वक्त भले न हो, मगर हिन्‍दुस्‍तान में एक ऐसा भी राज्य है, जहां के एक जिले की पुलिस भीड़ से हटकर जो कर रही है, वह है तो काबिल-ए-तारीफ, मगर पहली नजर में विश्वास कर पाना कठिन हो जाता है. यह भी उसी पुलिस के बीच की पुलिस है, जो हमेशा पब्लिक के निशाने पर रहती है. यह अजब-गजब पुलिस बुजुर्गों की तलाश में घर-घर और गली-गली भटक रही है. सच भी आखिर सच होता है. उसे कुछ समय के लिए छिपाया जा सकता है, तमाम उम्र के लिए कतई नहीं.

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यह नेक काम करने उतरी है राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली जिले की वह पुलिस, जहां से आज तक चलती आई है हिन्‍दुस्‍तानी हुकूमत. मतलब इसी नई दिल्ली जिले में है भारत की संसद. प्रधानमंत्री का कार्यालय और निवास, अधिकांश मंत्रालय और मंत्रियों के आवास. राष्ट्रपति भवन और इंडिया गेट.

नई दिल्ली जिले की पुलिस को सांस लेने तक की फुर्सत नहीं मिलती है. हर वक्त खाकी के ऊपर खतरे की तलवार लटकी रहती है. न मालूम कब क्या आफत सिर पर आ पड़े. इतना ही नहीं, दुनिया भर के देशों के दूतावासों में से अधिकांश की सुरक्षा का जिम्मा भी नई दिल्ली जिले की पुलिस के कंधों पर ही है.

इन तमाम जिम्मेदारियों के बोझ से दबे होने के बावजूद नई दिल्ली जिला पुलिस ने एक अनूठा अभियान चला रखा है. घर-घर और गली-गली में जाकर 'बुजुर्ग-मेला' लगाने का. इस अनोखे मगर दिलचस्प अभियान के तहत हर थाने का पुलिसकर्मी अपने इलाके के गली-मुहल्ले में स्थित घर-घर जाएगा. डंडा हिलाते हुए नहीं, बल्कि जेब में कलम और हाथ में रजिस्टर लेकर.

घर-घर और गली गली भटक रहे पुलिस वालों की जिम्मेदारी है कि उनके इलाके में एक भी बुजुर्ग ऐसा न रहे, जिसकी पूरी जानकारी नई दिल्ली जिले की पुलिस के पास मौजूद न हो. पुलिस वाले इन बड़े-बूढ़ों से जाकर पूछ कर बाकायदा उनका रिकॉर्ड दर्ज कर रहे हैं.

पुलिस वालों के बुजुर्गो से सवाल होते हैं, परिवार में कौन कौन है? वरिष्ठ नागरिक की उम्र क्या है? परिवार में देखभाल करने वाला मुख्य रूप से कौन है? परिवार वाले देखभाल ठीक तरह से कर रहे हैं या नहीं? घर के बाकी सदस्यों के साथ जिंदगी बसर करने में बुजुर्ग को किसी तरह की कोई असहजता तो महसूस नहीं हो रही है आदि-आदि.

रोजाना थाने चौकी कानून-बंदोबस्त, सुरक्षा इंतजामों जैसी तमाम जिम्मेदारियों में फंसे रहने के बाद भी यह अनूठी पहल शुरू करने का विचार कैसे आया? पूछने पर डॉक्टर का पेशा छोड़कर, भारतीय पुलिस सेवा में आए नई दिल्ली जिला पुलिस उपायुक्त डॉ. ईश सिंघल ने बताया, "कानून-सुरक्षा की जिम्मेदारी निभाने के साथ ही पुलिस का एक मानवीय चेहरा भी तो है. वर्दी में हैं इसलिए 'जनसेवा' पुलिस की प्राथमिक जिम्मेदारी भी तो है. खुद से ज्यादा और पहले, पुलिस को आम इंसान के सुख-दुख का ध्यान रखना चाहिए. जनता खुद ही आपके (पुलिस) साथ आकर खड़ी हो जाएगी."

डीसीपी ईश सिंघल ने बताया, "अगर इरादा नेक है और आप कुछ ठान लेते हैं तो, फिर कोई बाधा आपको रोक नहीं सकती है. परेशानी किसी जिम्मेदारी को निभाने की शुरुआत करने से पहले तक दिखाई देती है. जब आप ईमानदारी से कुछ शुरू कर देते हैं तो सब समस्याएं पीछे और हर समाधान आपको खुद ब खुद ही सामने खड़ा दिखाई देने लगता है. घर-घर पुलिस स्टाफ को भेज कर. बुजुर्गों के करीब पहुंच कर उनके साथ बैठकर. उन्हें दो लम्हे का सुकून दे पाने का इससे बेहतर रास्ता और शायद कोई नहीं हो सकता था."

पुलिस उपायुक्त डॉ. सिंघल ने कहा, "इसमें सिर्फ मैं नहीं, बल्कि नई दिल्ली जिले के सिपाही से लेकर हर अफसर तक उतरा हुआ है, उतरना भी चाहिए. यह पुलिस का कर्तव्य तो है ही. इसमें सेवा भी है. बुजुर्ग और बालक सबके होते हैं. जो उनके साथ प्यार से पेश आएगा, वे उसी के हो जाएंगे. बस एक बार ईमानदारी से सोचना भर है इस नजरिए से."

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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Delhi Police, Senior Citizens, दिल्‍ली पुलिस
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