मधुमेह नाशक, कैंसर में लाभकारी होती है 'जईया मिर्ची'
नई दिल्ली:
डायबिटीज से बहुत लोग परेशान हैं. खून में शुगर की मात्रा ज़्यादा होने के कारण बार-बार पेशाब आना, भूख लगना और ज्यादा प्यास लगने से काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. इससे ना सिर्फ मोटापा बढ़ता है बल्कि दिल और किडनी संबंधी बीमारियां होने का भी खतरा बना रहता है. लेकिन अब डायबिटीज के मरीज़ों को परेशान होने की ज़रूरत नहीं, क्योंकि अब एक ऐसी मिर्ची की खोज हुई है जो डायबिटीज़ के साथ-साथ कैंसर से भी लड़ने में सहायता करेगी.
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छत्तीसगढ़ के वाड्रफनगर के रहने वाले एक छात्र ने ऐसी मिर्ची की खोज की है, जो मधुमेह और कैंसर दोनों के मरीजों के लिए लाभकारी है. रायपुर के शासकीय नागार्जुन विज्ञान महाविद्यालय में एमएससी अंतिम वर्ष (बायोटेक्नोलॉजी) के छात्र रामलाल लहरे ने इस मिर्ची को खोजा है.
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लहरे सरगुजा के वाड्रफनगर में इस मिर्ची की खेती कर रहे हैं. इस मिर्ची की एक खासियत यह भी है कि यह ठंडे क्षेत्र में पैदा होती है और कई सालों तक इसकी पैदावार होती है.
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छत्तीसगढ़ के जिला बलरामपुर कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. के.आर. साहू ने छात्र लहरे को शोध में तकनीकी सहयोग और मार्गदर्शन देने का आश्वासन दिया है. इसके लिए शासकीय विज्ञान महाविद्यालय से प्रस्तावित कार्ययोजना बनाकर विभागाध्यक्ष से मंजूरी लेनी होगी.
लहरे ने एक साक्षात्कार में कहा कि पहाड़ी इलाकों में पाई जाने वाली तीखी मिर्ची को सरगुजा क्षेत्र में जईया मिर्ची के नाम से जाना जाता है. रामलाल लहरे इन दिनों जईया मिर्ची पर शोध कर रहे हैं.
उन्होंने कहा कि इस मिर्ची में प्रचुर मात्रा में कैप्सेसीन नामक एल्कॉइड यौगिक पाया जाता है जो शुगर लेवल को कम करने में सहायक हो सकता है. इस मिर्ची का गुण एंटी बैक्टेरियल और कैंसर के प्रति लाभकारी होने की भी संभावना है. इसमें विटामिन ए,बी और सी भी पाई जाती है. इसके सभी स्वास्थ्यवर्धक गुणों को लेकर रिसर्च किया जा रहा है.
लहरे ने कहा कि इस मिर्ची के पौधे की उंचाई दो से तीन मीटर होती है साथ ही इसके स्वाद में सामान्य से ज्यादा तीखापन होता है. इसका रंग हल्का पीला होता है और आकार 1.5 से 2 सेमी तक होता है. इसके फल ऊपरी दिशा में साल भर लगते रहते हैं.
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चिल्लि एस एस फूड स्पाइस एंड मेडिसिन पर्सपेक्टिव, सुरेश दादा जैन इंस्टिट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, जामनेर जिला जलगांव महाराष्ट्र के वर्ष 2011 में हुए एक रिसर्च में कहा है कि मिर्ची में प्रचुर मात्रा में कैप्सेसीन नामक एल्कॉइड यौगिक पाया जाता है, जिसके कारण मिर्ची तीखी होती है. यह तत्व शुगर लेवल को कम करने में सहायक हो सकती है, लेकिन इस मिर्ची में ये अधिक मात्रा में पाया जाता है इसलिए इस मिर्ची का गुण एंटी बैक्टेरियल और कैंसर के प्रति लाभकारी होने की भी संभावना है. इसमें विटामिन ए,बी और सी भी पाई जाती है. इसके सभी स्वास्थ्यवर्धक गुणों को लेकर रिसर्च किया जा रहा है.
रायपुर के शासकीय नागार्जुन विज्ञान महाविद्यालय के बायोटेक्रोलॉजी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. संजना भगत ने कहा कि उपरोक्त रिसर्च पेपर के आधार पर यह दावा किया जा सकता है, लेकिन जब तक मिर्ची पर रिसर्च नहीं पूरा होगा कैंसर के प्रति लाभकारी होने का दावा नहीं किया जा सकता. अभी मिर्ची पर रिसर्च जारी है.
लहरे ने कहा कि इस मिर्ची के तीखेपन को चखकर ही जाना जा सकता है. यह स्थान और जलवायु के आधार पर सामान्य मिर्ची से अलग है. सामान्यत: ठंडे जलवायु में जैसे- छत्तीसगढ़ के सरगुजा, बस्तर, मैनपाट, बलरामपुर और प्रतापपुर आदि ठंडे क्षेत्रों में इसकी पैदावार होती है. इसके पैदावार के लिए प्राकृतिक वातावरण शुष्क और ठंडे प्रदेश में उत्पादन होगा.
कृषि विश्वविद्यालय केन्द्र अंबिकापुर के प्रोफेसर डॉ. रविन्द्र तिग्गा ने कहा कि यह मिर्ची दुर्लभ नहीं प्राकृतिक कारणों से विलुप्त हो रही है. इसे कई क्षेत्रों में धन मिर्ची के नाम से भी जाना जाता है. इस मिर्ची में सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है, मानसून की वर्षा पर्याप्त रहती है. केवल नमी में यह पौधा सालों जीवित रहते हैं, और फलते रहता है.
तिग्गा ने कहा कि यह मिर्ची दुर्लभ नहीं थी, पहले गौरैया-चिरैया बहुतायत में रहती थी और वे मिर्ची चुनकर खाती और मिर्ची लेकर उड़ जाती थीं. जहां-जहां चिड़िया उड़ती थी, वहां-वहां मिर्ची के बीज फैल जाते थे और मिर्ची के पेड़ उग जाते थे.
अब गौरैया-चिरैया लुप्त होने की कागार पर है और गांव, कस्बों व शहरों में तब्दील हो रहे हैं, जिसके कारण यह मिर्ची कम पैदा हो रही है. पहले पहाड़ी इलाकों में घरों घर धन मिर्ची (जईया मिर्ची) के पौधे होते थे. इसे व्यावसायिक रूप से भी पैदा किया जा सकता है.
INPUT - IANS
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लहरे सरगुजा के वाड्रफनगर में इस मिर्ची की खेती कर रहे हैं. इस मिर्ची की एक खासियत यह भी है कि यह ठंडे क्षेत्र में पैदा होती है और कई सालों तक इसकी पैदावार होती है.
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छत्तीसगढ़ के जिला बलरामपुर कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. के.आर. साहू ने छात्र लहरे को शोध में तकनीकी सहयोग और मार्गदर्शन देने का आश्वासन दिया है. इसके लिए शासकीय विज्ञान महाविद्यालय से प्रस्तावित कार्ययोजना बनाकर विभागाध्यक्ष से मंजूरी लेनी होगी.
लहरे ने एक साक्षात्कार में कहा कि पहाड़ी इलाकों में पाई जाने वाली तीखी मिर्ची को सरगुजा क्षेत्र में जईया मिर्ची के नाम से जाना जाता है. रामलाल लहरे इन दिनों जईया मिर्ची पर शोध कर रहे हैं.
उन्होंने कहा कि इस मिर्ची में प्रचुर मात्रा में कैप्सेसीन नामक एल्कॉइड यौगिक पाया जाता है जो शुगर लेवल को कम करने में सहायक हो सकता है. इस मिर्ची का गुण एंटी बैक्टेरियल और कैंसर के प्रति लाभकारी होने की भी संभावना है. इसमें विटामिन ए,बी और सी भी पाई जाती है. इसके सभी स्वास्थ्यवर्धक गुणों को लेकर रिसर्च किया जा रहा है.
लहरे ने कहा कि इस मिर्ची के पौधे की उंचाई दो से तीन मीटर होती है साथ ही इसके स्वाद में सामान्य से ज्यादा तीखापन होता है. इसका रंग हल्का पीला होता है और आकार 1.5 से 2 सेमी तक होता है. इसके फल ऊपरी दिशा में साल भर लगते रहते हैं.
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चिल्लि एस एस फूड स्पाइस एंड मेडिसिन पर्सपेक्टिव, सुरेश दादा जैन इंस्टिट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, जामनेर जिला जलगांव महाराष्ट्र के वर्ष 2011 में हुए एक रिसर्च में कहा है कि मिर्ची में प्रचुर मात्रा में कैप्सेसीन नामक एल्कॉइड यौगिक पाया जाता है, जिसके कारण मिर्ची तीखी होती है. यह तत्व शुगर लेवल को कम करने में सहायक हो सकती है, लेकिन इस मिर्ची में ये अधिक मात्रा में पाया जाता है इसलिए इस मिर्ची का गुण एंटी बैक्टेरियल और कैंसर के प्रति लाभकारी होने की भी संभावना है. इसमें विटामिन ए,बी और सी भी पाई जाती है. इसके सभी स्वास्थ्यवर्धक गुणों को लेकर रिसर्च किया जा रहा है.
रायपुर के शासकीय नागार्जुन विज्ञान महाविद्यालय के बायोटेक्रोलॉजी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. संजना भगत ने कहा कि उपरोक्त रिसर्च पेपर के आधार पर यह दावा किया जा सकता है, लेकिन जब तक मिर्ची पर रिसर्च नहीं पूरा होगा कैंसर के प्रति लाभकारी होने का दावा नहीं किया जा सकता. अभी मिर्ची पर रिसर्च जारी है.
लहरे ने कहा कि इस मिर्ची के तीखेपन को चखकर ही जाना जा सकता है. यह स्थान और जलवायु के आधार पर सामान्य मिर्ची से अलग है. सामान्यत: ठंडे जलवायु में जैसे- छत्तीसगढ़ के सरगुजा, बस्तर, मैनपाट, बलरामपुर और प्रतापपुर आदि ठंडे क्षेत्रों में इसकी पैदावार होती है. इसके पैदावार के लिए प्राकृतिक वातावरण शुष्क और ठंडे प्रदेश में उत्पादन होगा.
कृषि विश्वविद्यालय केन्द्र अंबिकापुर के प्रोफेसर डॉ. रविन्द्र तिग्गा ने कहा कि यह मिर्ची दुर्लभ नहीं प्राकृतिक कारणों से विलुप्त हो रही है. इसे कई क्षेत्रों में धन मिर्ची के नाम से भी जाना जाता है. इस मिर्ची में सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है, मानसून की वर्षा पर्याप्त रहती है. केवल नमी में यह पौधा सालों जीवित रहते हैं, और फलते रहता है.
तिग्गा ने कहा कि यह मिर्ची दुर्लभ नहीं थी, पहले गौरैया-चिरैया बहुतायत में रहती थी और वे मिर्ची चुनकर खाती और मिर्ची लेकर उड़ जाती थीं. जहां-जहां चिड़िया उड़ती थी, वहां-वहां मिर्ची के बीज फैल जाते थे और मिर्ची के पेड़ उग जाते थे.
अब गौरैया-चिरैया लुप्त होने की कागार पर है और गांव, कस्बों व शहरों में तब्दील हो रहे हैं, जिसके कारण यह मिर्ची कम पैदा हो रही है. पहले पहाड़ी इलाकों में घरों घर धन मिर्ची (जईया मिर्ची) के पौधे होते थे. इसे व्यावसायिक रूप से भी पैदा किया जा सकता है.
INPUT - IANS
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