सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड के आदेश पर अदालतों में दिखने वाली 'न्याय की देवी' की मूर्ति में अहम बदलाव किए गए हैं. मूर्ति की आंखों पर पहले पट्टी बंधी रहती थी, लेकिन अब इसे खोल दिया गया है. नई मूर्ति बनाने वाले शिल्पकार विनोद गोस्वामी ने एनडीटीवी से खास बातचीत की. उन्होंने बताया कि तीन महीने की कड़ी मेहनत के बाद इस प्रतिमा को बनाया गया है.
विनोद गोस्वामी ने कहा कि मैं बहुत खुश हूं कि मुझे इस प्रतिमा को बनाने का अवसर मिला. सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ के दिशा-निर्देश और मार्गदर्शन में इस काम को पूरा किया गया. ये हमारे देश के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है.
उन्होंने बताया कि सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ को मैंने वो प्रतिमा दिखाई तो उन्होंने अप्रूव कर दिया, फिर हमने बड़ी प्रतिमा बनाई. ये प्रतिमा साढ़े छह फीट की है. प्रतिमा का वजन सवा सौ किलो है. गाउन की जगह प्रतिमा को साड़ी का लिबास पहनाया गया है. प्रतिमा का निर्माण फाइबर ग्लास द्वारा किया गया है.
विनोद गोस्वामी ने कहा कि हमें बताया गया था कि नई प्रतिमा में ना तो पट्टी बंधी होनी चाहिए और ना ही हाथों में तलवार होनी चाहिए. उसी के आधार पर हमने एक हाथ में तराजू और दूसरे हाथ में संविधान रखा है. साथ ही गाउन की जगह भारतीय नारी की पहचान लिबास साड़ी रखी है. लगभग 70-75 साल बाद इसे बनाना मेरे लिए सौभाग्य की बात है.
नई प्रतिमा के जरिए संभवत: आम लोगों के बीच ये संदेश देने की कोशिश की गई है कि कानून अंधा नहीं है. आमतौर पर पहले लोग इसी मूर्ति का हवाला देकर कहा करते थे कि कानून अंधा होता है. हालांकि पहले इस बंधी पट्टी का संदेश ये था कि न्यायिक प्रक्रिया के दौरान अदालत मुंह देखकर फैसला नहीं सुनाती है, बल्कि हर व्यक्ति के लिए समान न्याय होता है.
मुख्य न्यायाधीश न्यायिक प्रक्रिया में अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही परिपाटी को बदलकर उसमें भारतीयता का रंग घोलने की पहल में जुटे हुए हैं. इसी को ध्यान में रखते हुए ये कदम उठाया गया है. न्याय की मूर्ति में किए गए इन बदलावों के जरिए वो संविधान में समाहित समानता के अधिकार को जमीनी स्तर पर लागू करना चाहते हैं. इन बदलावों का चौतरफा स्वागत किया जा रहा है.