चुनाव प्रचार में प्लास्टिक बैन करने पर कब लाएंगे नियम? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा

ASG ने कोर्ट को बताया कि ये ड्राफ्ट सार्वजनिक किया गया है और इस संबंध में एडवायजरी भी जारी की गई है लेकिन याचिकाकर्ता का कहना था कि एडवायजरी काफी नहीं है. याचिकाकर्ता ने कहा कि प्लास्टिक बैन को चुनाव आचार संहिता में शामिल किया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट 8 हफ्ते  बाद मामले की फिर सुनवाई करेगा.

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ASG ने कोर्ट को बताया कि ये ड्राफ्ट सार्वजनिक किया गया है.
नई दिल्ली:

चुनाव प्रचार में प्लास्टिक के इस्तेमाल के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उम्मीद है कि केंद्र सरकार जल्द ही चुनाव प्रचार में प्लास्टिक को बैन के लिए नियम लेकर आएगी. वहीं केंद्र की ओर से पेश एडिशमल सॉलिसिटर जनरल (ASG) ऐश्वर्या भाटी ने अदालत को बताया है कि वन एवं पर्यावरण मंत्रालय (MoEF) ने मार्च 2021 में ड्राफ्ट अधिसूचना तैयार की है, जिसके मुताबिक 100 माइक्रोन से कम वाले पीवीसी सहित प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाया जाएगा. 

ASG ने कोर्ट को बताया कि ये ड्राफ्ट सार्वजनिक किया गया है और इस संबंध में एडवायजरी भी जारी की गई है लेकिन याचिकाकर्ता का कहना था कि एडवायजरी काफी नहीं है. याचिकाकर्ता ने कहा कि प्लास्टिक बैन को चुनाव आचार संहिता में शामिल किया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट 8 हफ्ते  बाद मामले की फिर सुनवाई करेगा. 

सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2020 में चुनाव के दौरान प्लास्टिक, विशेष रूप से बैनर और होर्डिंग्स के उपयोग के खिलाफ याचिका पर केंद्र और भारत के चुनाव आयोग से जवाब मांगा था. जस्टिस एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने पर्यावरण और वन मंत्रालय और चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर चार हफ्तों में उनकी प्रतिक्रिया मांगी थी.  

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शीर्ष अदालत नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश के खिलाफ डब्ल्यू एडविन विल्सन द्वारा दायर अपील पर सुनवाई रही है जिसमें भारत के चुनाव आयोग और सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को प्लास्टिक के उपयोग के खिलाफ सलाह के अनुपालन की निगरानी करने के लिए कहा गया था.

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याचिका में कहा गया है कि NGT ने चुनावों में पीवीसी बैनरों के उपयोग पर प्रतिबंध के मुख्य मुद्दे पर प्रभावी आदेश पारित नहीं किया जो एक बहुत बड़ा खतरा है. विल्सन ने दावा किया है कि चुनाव के दौरान प्लास्टिक से बनी प्रचार सामग्री का उपयोग किया जाता है और बाद में इसे अपशिष्ट के रूप में त्याग दिया जाता है, जो पर्यावरण के लिए हानिकारक है.

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